नमस्कार
मानवीय समाज का एक कड़वा सच - साहित्य-सेवियों की औलादें जीवन में तो अपने अभिभावकों को निरर्थक समझती ही हैं, मरणोपरान्त भी अक्सर उन के द्वारा अर्जित / निर्मित ज्ञान-अनुभव को रद्दी वाले को सुपुर्द कर देती हैं। कभी-कभी कोई अच्छे बच्चे दो-एक बार कोई रस्म टाइप निभा भी देते हैं। इसीलिए साहित्य के लिये अन्तर्जाल बहुत ही उपयोगी टूल है। इसी समाज में कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो अपने पूर्वजों के साहित्यिक प्रयासों को आगे बढ़ाते हैं, शेखर उन में से एक है। शेखर के दादा जी स्व. डा. शंकर लाल 'सुधाकर' जी के लिये इन्हों ने ब्लॉग बनाया, कविता-कोश में शामिल करवाया, और स्मृति रूप स्वयं भी यदा-कदा साहित्यिक गतिविधियों में सम्मिलित होते रहते हैं। आज की पोस्ट में हम पढ़ते हैं शेखर चतुर्वेदी के दोहे, जिस में हास्य-रस भी शामिल है:-
प्रथम पूज्य गणराज
को, सदा नवाकर शीश
शुभारम्भ कर काज
फिर,
भली करेंगे ईश
मातु-पिता के साथ में, बीते
जो दिन-रैन
अब तो दुर्लभ हो गये, वह
मस्ती वह चैन
जब मैं ख़ुद पापा
बना,
हुआ मुझे एहसास
मेरे पापा सा नहीं,
जग में कोई ख़ास
डर मत किसी गुलेल से, होने दे आगाज़
यहाँ निशाने पे रही , हर ऊँची परवाज़
यहाँ निशाने पे रही , हर ऊँची परवाज़
नगर नगर फेरा किया, घर
घर देखा जाय
मिला न ऐसा वीर जो
, पत्नी से भिड़ पाय
देख देख कर
छोरियाँ,
मन आवारा होय
मान प्रतिष्ठा ता
समय,
बहुत सतावै मोय
बकरी सा मिमिया रहा, दशा
हुई गम्भीर
दो नैनों में खो
गया,
महाबली रणवीर
मन से अब तक टीन
हैं ,
फ़ितरत से शौकीन
दिल घायल हो जाय
जब, अंकल कहें हसीन
हम भी गरजे थे
सुनो,
पत्नी पर इक बार
खाने के लाले पड़े, भूल
गये तकरार
चाहे तू कहता रहे, तू
ही है सरदार
पर, बिन मैडम ना चले, घर हो या सरकार
पर, बिन मैडम ना चले, घर हो या सरकार
आप भी सहमत होंगे कि शेखर के दोहों में कृत्रिमता का लगभग पूरी तरह से अभाव है, काव्य में इसे बहुत बड़ा गुण माना जाता है, समझने वाले इसे बख़ूबी समझते भी हैं। संस्कार, परिवार और सामन्य जीवन-व्यवहार इन दोहों के केन्द्र में है।"यहाँ निशाने पे रही
, हर ऊँची परवाज़" वाले दोहे के लिये शेखर को स्पेशल बधाई। शेखर ने इस दोहे को अनेक बार लिख कर केंसल किया तब जा कर ऐसा बन पाया है। तभी तो कहते हैं कि "साहित्य साधना की विषय-वस्तु है"।
तो साथियो आप इन दोहों का आनन्द लें, अपने सुविचार दोहाकार तक पहुँचाएँ और मैं बढ़ता हूँ अगली पोस्ट की तरफ़।
इस आयोजन की घोषणा सम्बन्धित पोस्ट पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें
आप के दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें
आप के दोहे navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें
bahut shandar kaviver shekhar
ReplyDeletebahut shandar kavivar shekhar
ReplyDeleteआदरणीय शेखर चतुर्वेदी जी उत्तम मनोहारी दोहावली रची है आपने, कथ्य शिल्प भाव बेजोड़ है, पढ़ते पढ़ते एकाएक एक दोहा तैयार हो गया जो आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ स्वीकार करें.
