नमस्कार
वक़्त
भी इन्सान को एक आँख हँसाता है तो एक आँख रुलाता है। एक तरफ़ चेम्पियन्स ट्रॉफी
जीतने की ख़ुशी है तो दूसरी ओर उत्तराखण्ड की त्रासदी। उत्तराखण्ड की त्रासदी को कुदरत का प्रतिकार कहें या मानवीय हवस का दुष्परिणाम, अधिक अन्तर नहीं है। सब से ख़राब पहलू है ऐसी
त्रासदी पर होने वाली राजनीति। ख़ैर हमारे नेतागण व उन का चमचा-समुदाय सुधरने से
रहा। चेम्पियन्स ट्रॉफी की जीत ने क्षणिक आनन्द अवश्य दिया, परन्तु
फिक्सिंग के ग्रहण से ग्रसित हमारी क्रिकेट अब कितने भरोसे के क़ाबिल रह गई है,
यह अपने आप में एक यक्ष-प्रश्न है। फिर भी आईसीसी के तीनों
प्रारूपों का विजेता होने का आनन्द मिला तो है ही। गांगुली ने जिस सफ़र का आगाज़
किया था, धोनी ने उसे बेहतर अंज़ाम तक पहुँचाया है। भविष्य में
देखना होगा कहीं धोनी भी......
हम
लौटते हैं
आयोजन की तरफ़। भाई सत्यनारायण जी पहले भी मञ्च के आयोजनों में शिरकत
करते रहे हैं। इन्हें पढ़ चुके साथियों को याद होगा कि इन की रचनाओं में सादगी के
साथ ही साथ समय की पीड़ा भी होती है। इस बार आप ने मौसम के आनन्द में डूब कर दोहे
लिखे हैं। आइये पढ़ते हैं सत्यनारायण जी के दोहे
बरसा
पानी झूम के,
भीगा सब संसार
गोरी
भीगे आँगना,
कर सोलह सिंगार
रिम-झिम
बरसे बादरी,
मादक सुखद बहार
साजन
तेरे बिन मुझे,
कजरी लगे मल्हार
मादक
मोहक रूप है,
केश श्याम लट ब्याल
गोरी
के सौंदर्य का,
रखते निश दिन ख्याल
काजल
भी देने लगे,
अब कटार सी पीर
बिरह
पीर को मैं सहूँ,
बनकर तेरी हीर
भाल
लाल बिंदी सजी,
मन को रही जलाय
सुन
सजना तेरे बिना,
अब तो जिया न जाय
सत्यनारायण
जी क्या बात है। पहले दोहे से ले कर अन्तिम दोहे तक बाँध कर रखते हैं आप।
इन दोहों
का रसास्वादन एक बार पढ़ कर शायद न हो पाये, एकाधिक बार पढ़ के देखियेगा
तब मज़ा आयेगा, और यही इन दोहों की विशिष्टता भी है। 'कजरी लगे मल्हार'......... 'केश श्याम लट ब्याल'
इन जुमलों के लिये सत्यनारायण जी को स्पेशल बधाई। काव्य में जुमलों का ही तो मज़ा है भाई। साथियो आनन्द लीजिये इन
दोहों का, कवि तक अपने सुविचार भी अवश्य पहुँचाइयेगा,
और मैं चलता हूँ अगली पोस्ट की तरफ़। सम्भवत: अगली पोस्ट में हास्य
रस के छींटे..... सोचो कवि कौन होगा ?
इस आयोजन की घोषणा सम्बन्धित पोस्ट पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें
आप के दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें
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badhiya dohe...dhanyawaad
जवाब देंहटाएंACHCHHE DOHON KE LIYE BADHAAEE AUR
जवाब देंहटाएंSHUBH KAMNA .
आदरणीय सत्यनारायण जी को सुनना-पढ़ना एक अनुभव को सुनना-पढ़ना होता है.
जवाब देंहटाएंइन सुन्दर छंदों के लिए भाईजी हार्दिक धन्यवाद.
