ज़ुल्मत
की रह में हर इक तारा बिछा पड़ा है
और
चाँद बदलियों के पीछे पड़ा हुआ है
फिर
से नई सहर की कुहरे ने माँग भर दी
और
सूर्य अपने रथ पर ख़्वाबों को बुन रहा है
नींदें
उड़ाईं जिसने, उस को ज़मीं पे लाओ
तारों
से बात कर के किस का भला हुआ है
मिटती नहीं है साहब खूँ से लिखी इबारत
जो
कुछ किया है तुमने कागज़ पे आ चुका है
जोशोख़रोश,जज़्बा; ख़्वाबोख़याल, कोशिश
हालात
का ये अजगर क्या-क्या निगल चुका है
जब जामवंत गरजा हनुमत में जोश जागा
हमको
जगाने वाला लोरी सुना रहा है
बहरे मज़ारे मुसम्मन
अखरब
मफ़ऊलु फ़ाएलातुन
मफ़ऊलु फ़ाएलातुन
२२१ २१२२ २२१ २१२२
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,,,
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
संतुलित ढंग से सब समझा गये आप..
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