हर आदमी की होती है अपनी अलग इक एंटिटी|
दुनिया मगर अक्सर समझ पाती न ये रीयेलिटी |१|
हिन्दोस्ताँ को जगदगुरु यूँ ही नहीं कहते सभी|
डायवर्सिटी होते हुए भी है यहाँ पर यूनिटी|२|
गिनती पहाड़ों से भी आगे है गणित का दायरा|
माइनस करे एनीमिटी और प्लस करे ह्यूमेनिटी|३|
ताउम्र जो साहित्य की आराधना करते रहें|
क्यूँ भूल जाती हैं उन्हें सरकार और सोसाइटी|४|
सीखा है जो 'कल' से वही हाजिर किया 'कल' के लिए|
अब आप को करना है तय, कैसी है ये वेराइटी|५|
मुसतफ़इलुन मुसतफ़इलुन मुसतफ़इलुन मुसतफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
बहरे रजज मुसम्मन सालिम
बड़ी सुन्दर पोयेट्री।
ReplyDeleteगिनती पहाड़ों से भी आगे है गणित का दायरा|
ReplyDeleteमाइनस करे एनीमिटी और प्लस करे ह्यूमेनिटी|३|
नवीन जी बहुत सुन्दर वैराइटी पेश की है। अंग्रेजी शब्दों का दोहों मे पहली बार प्रयोग देखा। बधाई।
यह भी अच्छा कहा सेंसिबिली विथ सेंस्टिविटी.
ReplyDelete2122 वज्न पर नयी वेरायटी के साथ पेश की गयी इस गजल को पसंद करते हुए मेरा उत्साह वर्धन करने वाले सभी साहित्यिक शुभ चिंतकों का सहृदय आभार
ReplyDeleteनए कलेवर वाली इस ग़ज़ल से बन गई है आपकी नई आइडेंटिटी।
ReplyDeleteमहेंद्र भाई साब आप की बहुमूल्य टिप्पणी मेरे परिश्रम का पारितोषिक है| बहुत बहुत आभार मान्यवर}
ReplyDeleteBadiya hai Sir , Wah wah
ReplyDeleteBadiya hai Sir , Wah wah
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