23 अक्तूबर 2012

SP/2/1/5 कोचिंग सेंटर खोल ले, सिखला भ्रष्टाचार - महेंद्र वर्मा

सभी साहित्य-रसिकों का सादर अभिवादन
पिछले दिनों बहुत कुछ हो गया। दो बातें सब से ज़ियादा खटकीं [सिर्फ़ अपनी बात कहना चाहता हूँ, यह विमर्श का विषय नहीं] पहली तो यह कि उत्तम दोहे जिन से रचवाए गये - हम उन के श्रम और अच्छाइयों पर जितनी चर्चा कर रहे हैं उस से कभी-कभी सौ गुना ज़ियादा चर्चा ऐसे व्यक्तियों / दोहों की कमियों या फिर अपने पाण्डित्य-प्रदर्शन हेतु कर रहे हैं। कोई-कोई तो बस हवलदार की तरह से सीटी बजा कर ही हट गया। दूसरी बात ये कि - यदि बदली हुई परिस्थितियों से पुराने साथी आहत हैं तो पीछे क्यों हो मेरे भाई, आओ मिल कर 'ठीक' करते हैं :)। विचार-विमर्श ज़ारी रहेंगे, टिप्पणियों को मोडरेट करने की इच्छा नहीं है, परंतु साथ ही हम सभी को 'दाल में कितना नमक' वाली बात को समझना भी ज़रूरी है।


आइये सफ़र को आगे बढ़ाते हुये आज की पोस्ट में महेंद्र वर्मा जी के दोहे पढ़ते हैं। महेंद्र जी की रचनाधर्मिता से शायद ही कोई ब्लॉगर अनभिज्ञ हो, बावजूद उस के महेंद्र जी ने अपने दोहों को जिस प्रकार बार-बार तराशने का उद्यम किया वह निश्चय ही अनुकरणीय है। आज की पोस्ट से मैं इस आयोजन में प्रकाशित होने वाले दोहों पर अपनी टिप्पणी करना बंद कर रहा हूँ, महेंद्र जी यह शुरुआत आप की पोस्ट से हो रही है इस लिये आप से क्षमा-प्रार्थी हूँ :-

महेंद्र वर्मा



ठेस / टीस वगैरह
दूर हुए अपने सभी, तिक्त हुए संबंध।
नियति रूठ कर जा रही, कैसे हो अनुबंध।।

उम्मीद
क्षोभ अत्यधिक दे गया, बीत रहा यह वर्ष।
नव आगंतुक वर्ष में, प्रमुदित होगा हर्ष।।

सौंदर्य - प्रकृति
विहग वेणु कलरव करें, गगन उठी गो-धूर।
संध्या के माथे सजा, लाल अरुण सिंदूर।।

आश्चर्य
बिना कर्म उसको मिला, धन-वैभव-ऐश्वर्य।
कर्मशील भूखा रहा, यही बड़ा आश्चर्य।।

हास्य
हार गया तो क्या हुआ, टेंशन गोली मार।
कोचिंग सेंटर खोल ले, सिखला भ्रष्टाचार।।

वक्रोक्ति / विरोधाभास
कभी अकेला ना रहूं, मेरा अपना ढंग।
घिरा हुआ एकांत से, सन्नाटों के संग।।

सीख
संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र।
कभी-कभी एकांत ही, सबसे उत्तम मित्र।।


महेंद्र वर्मा जी के दोहों ने खूब समा बाँधा है। पोस्ट दर पोस्ट आयोजन और भी परवान चढ़ रहा है। पोस्ट की शुरुआत वाला निवेदन दुहराना चाहूँगा कृपया अपनी टिप्पणियों से रचनाकार का उत्साह वर्धन अवश्य करें। मंच के पास कुछ और दोहाकारों के दोहे आ चुके हैं, उन में से कुछ पर फिर से काम करने के लिये प्रार्थना भी की गई है, कृपया बताएं जैसे हैं वैसे ही छाप दें या फिर आप के उत्तर की प्रतीक्षा करें। जिन रचनाधर्मियों को अपने दोहे भेजने हों, वे भी यथाशीघ्र भेजने की कृपा करें। चलते-चलते समस्त "नये-पुराने विघ्न-संतोषियों" का विशेष आभार चूँकि उन जैसों की वज़्ह से ही हम आज यहाँ तक पहुँच सके हैं। प्रणाम.........................

