फेसबुक के शुरुआती दौर में जब मैं हाथ-पाँव मार रहा था ऐसे में आदरणीय योगराज भाई जी ने मुझे फेसबुकिया होने से बचाया। छंद और ग़ज़ल दौनों से मुहब्बत करने वाले भाई योगराज जी ने इस तरह और भी कई रचनाधर्मियों की उँगली थामी। पिछले कई महीनों से भाई योगराज जी स्वास्थ्य संबन्धित समस्याओं से जूझ रहे हैं। आइये हम परमपिता परमेश्वर से उन के शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ हेतु प्रार्थना करते हुये उन की चंद ग़ज़लें पढ़ें:-
[1]
मेरे बच्चों को खाना मिल गया है,
मुझे सारा ज़माना मिल गया है !
कि जबसे तेरा शाना मिल गया है,
मेरे ग़म को ठिकाना मिल गया है !
परेशानी पड़ौसी की है बस ये
मुझे सारा ज़माना मिल गया है !
कि जबसे तेरा शाना मिल गया है,
मेरे ग़म को ठिकाना मिल गया है !
परेशानी पड़ौसी की है बस ये
मुझे क्यों आब-ओ-दाना मिल गया है!
तेरे अशआर और मुझ से मुख़ातिब!!!!!
मुझे मानो ख़ज़ाना मिल गया है !
क़लम उगलेगी आग अब तो यक़ीनन,
इसे ग़म जो पुराना मिल गया है !
लुटेंगीं अस्मतें बहुओं की अब तो,
मेरे क़स्बे को थाना मिल गया है !
तेरे अशआर और मुझ से मुख़ातिब!!!!!
मुझे मानो ख़ज़ाना मिल गया है !
क़लम उगलेगी आग अब तो यक़ीनन,
इसे ग़म जो पुराना मिल गया है !
लुटेंगीं अस्मतें बहुओं की अब तो,
मेरे क़स्बे को थाना मिल गया है !
[2]
हाँ! राह-ए-ज़िन्दगी पे अँधेरा ज़रूर था,
पर उस के पार दिन का भी डेरा ज़रूर था !
ये मैं ही था जो तीरगी में मुब्तिला रहा,
उसने तो रौशनी को बिखेरा ज़रूर था !
ज़हन -ओ-ख़याल में था बसा और ही कोई,
हाँ, ले रहा वो सातवाँ फेरा ज़रूर था !
आँसू छुपा रहा था जो चश्मे की आड़ में,
बिछुड़ा हुआ कोई तो वो मेरा ज़रूर था !
मीलों तलक तवील था उस घर में फ़ासला
वो घर नहीं था, रैन बसेरा ज़रूर था !
जो कौड़ियों के मोल मुझे लूट ले गया
पर उस के पार दिन का भी डेरा ज़रूर था !
ये मैं ही था जो तीरगी में मुब्तिला रहा,
उसने तो रौशनी को बिखेरा ज़रूर था !
ज़हन -ओ-ख़याल में था बसा और ही कोई,
हाँ, ले रहा वो सातवाँ फेरा ज़रूर था !
आँसू छुपा रहा था जो चश्मे की आड़ में,
बिछुड़ा हुआ कोई तो वो मेरा ज़रूर था !
मीलों तलक तवील था उस घर में फ़ासला
वो घर नहीं था, रैन बसेरा ज़रूर था !
जो कौड़ियों के मोल मुझे लूट ले गया
वो मौसम-ए-बहार, लुटेरा ज़रूर था !
जिस घर की ईंट-ईंट से गायब था मेरा नाम
उस घर की नींव में लहू मेरा ज़रूर था !
जिस घर की ईंट-ईंट से गायब था मेरा नाम
उस घर की नींव में लहू मेरा ज़रूर था !
[3]
क़त्ल पेड़ों का हुआ तो, हो गया प्यासा कुआँ !
तिश्नगी अब क्या बुझाएगा भला तिश्ना कुआँ !
पनघटों पर ढूँढती फिरती सभी पनिहारियाँ,
एक दिन तो लौट कर आयेगा बंजारा कुआँ !
