16 जनवरी 2011

छंद - नव-कुण्डलिया - IND SA 2nd ODI 15.01.11

बल्लेबाज़ों ने किया, पहले बन्टाधार|
फिर अफ्रीका ने करी, बेटिँग धुँआधार||
बेटिँग धुँआधार, हार का देखा मंज़र|
टी वी कर के ऑफ, लगाया हमने बिस्तर|
नीरू* ने फिर डेढ़ बजे जब फ़ोन लगाया|
तब जाना कि मुनाफ़ पटेल ने बेंड बजाया||

* my friend's name

10 टिप्‍पणियां:

  1. कुण्डलिया लिखने वाले तो
    इसे पढ़कर आँसू बहाते होंगे!
    --
    यह कुण्डलिया तो नहीं है
    मगर छक्का बहुत अच्छा है!
    --

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  2. आदरणीय शास्त्री जी सादर नमस्कार| गुरुमुख से सीखे हुए कुंडलिया के तीन प्रारूप जानता हूँ मैं, वो इस प्रकार हैं:-

    एक दम पुरानी कुण्डलिया
    पहली दो पंक्ति दोहा की
    तीसरी और चौथी पंक्ति रोला की
    पाँचवी और छठी पंक्ति छप्प्य की
    शुरू और अंत में समान शब्द

    गिरिधर कविराय से सन्दर्भित कुण्डलिया
    पहली दो पंक्ति दोहा की
    तीसरी से छठी पंक्ति रोला की
    शुरू और अंत में समान शब्द

    आज की बहु प्रचलित कुण्डलिया
    पहली दो पंक्ति दोहा की
    तीसरी से छठी पंक्ति रोला की
    शुरू और अंत में समान शब्द अनिवार्य नहीं, ज़्यादातर रचनाकार इस को लिख रहे हैं आजकल|

    इस के अलावा कुण्डलिया जैसे दिखने वाले पर दुर्लभ छंद 'अमृत-ध्वनि' को तो आपने पढ़ा ही होगा मेरे ब्लॉग पर| ध्यान न गया हो तो एक बार फिर से लिंक दे रहा हूँ:- http://thalebaithe.blogspot.com/2011/01/blog-post_14.html

    अपनी जानकारी के अनुसार मैने लिखा है| आपकी टिप्पणी के लिए आभार मान्यवर|

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  3. सुंदर प्रस्तुति नवीन भाई। आपको छंदों के बारे में इतना गहरा ज्ञान है। इस ज्ञान को हम जैसे लोगों में बाँटने के लिए एक ब्लॉग शुरू कर दीजिए छंदशास्त्र का।

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  4. काफ़ी रोचक। हमें तो पढकर मज़ा आया। हम भी कल बंद कर ही सो गए थे।

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  5. कुण्डलिया तो कुण्डलिया ही होती हैं नई या पुरानी का तो प्रश्न ही नहीं उठता!
    यह तो छन्दविशेष का नाम है!
    फिर भी आप अपने तर्कों से इसे कुण्डलिया छन्द मन रहे हैं तो मैं क्या कर सकता हूँ!

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  6. अच्छी रचना ,अच्छी समसामयिक अभिव्यक्ति, वो भी उस विषय पर जिस पर सामान्यत: साहित्यकार की लेखनी नहीं चलती, आप कुछ तो नया करने का प्रयास कर रहे हैं वगरना हम लोग तो उसी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। इस रचना को चाहे कुन्डली का ख़िताब मिले न मिले पर छंद बद्ध तो है। बधाई। मयंक जी की बातें उनसे ही समझने की कोशिश करें व्यक्तिगत संपर्क द्वारा,कुछ त्रुटि है तो आगे की रचनाओं में दुरूस्त हो जायेगी। बहरहाल बधाई।

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  7. धर्मेद्र भाई आभार उत्साह वर्धन के लिए| छंदों के आती प्राचीन विधा 'समस्या पूर्ति' को ध्यान में रखते हुए, वरिष्ठों के आदेशानुसार एक नया ब्लॉग शुरू कर दिया है कुछ दिन पहले| भाई उमा शंकर जी और आचार्य सलिल जी ने अपना अपना अमूल्य योगदान भी प्रदान कर दिया है| आपसे विनती है कि इस दिशा में यथोचित सहयोग प्रदान करें|

    जी मनोजभाई एक ऐतिहासिक मेच हो गया ये तो| बहुत बहुत आभार यहाँ पर भ्रमण करते रहने के लिए|

    संजय भाई, आभार आपके उत्साह वर्धन और सलाह के लिए| आपकी सलाह के अनुसार मैने अभी अभी आदरणीय शास्त्री जी से बात की है| दोनो ने एक दूसरे के मत को समझने का प्रयास किया है|

