क़दम-क़दम पर ख़ूब सँभलने वाले हम - नवीन

क़दम-क़दम पर ख़ूब सँभलने वाले हम
अक्सर ठगे गये हैं, छलने वाले हम

बूँदों की मानिन्द टपकते रहते हैं
फ़व्वारों की तरह उछलने वाले हम

धनक हमारे आगे पानी भरती है
गिरगिट जैसे रंग बदलने वाले हम
धनक - इन्द्रधनुष

रोज़ सवेरे उठ कर आँखें मलते हैं
दुनिया की तस्वीर बदलने वाले हम

छेड़ न कृत्रिम बारिश करने वालों को
अड़े, तो जम सकते हैं, गलने वाले हम

फ़लक दिखाने वाले ख़ुद भी उड़ के दिखा
बातों से ही नहीं बहलने वाले हम

फ़लक - आसमान

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. बहुत बढ़िया रचना
    बधाई.......

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