ReplyDeleteदोहों में गंभीरता, की अद्भुत है बात
उसपर सुन्दर हास्य की, बरसी है बरसात
सुन्दर दोहावली हेतु मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
भाई शेखर जी के दोहों पर एक बात अवश्य कहूँगा कि आपका प्रयास सहज एवं सप्रवाह है. यह सही है कि रचना का मूल सदा स्व-स्फूर्त होता है. बाद में रचनाकार की साधना के अनुरूप शब्द चयन की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है. किसी रचनाकार द्वारा हुए आरोपित शब्द समझ में आ जाते हैं. यहीं शेखरजी के दोहे सुगढ़ दीखते हैं. आपको हृदय की गहराइयों से बधाइयाँ.
ReplyDeleteप्रस्तुत दोहे पर मेरी पुनः बधाई --
जब मैं ख़ुद पापा बना, हुआ मुझे एहसास
मेरे पापा सा नहीं, जग में कोई ख़ास
शुभ-शुभ
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ReplyDeleteएक बार फिर से लाजवाब दोहे ...
ReplyDeleteआनद आ गया ...
जब मैं ख़ुद पापा बना, हुआ मुझे एहसास
ReplyDeleteमेरे पापा सा नहीं, जग में कोई ख़ास
डर मत किसी गुलेल से, होने दे आगाज़
यहाँ निशाने पे रही , हर ऊँची परवाज़
सहज अभिव्यक्ति...ये दोनो दोहे शानदार...सादर बधाई !
डर मत किसी गुलेल से, होने दे आगाज़
ReplyDeleteयहाँ निशाने पे रही , हर ऊँची परवाज़
सहज अभिव्यक्ति... सभी दोहे शानदार...सादर बधाई!
इन दोहों की सहजता ही इनकी सबसे बड़ी खूबी है। बहुत बहुत बधाई शेखर जी को इन शानदार दोहों के लिए।
ReplyDeleteसारे ही मज़ेदार ,
ReplyDeleteयह भी ठीक है -
'बिन मैडम ना चले, घर हो या सरकार'
आदरणीय शेखर जी आपके सभी दोहे मन को भा गए इन मन मोहक दोहों के लिए आपको बहुत बहुत बधाई,
ReplyDeleteबहुत अच्छे शेखर भाई बिना Madam के सर्कार नहीं चलती बहुत बढ़िया - जय हो
ReplyDeleteSABHI DOHON KA POORA ANAND LENE KE BAAD AAP KO BADHAI ....PRANAM
ReplyDeleteडर मत किसी गुलेल से, होने दे आगाज़
ReplyDeleteयहाँ निशाने पे रही , हर ऊँची परवाज़
aur aakhiri doha to bas MARO KAHIn LAGE WAHIn WAALA HAI.
Sundar dohoN ke liye badhaaiyaaN Shekhar ji.
प्रिय श्री शेखर चतुर्वेदी जी, दोहों की सादगी ने मन मोह लिया.....बधाई
ReplyDeleteऐसे दोहे सुन यदि हम बहके तो हमारा क्या दोष ?
मातु-पिता के साथ में, बीते जो दिन-रैन
अब तो दुर्लभ हो गये, वह मस्ती वह चैन
@ बरगद पीपल का जिसे, है मालूम महत्व
वही जान सकता यहाँ, क्या है जीवन-सत्व
जब मैं ख़ुद पापा बना, हुआ मुझे एहसास
मेरे पापा सा नहीं, जग में कोई ख़ास
@ आता जब दायित्व सिर, तब होता अहसास
पिता सुखों को बाँटता, सह-सह कर संत्रास
डर मत किसी गुलेल से, होने दे आगाज़
यहाँ निशाने पे रही , हर ऊँची परवाज़
@ हर ऊँची परवाज को, लगी हजारों चोट
पर सूरज सूरज रहा, है बादल की ओट
नगर नगर फेरा किया, घर घर देखा जाय
मिला न ऐसा वीर जो , पत्नी से भिड़ पाय
@ जो पत्नी से भिड़ गया, कब मर हुआ शहीद
अजी मुहर्रम छोड़िये, मनी तुरत ही ईद
देख देख कर छोरियाँ, मन आवारा होय
मान प्रतिष्ठा ता समय, बहुत सतावै मोय
@आम आम जब तक रहे, तब तक ही उल्लास
आम हुआ ज्यों खास तब, सब खुशियाँ खल्लास
बकरी सा मिमिया रहा, दशा हुई गम्भीर
दो नैनों में खो गया, महाबली रणवीर
@बिल्ली मौसी शेर की, लगती बात विचित्र
खैर मनाये कब तलक, लेकिन बकरी मित्र ?
