विज्ञान के आगे चले ये हो कसौटी काव्य की

साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

पिछला हफ़्ता तो पूरा का पूरा दिवाली के मूड वाला हफ़्ता रहा| रियल लाइफ हो या वर्च्युअल, जहाँ देखो बस दिवाली ही दिवाली| शुभकामनाओं का आदान प्रदान, पटाखे और मिठाइयाँ| उस के बाद भाई दूज, बहनों का स्पेशल त्यौहार| इस सब के चलते हम ने पोस्ट्स को एक बारगी होल्ड पर रखा और इसी दरम्यान अष्ट विनायक दर्शन को निकल लिए|

नज़रें लड़ीं जिससे, वही, भैया बता के चल पडी

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन


मंच के सभी कुटुम्बियों को एक दूसरे की तरफ़ से 
दीप अवलि 
की हार्दिक शुभकामनाएँ



हरिगीतिका छंद पर आधारित इस आयोजन में आज हम हास्य आधारित छंद पढेंगे| क्यूँ भाई, हास्य रस सिर्फ होली पर ही होता है क्या? दिवाली पर भी तो हँस सकते हैं हम.....................

दीपावली के दोहे - गोरी तुझसे फूटते फुलझड़ियों से रंग - नवीन

प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

दसों दिशा जगमग हुईं, धरती-गगन ललाम|
पहुँचे थे जिस क्षण अवध, लक्ष्मण-सीता-राम|१|

बम्ब पटाखे फूटते, कोलाहल के संग|
मनमोहक लगते मगर, फुलझड़ियों के रंग|२|

सजनी सजना से कहे, सजन सजाओ साज|
मुझे लादिए प्रीत से, धनतेरस है आज|३|

प्रीतम-पाती पढ़ रहे, प्रीत पारखी नैन|
शब्दों में ही ढूंढते, दीप अवलि सुख दैन|४|

कल-कल कहते कट गया, कितना काल कराल|
इस दीवाली तो सजन, दिल को कर खुशहाल|५|

अत्युत्तम, अनुपम, अमित, अद्भुत, अपरम्पार|
सुंदर, सरस, सुहावना, दीपों का त्यौहार|६|

यही बात कहते रहे, हर युग के विद्वान्|
दीपक-ज्ञान जले तभी, मिटे तमस-अज्ञान|७|

बुधिया को सुधि आ गयी, अम्मा की वो बात|
दिल में रहे उमंग तो, दीवाली दिन-रात|८|

दीवाली का है यही, दुनिया को सन्देश|
अपनों को भूलो नहीं, देश रहो कि विदेश|९|

चूनर साड़ी ओढ़ना, बिंदिया, कंगन संग|
गोरी तुझसे फूटते फुलझड़ियों से रंग|१०|

सजा थाल पूजा करें, साथ रहे परिवार|
हर घर में ऐसे मने, दीवाली त्यौहार|११|

रसबतियाँ बतिया रहे, ले हाथों में हाथ|
ये दीवाली ख़ास है, दिलदारा के साथ|१२|

बम्ब पटाखे फुलझड़ी, धरे अनोखे रंग|
खील बताशे खो रहे, पर, हटरी के संग|१३|

भरे पड़े हर सू, यहाँ, ऐसे भी इंसान|
फुस्सी बम से हौसले, रोकिट से अरमान|१५| 

बहना की कुंकुम लगे, हर भाई के माथ|
मने दूज का पर्व भी, दीवाली के साथ|१६|

मातु, पिता, भाई, बहन, सजनी, बच्चे, यार|
जब-जब ये सब साथ हों, तब-तब है त्यौहार|१७|

रमा चरण पर राखिये, श्रद्धा सह निज माथ|
दीपावली मनाइए, दीप अवलि  के साथ|१८|

दिवाली / दीवाली के दोहे

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

वातायन - ग़ज़ल - प्राण शर्मा / छंद - सौरभ पाण्डेय.

शौक़  से  पढ़िए मेरे दिल की किताब - प्राण शर्मा

प्राण शर्मा

हर किसी के घर का रखते हैं हिसाब
ख़ुफ़िया से होते हैं जिनके दिल जनाब

पूछता  हूँ  आपसे  कि  गाली  में
आपको अच्छा लगेगा  क्या  जवाब

खैरख्वाहों  में  भी  वो  खामोश  है
दिल में सच्चाई जो हो तो दे जवाब

आपको  रोका  नहीं  मैंने  कभी
शौक़  से  पढ़िए मेरे दिल की किताब

बात  सोने  पर सुहागा  सी  लगे
सादगी  के साथ हो कुछ तो हिजाब

छोड़ अब दिन-रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब

वास्ता खुशियों से पड़ता है ज़रूर
कौन रखता है मगर उनका हिसाब

धुंध  पस्ती  की  हटे  तो बात हो
कुछ नज़र आये दिलों के आफताब

कोई क्या पूछे कभी उससे कि वो
माँगने  पर  भी  नहीं  देता जवाब
 
देखने  में  भी  तो लगता है हसीं
सिर्फ  खुशबू  ही नहीं देता गुलाब

रोज़ ही इक ख्वाब से आये हैं तंग
`प्राण` परियों वाला हो कोई तो ख्वाब
:- प्राण शर्मा


