28 जुलाई 2013

तमाम ख़ुश्क दयारों को आब देता था - नवीन

तमाम ख़ुश्क दयारों को आब देता था
हमारा दिल भी कभी आसमान जैसा था
तमाम - अनेकख़ुश्क - शुष्क / सूखादयार - स्थान / क्षेत्रआब - पानी

अजीब लगती है मेहनतकशों की बदहाली
यहाँ तलक तो मुक़द्दर को हार जाना था
मेहनतकश - मेहनत / शारीरिक श्रम करने वाले , मज़दूर

नये सफ़र का हरिक मोड़ भी नया थामगर
हरेक मोड़ पे कोई सदाएँ देता था
सदा - आवाज़

बग़ैर पूछे मेरे सर में भर दिया मज़हब
मैं रोकता भी तो कैसे कि मैं तो बच्चा था

कोई भी शक़्ल उभरना मुहाल था यारो
हमारे साये के ऊपर शजर का साया था
शजर - पेड़

तमाम उम्र ख़ुद अपने पे जुल्म ढाते रहे
मुहब्बतों का असर था कि कोई नश्शा था

बड़ा सुकून मिला उस से बात कर के हमें
वो शख़्स जैसे किसी झील का किनारा था

बस एक वार में दुनिया ने कर दिये टुकड़े
मेरी तरह से मेरा इश्क़ भी निहत्था था

अलावा इस के मुझे और कुछ मलाल नहीं
वो मान जायेगा इस बात का भरोसा था

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन

1212 1122 1212 22

3 टिप्‍पणियां:

  1. 'वो शख़्स जैसे किसी झील का किनारा था'
    वाह!

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  2. वाह..सुंदर प्रस्तुति।।।

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  3. बग़ैर पूछे मेरे सर में भर दिया मज़हब
    मैं रोकता भी तो कैसे कि मैं तो बच्चा था ..

    इस एह शेर में अज का सच ... आज का कडुवा सच लिख दिया नवीन भई ... कम ही पढ़ने को मिलते हैं ऐसे नायब शेर ...

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