ऊँचे भवनों
पर सजे दीपक
लगें तारों से|१|
लाते थे हम
बमों के साथ साथ
हटरी, कभी|२|
बिकने लगे
शहरों में अब तो
मानव बम |३|
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
पर सजे दीपक
लगें तारों से|१|
लाते थे हम
बमों के साथ साथ
हटरी, कभी|२|
बिकने लगे
शहरों में अब तो
मानव बम |३|
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बिकने लगे
जवाब देंहटाएंशहरों में अब तो
मानव बम |३|
ये हाइकु वाकई में शानदार है। पहले प्रयास में इतना अच्छा लिख रहे हैं तो आगे तो कत्ल करेंगे आप।
sundar!
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र भाई - जिसने सिखाया, उस ने सराहा भी, मेरा परिश्रम सफल हुआ|
जवाब देंहटाएंअपर्णा जी शुक्रिया|
नवीन जी,
जवाब देंहटाएंआपने रचनाकार पर मेरी कविता पर टिप्पणी भेजी। धन्यवाद।
आपके ब्लॉग की कुछ कविताएं पसंद आईं। खासकर यह हाईकु...
बिकने लगे
शहरों में अब तो
मानव बम |३|
राकेश भाई स्वागत है आपका| आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार| स्नेह बनाए रखिएगा|
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