पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - शेष धर तिवारी जी
सम्माननीय साहित्य रसिको
पहली और फिर पहली से दूसरी रचना आते आते काफ़ी वक्त लगा| अब साहित्य रसिकों को जैसे जैसे पता चल रहा है, वो अपनी अपनी रचनाएँ भेजने लगे हैं| इस शुभ कार्य में अपना अमूल्य योगदान देने के लिए आप सभी का पुन: पुन: आभार|
पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' की चौथी रचना हाजिर है आपके सामने| इस बार हम पढ़ते हैं एक ऐसे व्यक्ति को जो कि व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद साहित्य सेवा में लगे हुए हैं| इलाहाबाद की मिट्टी से जुड़े भाई श्री शेष धर तिवारी जी और मंचों से भी साहित्य की सेवा कर रहे हैं| आप अपना एक ब्लॉग [http://sheshdt.blogspot.com] भी चलाते हैं| प्रस्तुत रचना में आप के अनुभव की झलक स्पष्ट रूप से दृष्टि गोचर होती है|
एक दिवस आँगन में मेरे |
उतरे दो कलहंस सबेरे|
कितने सुन्दर कितने भोले |
सारे आंगन में वो डोले |१|
मैंने उनको खूब रिझाया |
दाना दुनका खूब खिलाया|
पर जब छूना चाहा मैंने |
फैलाए दोनों ने डैने |२|
उड़े गगन को छूना चाहें |
पायीं जैसे अपनी राहें|
अच्छी है यह प्रीत जगत की |
जैसे भगवन और भगत की |३|
दिल को मेरे तुम भाते हो |
जब भी मेरे घर आते हो|
दिल में मेरे रहते हो तुम |
कितने अच्छे लगते हो तुम|४|
सप्ताहांत में हम पढ़ेंगे एक नौजवान शायर की चौपाइयाँ|
देर से आने वाले साहित्य रसिकों को फिर से बताना चाहूँगा कि:-
समस्या पूर्ति की पंक्ति है : - "कितने अच्छे लगते हो तुम"
छंद है चौपाई
हर चरण में १६ मात्रा
अधिक जानकरी इसी ब्लॉग पर उपलब्ध है|
सभी साहित्य रसिकों का पुन: ध्यनाकर्षण करना चाहूँगा कि मैं स्वयँ यहाँ एक विद्यार्थी हूँ, और इस ब्लॉग पर सभी स्थापित विद्वतजन का सहर्ष स्वागत है उनके अपने-अपने 'ज्ञान और अनुभवों' को हम विद्यार्थियों के बीच बाँटने हेतु| इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|
पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई
सम्माननीय साहित्य रसिको
पहली और फिर पहली से दूसरी रचना आते आते काफ़ी वक्त लगा| अब साहित्य रसिकों को जैसे जैसे पता चल रहा है, वो अपनी अपनी रचनाएँ भेजने लगे हैं| इस शुभ कार्य में अपना अमूल्य योगदान देने के लिए आप सभी का पुन: पुन: आभार|
पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' की चौथी रचना हाजिर है आपके सामने| इस बार हम पढ़ते हैं एक ऐसे व्यक्ति को जो कि व्यवसाय से जुड़े होने के बावजूद साहित्य सेवा में लगे हुए हैं| इलाहाबाद की मिट्टी से जुड़े भाई श्री शेष धर तिवारी जी और मंचों से भी साहित्य की सेवा कर रहे हैं| आप अपना एक ब्लॉग [http://sheshdt.blogspot.com] भी चलाते हैं| प्रस्तुत रचना में आप के अनुभव की झलक स्पष्ट रूप से दृष्टि गोचर होती है|
एक दिवस आँगन में मेरे |
उतरे दो कलहंस सबेरे|
कितने सुन्दर कितने भोले |
सारे आंगन में वो डोले |१|
मैंने उनको खूब रिझाया |
दाना दुनका खूब खिलाया|
पर जब छूना चाहा मैंने |
फैलाए दोनों ने डैने |२|
उड़े गगन को छूना चाहें |
पायीं जैसे अपनी राहें|
अच्छी है यह प्रीत जगत की |
जैसे भगवन और भगत की |३|
दिल को मेरे तुम भाते हो |
जब भी मेरे घर आते हो|
दिल में मेरे रहते हो तुम |
कितने अच्छे लगते हो तुम|४|
सप्ताहांत में हम पढ़ेंगे एक नौजवान शायर की चौपाइयाँ|
देर से आने वाले साहित्य रसिकों को फिर से बताना चाहूँगा कि:-
समस्या पूर्ति की पंक्ति है : - "कितने अच्छे लगते हो तुम"
छंद है चौपाई
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पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई
Bahut achchhi samasyaa poorti hai
जवाब देंहटाएंrakesh Tewari
क्या बात है तिवारी जी चौपाई में भी कमाल कर दिया आपने।
जवाब देंहटाएंराकेश जी, धर्मेन्द्र जी.... धन्यवाद बंधुवर
जवाब देंहटाएंसुन्दर तुमने बिम्ब दिखाया ।
जवाब देंहटाएंजिसकी कविता में है छाया॥
लखने का है ढंग निराला ।
जिसको है कविता में ढाला ॥
पशु पंछी मानव भी रोता ।
बन्धन का भय सबको होता ।।
नहीं शेष जीवन हो जाये ।
इसी लिए डैने फैलाये॥
खूब डूब कर लिखते हो तुम ।
मुझको अच्छे लगते हो तुम ॥
शेष जी आपकी रचना -प्रक्रिया निर्बाध ऐसे ही चले -लेकिन कंचन जी तो पारस भी हैं और पारिजात भी हैं --इनका काव्य तो अविराम निर्झर है -इनको पुन: प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंइस गोष्ठी में पर जब तक शेष जी शेष हैं सब कुछ शेष है
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