सादर
आदरणीय रजनीश जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्राण शर्मा जी उत्साहवर्धन के साथ साथ शुभकामना लिए आपका बहुत बहुत आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंपरम आदरणीय सौरभ जी सादर,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मन अतीव प्रसन्नता हुई. आपकी प्रतिक्रिया से सदैव लेखनी को बल एवं नव उर्जा प्राप्त होती है. इस प्रतिक्रया के लिए मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूँ. धन्यवाद....
आदरणीय डॉ. श्याम जी सादर,
जवाब देंहटाएंदोहों की सराहना करने के साथ साथ उन पर दी गई विस्तृत एवं विवेचनात्मक प्रतिक्रिया के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
सभी दोहे अच्छे हैं बधाई .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे दोहे हैं। बधाई सत्यनारायण जी को
जवाब देंहटाएंदोहे अच्छे लगे !! बधाई !!
जवाब देंहटाएंवाह .. सभी दोने लाजवाब .... सत्यनारायण जी को बधाई ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय अशोक जी सादर, आपको रचना-प्रयास रुचिकर लगा इस हेतु, आपका सादर धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआदरणीय धर्मेंद्रजी सादर,
जवाब देंहटाएंआप जैसों का प्रोत्साहन लेखनी को सदा नई उर्जा प्रदान करता है. आभार..
आदरणीय नासवा जी सादर,
जवाब देंहटाएंसराहना एवं प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभारी हूँ.
आदरणीय शेखर जी
जवाब देंहटाएंअनुमोदन के लिए आपका आभारी हूँ आदरणीय. बहुत बहुत धन्यवाद.
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 29/06/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
बरसा पानी झूम के, भीगा सब संसार
जवाब देंहटाएंगोरी भीगे आँगना, कर सोलह सिंगार
@सुंदर दोहे मित्रवर, पढ़ पाया आनंद
सुमन सुवासित भाव हैं,शब्द-शब्द मकरंद
रिम-झिम बरसे बादरी, मादक सुखद बहार
साजन तेरे बिन मुझे, कजरी लगे मल्हार
@दोहे में गर्भित विरह, गया हृदय को चीर
है मल्हार देने लगा, कजरी वाली पीर
मादक मोहक रूप है, केश श्याम लट ब्याल
गोरी के सौंदर्य का, रखते निश दिन ख्याल
@केश श्याम लट लिपटते,झटपट कनपट गाल
ज्यों धन घट से लिपटते, रक्षा करने ब्याल
काजल भी देने लगे, अब कटार सी पीर
बिरह पीर को मैं सहूँ, बनकर तेरी हीर
@नयनों का जल धो रहा,अब काजल को मीत
कब तक मैं गाऊँ कहो,विरह पीर के गीत
आदरणीय अरुण निगम जी सादर,
जवाब देंहटाएंदोहों पर आपकी काव्यात्मक टिपण्णी पढ़कर मन को दोगुनी ख़ुशी प्राप्त हुई. जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता. आपकी काव्यात्मक टिपण्णी किशी पारितोषिक से कम नहीं. अतएव
मैं आपका आभारी हूँ आदरणीय,
आदरणीया यशोदा अगरवाल जी सादर, दोहे आपने पढ़े, आपको पसंद आये तथा नेक भाव से उन्हें औरों तक पहुचाने हेतु लिंक पर उपलब्ध कराने का आपका मानस है. आपके इस उद्दात भाव को मैं शत शत नमन करता हूँ. तथा आपका दिल से आभार प्रकट करता हूँ. दिनांक २९ जून २०१३ को रचना निर्देशित लिंक पर पढने का इन्तजार रहेगा आदरणीया, धन्यवाद सहित
जवाब देंहटाएंआदरणीय सत्यनारायण सिंह जी को
अच्छे दोहों के लिए बधाई !
गोरी के सौंदर्य का, रखते निश दिन ख्याल ...क्या बात है !
"शायद कुछ और..." की रस-तृष्णा में आपके ब्लॉग तक भी हो आया
:)
सादर...
शुभकामनाओं सहित...
राजेन्द्र स्वर्णकार