27 जुलाई 2013

हवा के ज़ोर पे ज़ोर अपना आज़मा कर देख - नवीन

हवा के ज़ोर पे ज़ोर अपना आज़मा कर देख
न उड़ सके तो कम-अज़-कम पतंग उड़ा कर देख
कम-अज़-कम - कम से कम 

वो कोई चाँद नहीं है जो दूर से दिख जाय
वो एक फ़िक्र हैउस को अमल में ला कर देख

इबादतों के तरफ़दार बच के चलते हैं
किसी फ़क़ीर की राहों में गुल बिछा कर देख

फिर इस जहान की मिट्टी पलीद कर देना
पर उस से पहले नई बस्तियाँ बसा कर देख

ये आदमी हैरिवाजों में घुल के रहता है
न हो यक़ीं तो समन्दर से बूँद उठा कर देख

वो इक ज़मीन जो बंजर पड़ी है मुद्दत से
वहाँ ख़ज़ाना गढ़ा है” – ख़बर उड़ा कर देख

लिबास ज़िस्म की फ़ितरत बदल नहीं सकता
नहीं तो बजते नगाड़ों के पास जा कर देख

मुहब्बतों की फ़ज़ीहत ठठा के हँसती है
किसी यतीम के सीने पे सर टिका कर देख

सिवा-ए-स्वाद मशक़्क़त के फ़ायदे भी हैं
न हो यक़ीन अगर तो गरी चबा कर देख
सिवा-ए-स्वाद - स्वाद के सिवाय , मशक़्क़त - मेहनत , गरी - नारियल के अन्दर की गरी 

तनाव सर पे चढ़ा हो तो बचपने में उतर
ख़ुद अपने हाथों से पानी को छपछपा कर देख  

:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ.
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22

5 टिप्‍पणियां:

  1. 'वो इक ज़मीन जो बंजर पड़ी है मुद्दत से
    “वहाँ ख़ज़ाना गढ़ा है” – ख़बर उड़ा कर देख'
    Well said!

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  2. बेहतरीन गजल...
    बहुत ही बढ़ियाँ....
    सुन्दर
    :-)

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  3. तनाव सर पे चढ़ा हो तो बचपने में उतर
    ख़ुद अपने हाथों से पानी को छपछपा कर देख

    पूरी की पूरी गज़ल शानदार पर ये वाला तो सीधा बचपन में ले गया ।

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  4. इबादतों के तरफ़दार बच के चलते हैं
    किसी फ़क़ीर की राहों में गुल बिछा कर देख

    बहुत गहन अभिव्यक्ति ....!!
    बधाई एवं शुभकामनायें .....!!

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