========================================

सौरभ पाण्डेय



जीवन-सार
नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे  अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये|

साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये|

बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान,  पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये|

राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये|१|

 
हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा|

हो खरा वो राजसिक, तो आन-मान-प्राण दे
जिये-मरे जो सत्य को, तनिक न हो डरा|
 
हो डरा मनुष्य लगे, जानिये हिंसक उसे
तमस भरा विचार स्वार्थ-द्वेष हो भरा|

हो भरा उत्साह और सुकर्म के आनन्द से-
वो मनुष्य सत्यसिद्ध, ज्ञानभूमि हो धरा|२|

 
दीखते व्यवहार जो हैं व्यक्ति के संस्कार वो
नीति-धर्म साधना से, कर्म-फल रीतते|

रीतते हैं भेद-मूल, राग-द्वेष, भाव-शूल
साधते विज्ञान-वेद, प्रति पल सीखते|

सीखते हैं भ्रम-काट, भोग-योग भेद पाट
यों गहन कर्म-गति, वो विकर्म जीतते|

जीतते अहं-विलास, ध्यान-धारणा प्रयास
संतुलित विचार से, धीर-वीर दीखते|३|

 

-- सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

*************

वातायन - मयंक अवस्थी जी की ग़ज़लें

जैसा कि पिछली पोस्ट में इंगित किया था, अब वातायन की पोस्ट्स भी यहीं ठाले-बैठे पर हीआएंगी। पुरानी पोस्ट्स की लिंक्स वातायन के पेज पर दी गई हैं।

इस नए क्रम में सबसे पहले पढ़ते हैं भाई मयंक अवस्थी जी की दो ग़ज़लें। वातायन पर मयंक जी की एक ग़ज़ल पहले भी आ चुकी है। 25 जून 1967 को हरदोई में जन्मे मयंक भाई वर्तमान में रिजर्व बैंक, नागपुर में सहायक प्रबन्धक के पद पर आसीन हैं। अदब के हलक़ों में इन की बातों को संज़ीदगी से लिया जाता है। इन की एक और विशेषता है कि यदि आप इन्हें नींद से उठा के पूछ लें तो भी आप को 25-50 शेर तो धारा प्रवाह सुना ही देंगे, अपने नहीं, दूसरों के। पुराने शायरों के साथ-साथ नए शायरों के भी कई सारे शेर इन्हें मुंह जुबानी याद रहते हैं। मुझे ताज़्ज़ुब हुआ जब साहित्यिक कुनबे के शायद सब से छोटे सदस्य मेरे जैसे व्यक्ति के भी शेर इन्होने फर्राटे के साथ सुना डाले मुझे, वो भी गाड़ी ड्राइव करते हुए। आइये पढ़ते हैं इन की ग़ज़लें:-




खुशफहमियों  में चूर ,अदाओं के साथ –साथ
भुनगे भी उड़ रहे हैं  हवाओं  के साथ –साथ

पंडित  के  पास   वेद  लिये  मौलवी क़ुरान
बीमारियाँ  लगी   हैं  दवाओं के साथ –साथ

वो  ज़िन्दगी थी  इसलिये हमने निभा  दिया
उस  बेवफा  का संग  वफ़ाओं के साथ –साथ

इस  हादसों   के शहर में सबकी  निगाह में
खामोशियाँ बसी हैं  सदाओं   के साथ –साथ

उड़ती है आज  सर   पे वही  रास्ते की धूल
जो कल थी  रहग़ुज़ार में पाँओं के साथ –साथ