जय माँ शारदे!

32 टिप्‍पणियां:

  1. हास्य और सीख दोनो बढिया हैं

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  2. सबसे पहले आपके प्राक्कथन पर -
    कम ही में अधिक को बेहतरीन रूप से समेटने का प्रयास हआ है. आपकी विवशता और तदुपरांत आपके साहस के प्रति बधाई कह रहा हूँ, नवीन भाईजी. आपकी प्रस्तुत पंक्ति पर हृदय बधाई - कोई-कोई तो बस हवलदार की तरह से सीटी बजा कर ही हट गया।
    आप अपनी बातों को सुदृढ़ता से रखें. मात्र आयोजक-संचालक के तौर पर नहीं, पाठक के तौर पर भी.

    अब महेंद्र भाईजी की छंद रचना पर -
    वक्रोति/विरोधाभास तथा सीख विन्दुओं के अंतर्गत हुई छंद रचना दिल के बहुत करीब है.
    मेरा सादर अभिनन्दन.

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  3. बहुत सुन्दर व सटीक दोहे हैं महेंद्र जी के ..बधाई...

    १.टीस तो लगेगी ही ...

    २. अच्छी उम्मीद है --- हाँ "प्रमुदित होगा हर्ष।।"..हर्ष व प्रमुदित एक ही भाव हैं ..यदि प्रमुदित यहाँ क्रिया है तो फिर हर्ष संज्ञा हुई , हर्ष स्वयं कैसे प्रमुदित हो सकता है ?

    ३.अति- ही सुन्दर व सटीक वर्णन है ..यद्यपि मेरे विचार से लाल व अरुण समानार्थक हैं...

    ४- सटीक आश्चर्य ....

    ५.आश्चर्य का सुन्दर परिपाक हुआ है ...

    ६.अति- श्रेष्ठ विरोधाभास है ...बहुत तात्विक दर्शन युक्त विचार ...

    ७- सुन्दर व सटीक सीख...

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  4. सभी दोहे भाव के अनुरूप सार्थक लगे|
    सौन्दर्य ,आश्चर्य और विरोधाभास विशेष रूप से अच्छे लगे|महेन्द्र सर के सीख वाले दोहे उनके ब्लॉग पर बहुत सारे पढ़े हैं..बिल्कुल कबीर के दोहे जैसे लगते हैं|सादर बधाई!!

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  5. महेन्द्र जी (मेरे लिए वरिष्ठ कवि) से अग्रिम क्षमा याचना सहित....

    ठेस:
    इस दोहे में ठेस तो है मगर "कैसे हो अनुबंध"? इसक मतलब रिश्तों में आप अनुबंध चाहते हैं। रिश्तों में प्रेम होता है अनुबंध नहीं।
    कुछ गड़बड़ लग रही है।
    यों करें तो

    प्रेम बिना रिश्ते हुए, अब केवल अनुबंध
    दूर हुए अपने सभी, तिक्त हुए संबंध

    उम्मीद:
    उम्मीद बेहद स्पष्ट है मगर "क्षोभ अत्यधिक" से यह स्पष्ट नहीं है कि आपको किस बात का क्षोभ है। बात अधूरी है। यों करें तो

    बीच क्रांति के बो गया, बीत रहा यह वर्ष
    होगा अगले वर्ष में, निर्णायक संघर्ष

    सौंदर्य:
    बहुत सुंदर सौंदर्य चित्रण है।
    दूसरी पंक्ति यों करें तो
    "साँझ-सुहागिन ने भरी, माँग अरुण सिंदूर"

    आश्चर्य:
    बहुत ही सटीक दोहा। बहुत बहुत बधाई इस दोहे के लिए महेन्द्र जी को।

    हास्य:
    सटीक हास्य है। बधाई इस दोहे के लिए महेंद्र जी को।
    इसमें थोड़ा नेता जी को डाल दें तो
    "नेता तू न उदास हो, अगर गया है हार"
    दूसरी पंक्ति वैसी की वैसी।

    वक्रोक्ति:
    बहुत ही सटीक दोहा है। बधाई महेंद्र जी को।
    दूसरी पंक्ति को यों करें तो
    "रहता हूँ एकांत में, सन्नाटों के संग"

