भारतीय नव वर्ष -- नव-संवत्सर या गुड़ी पड़वा या युगाब्द - डा. श्याम गुप्त

        
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस पर लगभग ..1 अरब, 96 करोड़... वर्ष (1 अरब, 95 करोड़, 58 लाख, 85 हजार, 125 )  पहले इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की शुरुआत का दिन तय किया, इसलिए इसे प्रतिपदा कहा गया अर्थात प्रथम पग या पद ... पहली तिथि यह गणना भारतीय ज्योतिष-विज्ञान के द्वारा निर्मित है। आधुनिक वैज्ञानिक भी अब सृष्टि की उत्पत्ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक बता रहे है। इस दिन आदि-शक्ति के आदेश पर  ब्रह्मा जी ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। इस दिन को 'नव संवत्सर' या 'नव संवत' के नाम से भी जाना जाता है| सूर्य को वत्स कहा गया है ..आदित्य ..आदि-शक्ति, आदि-प्रकृति अदिति का वत्स; प्रथम आदित्य ...प्रथम सूर्योदय से ही नव वर्ष प्रारम्भ माना गया जो चक्रीय व्यवस्था से प्रतिवर्ष उसी प्रकार नववर्ष का प्रारम्भ करेगा ...अतः संवत्सर कहा गया...
     
              चैत्रे मासि जगत् ब्रह्म ससर्ज प्रथमे हनि 
                  
शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति॥ 



            चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता हैं, इस दिन हिन्दू-नववर्ष का आरम्भ होता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होती है।युग और आदि शब्दों की संधि से बना है युगादि   आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगादि और महाराष्ट्र में यह पर्व ग़ुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। विक्रमादित्य द्वारा शकों पर प्राप्त विजय तथा शालिवाहन द्वारा उन्हें भारत से बाहर निकालने पर इसी दिन आनंदोत्सव मनाया गया इसी विजय के कारण प्रतिपदा को घर-घर परध्वज पताकाएं तथागुढि़यां लगाई जाती है   गुड़ी का मूल ...संस्कृत के गूर्दः से माना गया है जिसका अर्थ... चिह्न, प्रतीक या पताका ....पतंग....आदि-   कन्नड़ में कोडु जिसका मतलब है चोटी, ऊंचाई, शिखर, पताका  आदि मराठी में भी कोडि का अर्थ है शिखर, पताका। हिन्दी-पंजाबी में गुड़ी का एक अर्थ पतंग भी होता है। आसमान में ऊंचाई पर फहराने की वजह से इससे भी पताका का आशय स्थापित होता है।

            भारत भर के सभी प्रान्तों में यह नव-वर्ष विभिन्न नामों से मनाया जाता है जो दिशा स्थानानुसार सदैव मार्च-अप्रेल के माह में ही पड़ता है | गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।

       चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसन्त ऋतु में आती है। शरद ऋतु के प्रस्थान ग्रीष्म के आगमन से पूर्व वसंत अपने चरम पर होता है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है। चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढ़ना शुरू करता है तभी से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी गई है।  ठिठुरती ठंड मे पड़ने वाला ईसाई नववर्ष पहली जनवरी से भारतवंशियों का कोई सम्बन्ध नही है   फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
            विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिध्दांत ब्रह्माण्ड के ग्रहों नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना सनातन राष्ट्र भारत की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है  ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में  नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन  विस्तार से दिया गया है। यही पृथ्वी का सनातन नव-वर्ष है |

आइये एक और यादगार दोहा-संकलन का हिस्सा बनें

होली पर कई सारे मित्रों ने संकेत दिया कि इस बार दोहा संकलन क्यूँ नहीं? कुछ तो मार्च की व्यस्तताएँ थीं और कुछ मैंने सोचा कि होली और दिवाली के दोहा संकलनों पर एक-एक बार काम हो ही चुका है; तो क्यूँ न इस बार किसी अन्य विषय को टच किया जाये। इस महीने की ग्यारहवीं तारीख़ यानि 11 अप्रेल 2013 गुरुवार को  संवत्सर यानि गुढ़ी पड़वा यानि विक्रम संवत आधारित नव-वर्ष है। इस पोस्ट को अधिक बड़ी न बनाते हुये आप सभी से विनम्र निवेदन करता हूँ कि इस विशिष्ट तिथि के बारे में अपनी-अपनी जानकारियाँ

हरकत न हो तो आब-ओ-हवा भी न टिक सके - नवीन

हरकत न हो तो आब-ओ-हवा भी न टिक सके
आमद बग़ैर माल-ओ-मता भी न टिक सके

रंजिश कि प्यार कुछ तो है रेत और लह्र में
साहिल पे मेरे पाँव ज़रा भी न टिक सके

हद में रहे बशर तो मिलें सौ नियामतें
हद भूल जाये फिर तो अना भी न टिक सके

पानी बग़ैर टिक न सकेगी धरा, मगर
पानी ही पानी हो तो धरा भी न टिक सके

सच में ये आदमी जो निभाये मुहब्बतें
टकसाल छोड़िये जी टका भी न टिक सके

बदहाल आदमी को डरायेगी मौत क्या
नंगा हो सामने तो बला भी न टिक सके

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन 
221 2121 1221 212 

बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