जज़बात  खो  गये  मेरे  आँसू  भी  सो गये
बच्चों  को  नींद आ गयी माँओ के साथ-साथ  


******


बैठे हो जिसके ख़ौफ से छुपकर मचान पर
वो  शेर  चढ रहा है सभी की ज़बान पर

वापस  गिरेगा  तीर  तुम्हारी  कमान पर
ऐ  दोस्त  थूकना न  कभी आसमान पर

इक  अजनबी ज़बान तुम्हारी ग़ज़ल में है
किसकी  है  नेम –प्लेट तुम्हारे मकान पर

दिल से उतर के शक्ल पे बैठा हुआ है कौन
क़ाबिज़  हुआ  है कौन तुम्हारे जहान  पर

अब  आइने  में  एक  हथौड़ा  है  पत्त्थरों
बेहतर  हो  आप  ब्रेक लगा लें ज़बान  पर

तिश्नालबों  ने  आँख  झुका ली  है शर्म से
अब है नदी का जिस्म कुछ ऐसी उठान पर

सिकुड़ा  हुआ था दश्त सहमता था कोहसार
जब   इश्क का जुनूँ था किसी नौजवान पर

टी –शर्ट   डट रहे  हो  बुढापे में ऐ मयंक
क्यूँ  रंग  पोतते  हो   पुराने  मकान पर

:- मयंक अवस्थी

******


कर दे कृपा मैया हमारी, हम बहुत बेहाल हैं

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन


माहौल दिवाली मय होने लगा है सारे हिन्दुस्तान में| दीपावली पर्व की तैयारियाँ सब जगह जोरों पर हैं| होली और दीवाली इन दो पर्वों की धूम तो सारे हिन्दुस्तान में रहती है| हरिगीतिका छंद आधारित समस्या पूर्ति आयोजन के अगले चक्र में आज हम पढ़ते हें सुरेन्द्र भाई के मनोहारी छंद




 त्यौहार 

मातेश्वरी   तेरी  कृपा  की, दृष्टि  यदि हो जाएगी |
त्यौहार जैसी जिन्दगी की, हर घड़ी हो जाएगी || 
तू है जगत की जानकी माँ, हम तिहारे लाल हैं |
कर  दे  कृपा  मैया  हमारी, हम बहुत बेहाल हैं |१|
कसौटी 
अपनी भला औकात क्या? जो, तव कसौटी पर चढ़ें |
नादान, अवगुण-खान हम किस, राह पर जननी बढ़ें ||
हे ज्योति ! जीवन को हमारे, ज्योतिमय कर दीजिये |
अपने पदाम्बुज में जननि हे ! शरण हमको  दीजिये |२|


प्रार्थना
 
सन्मार्ग पर चलते रहें माँ, जिन्दगी  हो व्यर्थ ना |
नित राष्ट्र सेवा रत रहें, अम्बे  यही  है  प्रार्थना ||
हर   आदमी  इक दूसरे के, सुख व दुख में साथ हो |
जग में हिमालय की तरह निज, हिंद उन्नत-माथ हो |३| 
सुरेन्द्र जी इस समय स्वास्थ्य को ले कर परेशान हैं, फिर भी छंद साहित्य की सेवा के लिए न सिर्फ उन्होंने अपने छंद भेजे हैं बल्कि टिप्पणियों के माध्यम से भी लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं| सब से पहले हमने इन के कुण्डलिया छंद पढ़े थे, फिर घनाक्षरी छंद और अब हरिगीतिका छंद| इन के ब्लॉग के नियमित पाठक जानते हें, काव्य की विविध विधाओं में सिद्धहस्त सुरेन्द्र भाई भावों को बड़े ही सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त करते हैं| 'हम बहुत बेहाल हैं' - जगत्जननी माँ का स्वयं को लाल बताने वाले की प्रार्थना ऐसी ही होनी चाहिए| इस में कोइ लाग लपेट नहीं है, कोइ फोर्मलिटी  नहीं है न करुणा का अतिवाद ही| एक बच्चा जैसे अपनी माँ से बात कर रहा हो, ठीक वैसे ही व्यक्त किया गया है इन छंदों में मनोभावों को, और यही विशिष्टता भी है|
सुरेन्द्र भाई के छंदों का आप लोग आनंद लें,अपनी टिप्पणियों की बरसात करें, और हम तैयारी करते हें अगली पोस्ट की|


==================================
दो खुशियाँ आप सभी के साथ साझा करनी थीं| एक तो ये कि हमारे-आपके सम्यक छान्दसिक प्रयासों से प्रेरणा पा कर एक और कवयित्री ऋता शेखर 'मधु' ने छंदों में रुझान व्यक्त किया है, जो कि आज के शेरोशायरी प्रधान दौर में बहुत बड़ी बात है| दूसरी ये कि हमारे एक और साथी आ. सौरभ पाण्डेय जी ने समस्या पूर्ति से जुड़ने के बाद, समस्या पूर्ति के आयोजन के अतिरिक्त भी छंद लिख कर भेजे हें, वो भी ऐसा  वैसा  नहीं, सांगोपांग सिंहावलोकन छंद| एक दो दिन में ये छंद ठाले बैठे पर वातायन के अंतर्गत प्रकाशित होंगे| आप पढने आइयेगा अवश्य, ठाले बैठे की पोस्ट की मेल नहीं भेज रहा मैं आज कल| स्नेही स्वयँ आते हैं, पढ़ते हैं और अपनी यथेष्ट राय भी व्यक्त करते हैं|

==================================



जय माँ शारदे!