मन से अब तक टीन हैं , फ़ितरत से शौकीन
दिल घायल हो जाय जब, अंकल कहें हसीन
@अंकल ऐसा शब्द जो, सदा चिढ़ाये मोय
दरपन देखूँ बारहा, दिल दहाड़ कर रोय
हम भी गरजे थे सुनो, पत्नी पर इक बार
खाने के लाले पड़े, भूल गये तकरार
@पड़े सिर्फ लाले तुम्हें , खाने के !! सौभाग्य
वरना बेघर अनगिनत,भोग रहे वैराग्य
चाहे तू कहता रहे, तू ही है सरदार
पर, बिन मैडम ना चले, घर हो या सरकार
@ मैं डमरू बन बज रहा, हूँ मैडम के हाथ
डिगा-डिगा डम-डम कहूँ, होकर आज अनाथ
बहुत शुक्रिया मित्र परेश व मधुरम !!
ReplyDeleteअरुण भाई ! दोहे पसंद करने और सुन्दर टिपण्णी के लिए आपका धन्यवाद !
ReplyDeleteसौरभ जी ! आपके बहुमूल्य शब्द हमें बहुत उर्जा देते हैं.
ReplyDeleteआपका शुक्रिया !! प्रस्तुत दोहा दिल का सहज भाव है जो मुझे महसूस हुआ और जैसा की नवीन भाईसाब ने आदेश किया था की कुछ भावनात्मक लिखा जाय तो यह पहला सहज भाव ह्रदय में उत्पन्न हुआ !!
धन्यवाद दिगंबर नासवा जी !!
ReplyDeleteऋता जी ! आपको मेरा प्रयास पसंद आया. आपका शुक्रिया !
ReplyDeleteसज्जन भाई ! कल्पना के सागर में कूद कर सुन्दर मोती ढून्ढ लाना शायद मेरे बस का ही नहीं है. मुझे सहज roop se जो samajh आया use pesh किया है. आपके pyaar का शुक्रिया !!!
ReplyDeleteप्रतिभा जी ! आपका शुक्रगुजार हूँ !!!
ReplyDeleteसत्यनारायण सिंह जी ! हौसला अफजाई का शुक्रिया !!
ReplyDeleteभाई मनोज कौशिक जी ! मेरे लिखे दोहे आपको आनंद दाई प्रतीत हुए .... लिखना सफल हुआ . प्रणाम
ReplyDeleteSD Tiwari saab !!
ReplyDeleteAApka bahut bahut dhanyavaad !!
Madam ka hai zamana...
श्याम गुप्त जी ! धन्यवाद !!
ReplyDeleteगणेश को गणराया या गणराज भी कहा जाता है.
अरुण कुमार निगम जी ! आपकी विशेष टिपण्णी के लिए आपका बहुत शुक्र गुज़ार हूँ !!!
ReplyDeleteजिस तरह से आपने एक एक दोहे को उत्तरित किया है , मेरे पास शब्द नहीं हैं ...........मुझे कितना सुकून मिला .
और हाँ , वैराग्य न भोगना पड़े , अब इस खतरे से भी वाकिफ हो गया !!!
क्या बात है !
प्रियवर भाई शेखर चतुर्वेदी जी
अलग अलग रंग के अच्छे दोहों के लिए बधाई !
# और हां, मान प्रतिष्ठा के लिए तो पूरी उम्र है बंधु !
:)
शुभकामनाओं सहित...
राजेन्द्र स्वर्णकार