IPL में खिलाड़ियों के Gladiators की तरह बिकने पर संसदीय टिप्पणी के सन्दर्भ में:-,
हर दौर में 'अपने लिए माफिक' रहा है आदमी|
संक्षेप में कहिए अगर 'क्लासिक' रहा है आदमी|
किस दौर में खोए हो तुम, किस के लिए बेचैन हो|
अब तो स्वयँ बाजार में जा, बिक रहा है आदमी||
विचित्र ही कहा जाये इसे।
जवाब देंहटाएंहरिगीतिका में अभिव्यक्ति हेतु बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रवीण भाई और संजय भाई बहुत बहुत आभार
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