![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSyfryYV1geqFqDv23S9ua_JyqIUTDl4RK5d9DAR0E_H-FKFHcE2jflErQle8d8WShoVKZZGQ4_wdS4Pw9Dw0HlM5LID6NqJuPad0YuzPZdn_W61tkoSqmhEq_dI1L5NkfqJz6TgbipcU/s320/DEVMANI+PAANDEY.jpg)
तेरे सपने, तेरे रँग
क्या-क्या मौसम मेरे सँग
आँखों से सब कुछ कह दे
ये तो है उसका ही ढँग
लमहे में सदियाँ जी लें
हम तो ठहरे यार मलँग
जीवन ऐसे है जैसे
हाथों में बच्चे के पतँग
गुल से ख़ुश्बू कहती है
जीना मरना है इक सँग
कैसे गुज़रे हवा भला
शहर की सब गलियाँ हैं तँग
:-देवमणि पांडेय
छोटी बह्र पर ग़ज़ल कहने का टेढ़ा काम और ऐसे खूबसूरत शेर। बधाई।
जवाब देंहटाएंछोटे बहर की शानदार ग़ज़ल के लिए देवमणि जी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंsankshipt sundar..
जवाब देंहटाएंआँखों से सब कुछ कह दे
जवाब देंहटाएंये तो है उसका ही ढँग
Wah wah !!!