संशय मन का मीत ना, जानत चतुर सुजान|
इस में कोई गुण नहीं, ये है अवगुण ख़ान||
ये है अवगुण ख़ान, करे नुकसान भयानक|
मान मिटावत, शान गिरावत, द्वेष प्रचारक|
द्वंद बढ़ावत, चैन नसावत, शांति करे क्षय|
मन भटकावत, जिय झुलसावत, बैरी संशय||
इस में कोई गुण नहीं, ये है अवगुण ख़ान||
ये है अवगुण ख़ान, करे नुकसान भयानक|
मान मिटावत, शान गिरावत, द्वेष प्रचारक|
द्वंद बढ़ावत, चैन नसावत, शांति करे क्षय|
मन भटकावत, जिय झुलसावत, बैरी संशय||
संशय मन का मीत ना, जानत चतुर सुजान|
जवाब देंहटाएंइस में कोई गुण नहीं, ये है अवगुण ख़ान||
...बहुत बढ़िया प्रेरक पंक्तियाँ ..
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना..
जवाब देंहटाएंआभार कविता जी
जवाब देंहटाएंआभार कैलाश जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेरक रचना ..कल आपके ब्लॉग से तीन चार पोस्ट ली है चर्चामंच के लिए .. आप मंच में आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करें ...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा कुण्डली..
जवाब देंहटाएंभाई समीर लाल जी
जवाब देंहटाएंये कुण्डली की तरह दिखता ज़रूर है
परन्तु
ये एक दुर्लभ छन्द है
जिसका नाम है
@अमृत ध्वनि छन्द@
सराहना के लिए आभार बन्धुवर
अच्छा छंद।
जवाब देंहटाएंसंशय अग्निसम है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अतुल जी|
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने प्रवीण भाई, सही में 'संशय' अग्नि सम ही होता है| धन्यवाद बन्धुवर|
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