    आदरणीय शास्त्री जी, आपसे बात कर के बहुत अच्छा लगा| आपके कहे अनुसार कुण्डली वही होती है, जिस के शुरू और अंत में समान शब्द होते हैं| इस में कोई भी शक नहीं| मैने स्वयँ भी इस बाबत ऊपर की टिप्पणी में उल्लेख किया है| इस पोस्ट की कुण्डली तो एक और प्रयास है उन लोगों को ध्यान में रखते हुए जो थोड़ी रियायत के साथ इस छंद से जुड़े रहना चाहें| वैसे गिरिधर कविराय जी के बाद अगर किसी ने इस विधा पर काम किया है [बहुत ही छोटे से परिवर्तन के साथ] तो वो हैं भारतीय जनमानस के अंतर्मन में निवास करने वाले स्व. काका हाथरसी जी| आप वरिष्ठ हैं, मैं आपके विचारों का सम्मान पूर्वक स्वागत करता हूँ|

    साथ ही अपेक्षा रखता हूँ, करीब करीब ५-६ दशकों से न लिखे जाने वाले, या बहुत ही कम लिखे जाने वाले, कुण्डलिया की तरह दिखने वाले छंद 'अमृत ध्वनि' पर भी अपने अनुभव हमारे साथ बाँटें|

    मित्रो आप सभी का बहुत बहुत आभार|

    समस्या पूर्ति की लिंक:- http://samasyapoorti.blogspot.com/2010/12/blog-post.html
    अमृत ध्वनि की लिंक:- ठाले बैठे: छंद - अमृत-ध्वनि - मकर संक्रांति

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  8. हम तो ट्रेन में बैठ गये थे, सुबह पता चला।

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  9. बहुत सुन्दर नवीन जी।आपकी सज्जनता को प्रणाम।साथ ही मयंक जी की बात हवा मे नहीं उडा देनी चाहिये।आपको व आपके गुरुदेव को सादर नमन,परन्तु कुन्डल शब्द का अर्थ ही है "गोल" अर्थात जहाँ से शुरु वही पर खतम। हिन्दी मे नये प्रयोग तो होते ही रहते हैं, परन्तु मनमाने तरीके से नही,शास्त्र संगत तरीके से।आप ही बताइए यदि हर कोई अपनी सुविधानुसार नये नये छन्द बनाने लगे तो हुनर किस बात का? अभी मै कहूँ कि मैने एक नया छन्द बनाया है "नवदोहा",इसमे हर चरण मे १४ मात्राये हों।क्या ये हिन्दी से खिलवाड नही है।
    आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं,प्रयास कीजिये शास्त्र संगत लिखिये क्युकि मेरी समझ मे जो विधान शास्त्रो मे दिये गये हैं वह मनमाने नही बल्कि सभी रागों व विभिन्न स्वर लहरियों को ध्यान मे रखकर बताये गये हैं।उन्हे हम सिरे से नकार नहीं सकते।

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  10. चार साल पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं। रुचि दरशाने के लिये आभार।

    साहित्यम् पर बातों को हवा में नहीं उड़ाया जाता। उस समय न सिर्फ़ शास्त्री जी बल्कि और भी कई अग्रजों-अनुजों के साथ विचार-विमर्श हुआ था। उस दौरान चर्चा में रही कुछ बातों पर ध्यान देना अपेक्षित है।
    कुण्डलिया छन्द के मूल-प्रारूप से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती - सहमत।

    साथ ही काका हाथरसी ने हिन्दी साहित्य को जो रचनाएँ दीं और जो कि आज भी लोगों को कण्ठस्थ हैं, उन्हें इग्नोर भी कैसे किया जा सकता है।

    आज भी इस नये प्रारूप में धड़ल्ले से रचना-कर्म गतिमान है।

    भले ही यह नया प्रारूप पुराने प्रारूप से भिन्न है, मगर है तो छान्दसिक।

    किसी छान्दसिक प्रयास को 'छक्का' कहना शोभनीय नहीं लगता। बहुत असाहित्यिक सम्बोधन लगता है।
    गीत के बाद नवगीत आया उसी तरह कुण्डलिया को नव-कुण्डलिया कहने का प्रस्ताव रखा।

    लोग सहमत भी हो सकते हैं और असहमत भी। लोग सहमत होंगे तो नाम आगे बढेगा अन्यथा - बात यहीं समाप्त हो जायेगी। 'छक्का' कहना अप्रिय लगता है।

    नव-कुण्डलिया नाम चर्चा के बाद जोड़ा गया।

    साहित्यम् पर पढने के लिये बड़ी तादाद में न केवल कुण्डलिया बल्कि और भी अनेक छन्द उपलब्ध हैं।
    रुचि दरशाने के लिये पुन: आभार।

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