चाँह चित चाँहक की चाँहि कें चतुर चारु,
चाउ ते चली कर चरचित इकैठे री
पाउते सु 'प्रीतम' के हाव दरसाउ भूरि
भाउते करौंगी मिल मन के मनेंठे री
ध्याउते दृगन मूँदि भौंहन उमैठे री
छाउते छये न छत छेद छये छाती क्यों कि
आउते बसंत कंत संत बन बैठे री
आउते बसंत कंत संत बन बैठे री
छाँड़ि हठ हौं तौ अरी आपु ही सु जाइ ढिंग
भाँति-भाँति भावन के गुनन सों गेंठे री
'प्रीतम' पियारे प्रान पिघले न नेंकु तऊ
टेक राखि आपनी ही और अति एंठे री
ज्यौं-ज्यौं हौं मनाऊँ त्यौं-त्यौं साधत समाधि जैसी
बाँधत न हीर हिय करत अमेंठे री
मानौं मेल अंत कर इकंत में निछन्त है
आउते बसंत कंत संत बन बैठे री
:- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
behatareen abhivyakti... basant panchami ki shubhkamnaye..
जवाब देंहटाएं♥✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥❀♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿♥
♥बसंत-पंचमी की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं !♥
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परम आदरणीय गुणीश्रेष्ठ पं.यमुना प्रसाद जी चतुर्वेदी 'प्रीतम' द्वारा सृजित
ये अद्भुत कवित्त पढ़ने का अवसर देने के लिए
प्रिय बंधुवर नवीन जी आपके प्रति हृदय से आभार !
पंडित जी की रचनाएं पहले भी यहां देखने का सौभाग्य मिल चुका है ।
संभव हो तो भावार्थ भी संलग्न कर देने की कृपा करें , ताकि कुछ भी छूट न पाए ...
:)
बसंत पंचमी सहित
सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut sundar ..prastuti aapka blog gyanvardhak jankariyon se paripurn hai prasannata hui yahan aakar badhai
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