14 फ़रवरी 2012

वेलेंटाइन स्पेशल - ये दुनिया कहाँ जा कर रुकेगी

वेलेंटाइन डे


लड़कियों की त्वचाएँ
केमिकल्स से भारी
और लड़कों की जेबें
उन केमिकल्स के बोझ से
हल्की होने लगती हैं 
तो वो समझ जाते हैं
कि वेलेंटाइन ज्वर अपने चरम पर है 


खुलेआम
चूमाचाटी देखने के अभ्यस्त
उनके नेत्रों को
जब क़दम क़दम पर
परम-भौंडे होने को आतुर बालकों में
उनके बच्चों के होने का
एहसास डराने लगता है
तो वो समझ जाते हैं
कि वेलेंटाइन ज्वर अपने चरम पर है 

अगल बगल से गुजरते वाहनों से जब
कुछ अनपेक्षित किलकारियाँ
कुछ अज़ीब क़िस्म की शून्य-ध्वनियाँ
कुछ विचित्र सी हरकतें
उन के माथे की शिकन को
और चौड़ा करने लगती हैं 
तो वो समझ जाते हैं
कि वेलेंटाइन ज्वर अपने चरम पर है 

सहेली के यहाँ
सत्यनारायण की पूजा के बाद
दोस्तों का गेट-टुगेदर भी है
माँ से ये कह कर
भोर की गई लड़की
जब शाम को थकी हारी लौटती है

तो
तो
तो

किसी ज़माने के 
वेलेंटाइन फेवरिट रह चुके वो 
समझ जाते हैं
कि
वेलेंटाइन ज्वर अपना असर दिखा गया ....................

और फिर
वो
गहरी सोच में
डूब कर सोचने लगते हैं
ये दुनिया कहाँ जा कर रुकेगी.....................
:- नवीन सी. चतुर्वेदी

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