28 जुलाई 2013

एक तमाशे के लिये और तमाशे कितने - नवीन

ज़िन्दा रहने के लिये और बहाने कितने
एक तमाशे के लिये और तमाशे कितने

बाँह फैलाये वहाँ कब से खड़ा है महबूब
रूह बदलेगी बदन और न जाने कितने

आग पानी से बचाओ तो हवा की दहशत
ज़िन्दगी अक्स बनाये तो बनाये कितने

अपनी यादों में न पाओ तो नज़र से पूछो
और होते भी हैं यारों के ठिकाने कितने

जैसे आये हैं यहाँ वैसे ही जाना होगा 
बात सच है ये मगर बात ये माने कितने
:- नवीन सी. चतुर्वेदी



फ़ाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फालुन
बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
2122 1122 1122 22

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 031/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. वाह, गहरी बात, तमाशे लिपटे लपटाये घूम रहे सब।

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  3. जैसे आये हैं यहाँ वैसे ही जाना होगा
    बात सच है ये मगर बात ये माने कितने

    बहुत सुंदर शे'र !

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