ग़नीमत
से गुज़ारा कर रहा हूँ।
मगर
चर्चा है जलसा कर रहा हूँ ॥
तरक़्क़ी का ये आलम है कि पल-पल।
बदन
का रंग नीला कर रहा हूँ॥
ठहरना तक नहीं सीखा अभी तक।
अज़ल
से वक़्त जाया कर रहा हूँ॥
तसल्ली आज भी है फ़ासलों पर।
सराबों
का ही पीछा कर रहा हूँ॥
मेरा साया मेरे बस में नहीं है।
मगर दुनिया पे दावा कर रहा हूँ॥
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
अज़ल - आदि , सराब - मृग तृष्णा
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