    सीख:
    सीख का दोहा बिल्कुल सटीक है। बहुत बहुत बधाई महेन्द्र जी को इस दोहे के लिए।

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  6. उम्मीद वाले दोहे में "बीच" के स्थान पर "बीज" पढ़ें

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  7. - टीस -
    दूर हुए अपने सभी, तिक्त हुए संबंध।
    नियति रूठ कर जा रही, कैसे हो अनुबंध।।
    @ खालिस 'टीस'. यह टीस सर्वअनुभूत होगी।

    - उम्मीद -
    क्षोभ अत्यधिक दे गया, बीत रहा यह वर्ष।
    नव आगंतुक वर्ष में, प्रमुदित होगा हर्ष।।
    @ पहली पंक्ति में व्याकरणिक गड़बड़ी है। यदि इस प्रकार हो तो कैसा रहे ...

    @ क्षोभ अत्यधिक दे रहा, जाने वाला वर्ष।
    नव आगंतुक वर्ष से, प्रमुदित होगा हर्ष।।

    यदि दूसरी पंक्ति में कुछ और सुधार हो तो सोने पे सुहागा ....

    जैसे ...
    क्षोभ अत्यधिक दे रहा, गुजर रात उत्कर्ष।
    आगंतुक नववर्ष से, मोदी का संघर्ष।। ..... :) [मोदी = मुदित]

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  8. @ हास्य, आश्चर्य, सौंदर्य, सीख और वक्रोक्ति के दोहे काफी अच्छे हैं।

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  9. हास्य
    हार गया तो क्या हुआ, टेंशन गोली मार।
    कोचिंग सेंटर खोल ले, सिखला भ्रष्टाचार।।
    ......महेंद्र वर्मा जी .

    कभी अकेला ना रहूं, मेरा अपना ढंग।
    घिरा हुआ एकांत से, सन्नाटों के संग।।
    सीख
    संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र।
    कभी-कभी एकांत ही, सबसे उत्तम मित्र।।
    बहुत बढ़िया नीति और सीख पढ़ाते दोहे .दोहों में गद्य की तरह विस्तार की गुंजाइश नहीं रहती ,कम शब्दों में एक परिवेश एक भाव ,एक मानसिक कुन्हासा उड़ेलना होता है ,महेंद्र जी के दोहे इस कसौटी पर खरे उतरते हैं .

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  10. aap log naye seekhne valon ko encourage karna chate hain ya un ke man men fear paida kar rahe hain.

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  11. सृजन एक अनवरत प्रक्रिया है. प्रतिभागिता और रचना-प्रक्रिया को सम्मान देना मुख्य पाठक-धर्म है. हमसभी इस धर्म के प्रति मात्र संवेदनशील ही नहीं, आग्रही बनें.
    इस मंच का उद्येश्य और प्रवाह दोनों स्पष्ट है. हमारा निर्वहन और बहाव संयत और संपुष्टकारी हो ताकि हम नव-हस्ताक्षरों के लिये सकारात्मक प्रेरणा का कारण बन सकें.
    सादर

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  12. दोहे की लघु देह में ,भरे नये ही रंग ,
    हास्य-व्यंग्य रस-रीति का ,बड़ा निराला ढंग!

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  13. बहुत ही सशक्त एवँ सारगर्भित दोहे ! महेंद्र जी को बहुत सी बधाई एवँ शुभकामनायें !

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  14. मेरी प्रविष्टि को मंच में स्थान प्रदान करने के लिए आभार, नवीन जी।
    सभी पाठक साथियों को उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

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  15. @महेंद्र जी

    आभार नहीं, दादा आप के दोहे स्तरीय हैं, मैंने इन्हें आप के कल्पना-आलोक के निकट जा कर पढ़ा और मुझे बहुत आनंद मिला।

    आभार आप का कि आप ने मुझे इन दोहों को प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया, और मंच की मर्यादा की रक्षा में निरंतर भरपूर सहयोग दे रहे हैं।

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  16. अति सुंदर व सटीक दोहों की प्रस्तुति,बहुत बहुत बधाई

