26 जनवरी 2011

सड़क पर

चलें रीति से
नीति निभाते
मीत सड़क पर

हौले हौले कदम उठायें
इधर उधर भी नज़र फिरायें
बेमतलब ना दौड़ लगायें
अवरोधक पे
पल भर थम जायें
सोचें फिर रुक कर
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

जीवन है मारग जैसा ही
रखवाली की गरज इसे भी
जिसने इसकी अनदेखी की
उसकी हालत
सब जानें, होती
बद से भी बदतर
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

दौनों होते नये पुराने
दौनों के सँग लोग सयाने
दौनों 'निविदा' के दीवाने
दौनों सब से
लेते हैं हक से
अपना-अपना 'कर'
चलें रीति से - नीति निभाते - मीत सड़क पर

7 टिप्‍पणियां:

  1. यह अनुशासन, मन में लाये, चलो आज से।

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  2. वाह प्रवीण भाई, टिप्पणी - वो भी काव्यात्मक| जय हो|

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  3. bahut hee sundar rachna hai... anushashan bahut zaruri hai jeevan hai..rachna kavita ke anusashan aur jeevan ke anusashan donon se bani hai... :)

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  4. स्वप्निल जी, नूतन जी
    सराहना और उत्साह वर्धन के लिए सहृदय आभार

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