बस किताबों में नज़र आएगा, ये अफ़सोस है
हो गया इतिहास अब ये भूला बिसरा सा कुआँ !
एक दिन बेटी को जिसकी खा गया था रात में,
उसको तो ख़ूनी लगे उसदिन से ही अँधा कुआँ !
मौत शायद टल ही जाये धान की इंसान की,
गर किसी सूरत कहीं ये हो सके ज़िन्दा कुआँ !
अब यक़ीनी लग रहा है घर में नन्हा आएगा,
आज़ अम्मा ने बहू सँग प्यार से पूजा कुआँ !
ये मेरी आवाज़ में ही नक्ल करता था मेरी,
जो भी मैं कहता इसे, वोही सुनाता था कुआँ !
उसको भागीरथ कहेगा आने वाला वक़्त भी,
घर के आँगन में कभी जो लेके आया था कुआँ!
तिश्नगी अब क्या बुझाएगा भला तिश्ना कुआँ !
पनघटों पर ढूँढती फिरती सभी पनिहारियाँ,
एक दिन तो लौट कर आयेगा बंजारा कुआँ !
बस किताबों में नज़र आएगा, ये अफ़सोस है
हो गया इतिहास अब ये भूला बिसरा सा कुआँ !
एक दिन बेटी को जिसकी खा गया था रात में,
उसको तो ख़ूनी लगे उसदिन से ही अँधा कुआँ !
मौत शायद टल ही जाये धान की इंसान की,
गर किसी सूरत कहीं ये हो सके ज़िन्दा कुआँ !
अब यक़ीनी लग रहा है घर में नन्हा आएगा,
आज़ अम्मा ने बहू सँग प्यार से पूजा कुआँ !
ये मेरी आवाज़ में ही नक्ल करता था मेरी,
जो भी मैं कहता इसे, वोही सुनाता था कुआँ !
उसको भागीरथ कहेगा आने वाला वक़्त भी,
घर के आँगन में कभी जो लेके आया था कुआँ!
योगराज प्रभाकर |
योगी भाई, आप से बात नहीं हो पा रही है। आप के द्वारा पूर्व में मुझे दिये गये सस्नेह अधिकार का प्रयोग करते हुये, निज मति अनुसार मैंने कुछ टाइपिंग मिस्टेक्स को दुरुस्त करने की कोशिश की है। आप जल्द ही स्वस्थ हो कर आयें और इन का अनुमोदन करने की कृपा करें।
बड़ी सुन्दर..हम भी यथासंभव फेसबुक से दूर ही बसते हैं।
जवाब देंहटाएंनवीन भाई
नमस्कार !
इस पोस्ट की रचनाओं के लिए कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान ही होगा ...
♥ परम प्रिय परम आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ♥
की ग़ज़लें पढ़ने का सौभाग्य प्रदान करने के लिए आपको विशेष धन्यवाद !
नेट पर कोई तीन वर्ष पहले सक्रिय होने के बाद
इतने श्रेष्ठ गुणी रचनाकार और प्यारे इंसान और श्रेष्ठ मानव के रूप में
योगराज प्रभाकर जी का स्नेहपात्र बनना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि समान है ।
आपके यहां आयोजित समस्यापूर्ति के विविध आयोजनों में सम्मिलित
उनके कवित्त और अन्य रचनाएं उनकी अपनी विशिष्ट पहचान और परिचय है ।
एक बार OBO पर उनके कवित्तों पर मैंने एक कवित्त लिखा था -
एक योगराज और साथ में प्रभाकर हैं ,
आपकी हे गुणीश्रेष्ठ ! वाकई क्या बात है !
छंद के महारथी ! उस्ताद शाइरी के ! गुरू !
आपमें बताएं और क्या - क्या करामात है ?
आपके गुणों का क्या बखान करे कोई … अजी
अरे अरे ! किसकी मजाल है ? औक़ात है ?
और गुणियों का नाम मिले जहां डाल - डाल ,
आपका 'राजेन्द्र' वहीं नाम पात - पात है !