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  17. अपना-अपना ढंग है, अपना-अपना रंग |
    अपना अपनी दृष्टि है,शिल्प,भाव अनु-संग |
    शिल्प-भाव अनुसंग, भाव है अपना-अपना,
    शैली-भाषा-विषय, कथ्य है अपना अपना |
    सम्प्रेषित शुचि अर्थ, श्याम' हो सुन्दर रचना,
    विषय,तथ्य का ज्ञान,सभी का अपना-अपना ||







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  18. महेंद्र जी के सभी दोहे अच्छे लगे,,,,और उससे भी अच्छी परिचर्चा लगी,,,,बधाई,,,

    विजयादशमी की हादिक शुभकामनाये,,,
    RECENT POST...: विजयादशमी,,,

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  19. अय हय हय मन भा गए ,महा इंद्र के ढंग
    इंद्र धनुष वरमाल से , सत दोहों में रंग ||

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  20. ठेस / टीस वगैरह
    दूर हुए अपने सभी, तिक्त हुए संबंध।
    नियति रूठ कर जा रही, कैसे हो अनुबंध।।
    ******************************

    समय समय का फेर है,समय समय की बात
    आँसू बन झरने लगे , अंतस के आघात |

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  21. उम्मीद
    क्षोभ अत्यधिक दे गया, बीत रहा यह वर्ष।
    नव आगंतुक वर्ष में, प्रमुदित होगा हर्ष।।
    *********************************************
    कहा खूब हे मित्रवर,आओ भूलें शूल
    कुछ खिलते कुछ सूखते,उम्मीदों के फूल ||

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  22. सौंदर्य - प्रकृति
    विहग वेणु कलरव करें, गगन उठी गो-धूर।
    संध्या के माथे सजा, लाल अरुण सिंदूर।।
    ************************************************
    संध्या के सौन्दर्य का,है मनभावन चित्र
    नयन उसी के दीखता,जिसका ह्रदय पवित्र ||

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  23. आश्चर्य
    बिना कर्म उसको मिला, धन-वैभव-ऐश्वर्य।
    कर्मशील भूखा रहा, यही बड़ा आश्चर्य।।
    **********************************************
    अचरज वाले भाव की ,सुन्दर दिखी मिसाल
    कर्मशील भूखा रहा , ठलहा है खुशहाल ||

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  24. हास्य
    हार गया तो क्या हुआ, टेंशन गोली मार।
    कोचिंग सेंटर खोल ले, सिखला भ्रष्टाचार।।
    **********************************************
    हा हा हा टेंशन नहीं , इनकम पेलम पेल
    समाधान नायाब है, "कोचिंग सेंटर सेल " ||

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  25. वक्रोक्ति / विरोधाभास
    कभी अकेला ना रहूं, मेरा अपना ढंग।
    घिरा हुआ एकांत से, सन्नाटों के संग।।
    *******************************************
    सर्वश्रेष्ठ दोहा कहा, दी अपनी पहचान
    बियाबान खिल खिल उठा,सुन शब्दों की तान ||

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  26. सीख
    संगति उनकी कीजिए, जिनका हृदय पवित्र।
    कभी-कभी एकांत ही, सबसे उत्तम मित्र।।
    ************************************************
    झूठे मित्रों से भला, निश्चय ही एकांत
    सुखी रहेगी आतमा,चित्त रहेगा शांत ||

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  27. महेन्द्र वर्मा जी के दोहे सार्थक और समर्थ हैं। जिस भाव की सृष्टि करनी ठीक उन्होंने सफलतापूर्वक की है - अहले-नज़र पाठकों द्वारा जो सूक्ष्म विवेचनायें की गई हैं वो भी प्रभावित करती हैं लेकिन कुल मिला कर सारा संवाद साहित्य के हित में जाता दीख रहा है -- नवीन भाई आयोजन आपका ज़ोरदार है और पिछले आयोजनो से अधिक सफल है -- मयंक

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  28. महेन्द्र वर्मा जी के दोहे सार्थक और समर्थ हैं। जिस भाव की सृष्टि करनी ठीक उन्होंने सफलतापूर्वक की है - अहले-नज़र पाठकों द्वारा जो सूक्ष्म विवेचनायें की गई हैं वो भी प्रभावित करती हैं लेकिन कुल मिला कर सारा संवाद साहित्य के हित में जाता दीख रहा है -- नवीन भाई आयोजन आपका ज़ोरदार है और पिछले आयोजनो से अधिक सफल है -- मयंक

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