हरक़तों पे टोकाटाकी है अभी तक गाँव में
नस्ल की तीमारदारी है अभी तक गाँव में
आप का कहना बजा है, गाँव में भी है हसद
फिर भी टकसाली तसल्ली है अभी तक गाँव में
जानते हो क्यूँ तरक़्क़ी गाँव तक पहुँची नहीं
वक़्त की रफ़्तार धीमी है अभी तक गाँव में
यूँ तो महँगाई ने रत्ती भर कसर छोड़ी नहीं
फिर भी मस्ती खूब सस्ती है अभी तक गाँव में
फिर भी मस्ती खूब सस्ती है अभी तक गाँव में
जिस में हिम्मत हो बना ले अपने सपनों के महल
कुदरतन मज़बूत धरती है अभी तक गाँव में
ये तो पुरखों के पसीने का ही जादू है फकत
हर तरफ सौंधास रहती है अभी तक गाँव में
हर तरफ सौंधास रहती है अभी तक गाँव में
ज़िन्दगी जिसके लिए थी ज़िन्दगी भर इम्तिहाँ
वो जनक-धरती की बेटी है अभी तक गाँव में
शह्र की तहज़ीब दाख़िल हो चुकी है पर 'नवीन'
एक हद तक फिर भी नेकी
है अभी तक गाँव में
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसमन महजूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122
2122 2122 212
har ek sher lajawawaab sirji.. mazaa aa gaya :)
जवाब देंहटाएंयूँ तो महँगाई ने रत्ती भर कसर छोड़ी नहीं
फिर भी मस्ती खूब सस्ती है अभी तक गाँव में
waah waah waah
Wah! Wah! Behtareen...
जवाब देंहटाएंKuch panktiyan to benamun hai...
Bahut Khoob....
क्या बात बहुत दिन बाद नये बिम्ब की ग़ज़ल पढ़ी , गाँव की उसी सादगी को संजोये हुए
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