रौशनी में हर हुनर दिखता है और बेहतर हमें
साया दिखलाती है मिट्टी आईना बन कर हमें
चाक पे चढ़ जाता है अक्सर कोई दिल का गुबार
बैठे-बैठे यक-ब-यक आ जाते हैं चक्कर हमें
घुप अँधेरों में घुमाया दहशतों के आस-पास
साया दिखलाती है मिट्टी आईना बन कर हमें
चाक पे चढ़ जाता है अक्सर कोई दिल का गुबार
बैठे-बैठे यक-ब-यक आ जाते हैं चक्कर हमें
घुप अँधेरों में घुमाया दहशतों के आस-पास
और फिर हैवानियत ने दे दिया खंजर हमें
ज़ह्र पीना कब किसी का शौक़ होता है ‘नवीन’
दोसतों के वासते बनना पड़ा शंकर हमें
उन के जैसा बनने को हमने हवेली बेच दी
देख लो सैलानियों ने कर दिया बेघर हमें
नवीन सी. चतुर्वेदी
बहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण गजल,,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
बहुत खूब क्या बात है बहुत सुन्दर पक्तिया
जवाब देंहटाएंगजल का अपना प्रभाव बरक़रार है
सार्थक रचना
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बेहतरीन .......
जवाब देंहटाएंआप भी पधारो स्वागत है ...
pankajkrsah.blogspot.com
MAINE THALE BAITHE JO BHI RACHNAYEN PADHI VO KAMAAL HAIN AAP KA YE PRYAS KABILE TAREEF HAI YE HAM JAISE NAYE LOGON KO BAHUT KUCH SIKHYEGA NOOR SAHAB AUR TUFAIL SAHAB KO PRNAAM
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