उनका जवाबी कवित्त उनके महान व्यक्तित्व का कितना परिचय दे रहा है , देखें -
आपकी फ़राख़दिली, देख सदा ऐसे लगे
आपका ये दिल जैसे, अपना पंजाब है !
आपने जो हाथ रखा, ख़ादिम की पीठ पर,
मेरी ज़िंदगानी का ये, दिलकश बाब है !
आपकी क़लम द्वारा, किया गया ज़िक्र मेरा,
मुझे अब तक लगे, जैसे कोई ख़ाब है !
पढ़ा ख़त आपका जो, मुझे पता चला तब ,
ज़र्रे को बनाया जाता, कैसे आफ़ताब है !
:)
विनम्रता गुणी की असली पहचान है ...सचमुच !
हृदय से नमन दादा प्रभाकर !
परमपिता परमात्मा से आपके शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ हेतु प्रार्थना है ... ईश्वर आपको शीघ्र स्वस्थ करे... आमीन !!
इन्हीं हार्दिक शुभकामनाओं मंगलकामनाओं सहित…
होली की आप सबको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह! बहुत ख़ूब! होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंनवीनभाईजी,
जवाब देंहटाएंआदरणीय योगराजभाईजी से भेंट कर अभी परसों ही पटियाला से लौटा हूँ. भाई राणाप्रताप सिंह के साथ हुई यह यात्रा विन्दुवत थी, बड़े भाई से मुलाकात करना. उनसे हुई साक्षात भेंट के बाद से मन तनिक संयत है.
लम्बी बीमारी के बाद की दुर्बलता के कारण आप शारीरिक रूप से तनिक असहज अवश्य लगे, किन्तु, परस्पर बातचीत में सहृदयता, स्वीकार्यता, स्पष्टता तथा सहजता सबकुछ वही योगराजभाईसाहब छाप वाली दिखी. नैराश्य हारा ही हारा लगा ! अन्यथा, पिछली जुलाई से आपकी तबियत के खराब होने की बात जो हम सुन रहे थे, पिछले नवम्बर-दिसम्बर तक आते-आते उसने आपको इतना अशक्त कर दिया था कि आप अंतरजाल से पूरी तरह से विलग हो गये थे. लेकिन ज़िन्दग़ी जिस ठसक से जीने की कला का नाम है, उसका इतना सुन्दर दर्शन अन्यत्र कहीं किसी के जीवन में कम ही देखने को मिलता है.
आभासी कही और समझी जाने वाली अंतरजाल की दुनिया में पिछले तीन वर्षों पूर्व हुई अपनी जान-पहचान ओबीओ (ओपेन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम) के कारण इतनी प्रगाढ़ हो गयी कि आज आप मेरे जीवन का आप अन्योन्याश्रय भाग सदृश हैं, जहाँ दुराव की कोई महीन रेख तक नहीं है, अपितु, परस्पर साहचर्य की अद्भुत विशालता व्याप्त है.
ईश्वर आपको दीर्घायु रखे और हम सभी मानस-पुत्रों के मध्य आप अग्रज संलग्नक की तरह अन्यतम रहें.
हर दिल के दरबार में, बादशाह बेताज
सहज-धीर-उद्भाव-नत, ओबीओ सरताज
ओबीओ सरताज, पूर्ण में जीवन लेता
’जो कुछ है, वह सार’, सोच का सुगढ़ प्रणेता
सिद्धासिद्ध समान, न हावी दीखे मुश्किल
शब्द-चितेरा, मुग्ध, प्यार से जीते हर दिल ||
नवीनभाईजी, आपने आदरणीय योगराजभाई की ग़ज़लों का सुन्दर गुलदस्ता साझा कर अपने हृदयाकाश में व्यापक हुई अपनत्व का परिचय दिया है. सही है, विचारों पर आधारित सम्बन्ध अन्य किसी कारणों से स्थापित हुए सम्बन्धों से कहीं अधिक प्रगाढ़ होते हैं.
आपको तथा आपके माध्यम से आदरणीय योगराजभाईजी के समस्त शुभचिंतकों को उल्लास के पर्व होली की अनेकानेक शुभकामनाएँ.
शुभ-शुभ