13 फ़रवरी 2011

रूप चंद्र शास्त्री जी का हास्य-व्यंग्यात्मक लेख दोहों के ऊपर


दोहा लिखिएः वार्तालाप

आज मेरे एक धुरन्धर साहित्यकारमित्र की चैट आई-
धुरन्धर साहित्यकार- शास्त्री जी नमस्कार!
मैं- नमस्कार जी!
धुरन्धर साहित्यकार- शास्त्री जी मैंने एक दोहा लिखा है, देखिए! मैं- जी अभी देखता हूँ!
(
दो मिनट के् बाद)
धुरन्धर साहित्यकार- सर! आपने मेरा दोहा देखा!
मैं- जी देखा तो है! क्या आपने दोहे लिखे हैं? धुरन्धर साहित्यकार- हाँ सर जी!
मैं- मात्राएँ नही गिनी क्या? धुरन्धर साहित्यकार- सर गिनी तो हैं!
मैं- मित्रवर! दोहे में 24 मात्राएँ होती हैं। पहले चरण में 13 तथा दूसरे चरण में 11! धुरन्धर साहित्यकार- हाँ सर जी जानता हूँ! (उदाहरण)
( चलते-चलते थक मत जाना जी,
साथी मेरा साथ निभाना जी।)
मैं- इस चरण में आपने मात्राएँ तो गिन ली हैं ना! धुरन्धर साहित्यकार- हाँ सर जी! चाहे तो आप भी गिन लो!
मैं- आप लघु और गुरू को तो जानते हैं ना! धुरन्धर साहित्यकार- हाँ शास्त्री जी!
मैं लघु हूँ और आप गुरू है!
मैं-वाह..वाह..आप तो तो वास्तव मेंधुरन्धर साहित्यकार हैं!
धुरन्धर साहित्यकार- जी आपका आशीर्वाद है!
मैं-भइया जी जिस अक्षर को बोलने में एक गुना समय लगता है वो लघु होता है और जिस को बोलने में दो गुना समय लगता है वो गुरू होता है! धुरन्धर साहित्यकार-सर जी आप बहुत अच्छे से समझाते हैं। मैंने तो उपरोक्त लाइन में केवल शब्द ही गिने थे! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
कुछ ख्याति प्राप्त दोहे:-


आदरणीय निदा फ़ाज़ली जी का दोहा:-

बच्चा बोला देख के,
२२ २२ २१ २ = १३
मस्जिद आलीशान|
२११ २२२१ = ११
अल्ला तेरे एक को,
२२ २२ २१ २ = १३
इत्ता बड़ा मकान||
२२ १२ १२१ = ११


आदरणीय कबीर दास जी का दोहा:-

कबिरा खड़ा बज़ार में,
११२ १२ १२१ २ = १३
माँगे सबकी खैर|
२२ ११२ २१ = ११
ना काहू से दोसती,
२ २२ २ २१२ = १३
ना काहू से बैर||
२ २२ २ २१ = ११


आदरणीय कुँवर कुसुमेश जी का दोहा:-

लाई चौदह फरवरी,
२२ २११ १११२ = १३
वैलेण्टाइन पर्व|
२२२११ २१ = ११
बूढ़े माथा पीटते ,
२२ २२ २१२ = १३
नौजवान को गर्व||
२१२१ २ २१ = ११

दोस्तो अगली समस्या पूर्ति हम लोग दोहों पर ले रहे हैं, वो भी होली के त्यौहार को ध्यान में रखते हुए|
दूसरी समस्या पूर्ति की पंक्ति की घोषणा जल्द ही की जाएगी| तब तक आप सभी शास्त्री जी के आलेख का आनंद उठाईएगा|

विशेष:- इस आयोजन का मूल उद्देश्य, क्लिष्टताओं के कारण भारतीय छंद विधा से विमुख हो चुके या हो रहे साहित्य प्रेमियों में फिर से रुझान जगाना है| यहाँ कोई विद्वत प्रतिस्पर्धा नहीं है| घोषणा होने से पूर्व यदि कोई अग्रज अपने विचार / लेख भेजना चाहें, तो उन का सहर्ष स्वागत है|

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