दोस्तो आज महिला दिवस के मौक़े पर शैलजा नरहरि जी की दो कवितायें पढ़ते हैं।मेरे नज़दीक इन कविताओं की विशेषता यह है कि निहायत धीमे स्वर में बिना चीख-चिल्लाहट के बड़े ही मार्मिक ढ़ंग से सब कुछ कह दिया गया है।
आर डी नेशनल कॉलेज से बतौर प्राध्यापक सेवा निवृत्ति लेने वाली आदरणीया शैलजा नरहरि जी ने सन 1972 में मंच छोड़ कर गृहस्थ जीवन आरंभ करने से पूर्व गोपाल प्रसाद नीरज, भारत भूषण, रमानाथ अवस्थी, सुमित्रानंदन पंत, दिनकर, महादेवी वर्मा, भवानी प्रसाद मिश्र आदि कवियों के साथ मंच पर काव्य-पाठ किया है। उन की ग़ज़लें आप पहले भी इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं।
लड़की
बहुत ज़ोर से हँसती हो तुम
ऐसे नहीं हँसते
मुसकुराना तो और भी ख़तरनाक है
चलते वक़्त भी ध्यान रखा करो
क़दमों की आवाज़ क्यों आती है
सुबह जल्दी उठा करो
सब के बाद ही सोते हैं
औरों का ख़याल रक्खा करो
सब को खिला कर ही खाते हैं
क्या करती हो
तुम्हें कुछ नहीं आता
कुछ तो सीखो
पराये घर जाना है
हाँ! ठीक ही कहा है
तुम्हारा कोई घर नहीं है
ये घर तुम्हारे पिता का है
फिर होगा तुम्हारे पति का घर
और बाद वाला तुम्हारे पुत्र का
तुम तो लक्ष्मी हो
उन का भी कोई घर नहीं है
लक्ष्मी हो कर भी
चरण दबाती हैं विष्णु भगवान के
चरणों में बैठी हैं युगों से
क्षीर-सागर घर नहीं होता
शेषनाग भी भगवान विष्णु की ही पसंद हैं
लक्ष्मी हो या तुम
भाग्य तो सब का एक सा ही है
गाय और तुम
खूँटे से बँधी रहो
जितनी ज़रूरत है उतनी बड़ी रस्सी है
दुनिया बड़ी बदनाम है
बाहर तुम्हारा क्या काम है
तुम्हारे सींग हमने नहीं काटे हैं
काटने पर तुम बुरी लगोगी
ये सींग मारने के लिये नहीं हैं
रम्भाने की क्या ज़रूरत है
हम तुम्हें भूखा कहाँ रखते हैं
तुम्हारे रहने से आँगन की शोभा है
तुम्हारी तो पूजा होती है
जैसा पुजारी चाहेगा वैसी ही पूजा होगी
तुम हमारे देश में नारी का मापदण्ड हो
तुम्हारी जैसी औरत ही हिन्दुस्तानी होती है
ज़ियादा गड़बड़ करे तो कहानी होती है
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते – रमन्ते तत्र देवता
ये हमने कहा ही तो है
कहने में क्या हर्ज़ है
ये तो हमारा फर्ज़ है
:- शैलजा नरहरि
+91 99 321 25 416
तुम्हारे सींग हमने नहीं काटे हैं
जवाब देंहटाएंकाटने पर तुम बुरी लगोगी
ये सींग मारने के लिये नहीं हैं
उत्कृष्ट कवितायें
दोनों ही रचनाएँ उत्क्रिस्ट कोटि की
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट रचनाएँ. महिला दिवस की सभी महिलाओं को बधाई.
जवाब देंहटाएंनीरज'नीर'
इस अवसर पर मेरी भी रचना पढ़ें:
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): “नारी”
दोनों ही सामयिक और प्रभावी।
जवाब देंहटाएंबहुत सहजता से कह गई है यह रचना स्त्रियों की स्थिति...वाकई प्रभावकारी...घर-घर की कहानी की तरह...आ० शैलजा नरहरि जी को बहुत-बहुत बधाई एवं महिला दिवस की शुभकामनाएँ !!
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