वातायन - हल्की सी धूप - संगीता बाजपेयी

पुस्तक लोकार्पण। बाएँ से अचला नागर जी, पुष्पा भारती जी, संगीता, सूर्यबाला जी और जलीस शेरवानी जी



पिछले रविवार यानि १६ अक्टूबर की शाम एक यादगार शाम रही| अँधेरी - पश्चिम, यारी रोड स्थित फिशरीज इंस्टिट्यूट में संगीता बाजपेयी के कहानी संग्रह 'हलकी सी धूप' का विमोचन समारोह होना था। हालाँकि निमंत्रण तो पहले से मिला हुआ था, पर  एक दम ध्यान से ही उतर गया, आ. खन्ना मुजफ्फरपुरी जी का शुक्रिया कि उन्होंने याद दिलाया फिर से।


आनंद के क्षण - बाएँ से दायें - अचला नागर जी, पुष्पा भारती जी, संगीता, सूर्यबाला जी, जलीस शेरवानी जी, राजकुमार बड़जात्या जी,  जगदम्बा प्रसाद दीक्षित जी, बृजमोहन अग्रवाल जी, ललित पण्डित और उमाकांत बाजपेयी



आ. सूर्यबाला जी, जगदम्बा प्रसाद दीक्षित जी, अचला नागर, राजम नटराजन पिल्लई, कुमार बिहारी पाण्डेय, राजकुमार बड़जात्या [राजश्री प्रोड.] जलीस शेरवानी, अंजन श्रीवास्तव, ललित पंडित [जतिन-ललित], नरेश सोनी, पत्रकार अभिजीत राणे, राहुल सेठ और विष्णु शर्मा जैसी हस्तियों की मौजूदगी में इस पुस्तक का लोकार्पण करते हुए प्रतिष्ठित रचनाधर्मी आ. पुष्पा भारती जी ने कहा कि लेखिका यदि एकाग्रचित्त होकर लिखती रहे तो निश्चित ही आगे चलकर वह एक अच्छी साहित्यकार बन सकती हैं।

हम भी - विष्णु शर्मा, कुमार बिहारी पाण्डेय, अंजन श्रीवास्तव, वज़ीर लाकड़ा, हरीश भीमानी, अचला नागर, पुष्पा भारती, संगीता और सूर्यबाला जी


कार्यक्रम के अधिकाँश हिस्से में संगीता बाजपेयी स्वयँ कुर्सियों से खचाखच भरे हॉल में आगे की तरफ खड़ी हो कर सभी का आशीर्वाद ग्रहण करती रहीं।


कहानी पाठ करते हुए विष्णु शर्मा


सभी विद्वानों ने अपने आशीर्वाद के साथ संगीता बाजपेयी को कुछ टिप्स भी दिए सुप्रसिद्ध कहानीकार सूर्यबाला ने लेखिका की शैली और कथ्य की प्रशंसा की। महाभारत के 'मैं समय हूँ' फेम उद्घोषक हरीश भीमानी ने कहा कि लेखकों को आलोचना से डरना नहीं चाहिए । सही आलोचना से अच्छा साहित्य लिखने की प्रेरणा मिलती है । फिल्म रायटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जलीस शेरवानी ने कहा कि आजकल अच्छे साहित्य की कमी है । हमारी इंडस्ट्री को संगीता बाजपेयी जैसे लेखकों की सख्त जरूरत है। फिशरी इंस्टिट्यूट के वजीर लाकडा जी ने भी संक्षिप्त में लेखिका का उत्साह वर्धन किया।


गीतकार तुराज़ और इंडियन आयडल तुकैर क़ाज़ी के साथ संगीता


कार्यक्रम के दौरान ललित पंडित [जतिन-ललित] द्वारा "कहीं दूर जब दिन ढल जाए" गीत गाने पर सारा सभागार तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा। अंजन श्रीवास्तव जी स्क्रीन पर जैसे सरल और सहज दिखते  हैं, वास्तविक जीवन में भी बिलकुल वैसे ही हैं। इस कार्यक्रम में देवी नागरानी जी से भी व्यक्तिगत मुलाक़ात हुई। अंतरजाल के ज़रिये यूँ तो संपर्क था, पर मिलना अब जा कर हुआ।

राजश्री प्रोड. वाले राजकुमार बड़जात्या जी के साथ संगीता

कायक्रम का आयोजन आशीर्वाद संस्था की तरफ से हुआ था।


गीतकार सरफराज ख़ान के साथ संगीता 
 
इस कार्यक्रम में जिन दो बातों ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया, उन में से पहली थी फिल्म रायटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जलीस शेरवानी और जानेमाने रंगमंच के कलाकार अंजन श्रीवास्तव द्वारा कहना कि अच्छे लेखकों की कमी शिद्दत से महसूस की जा रही है। दूसरी बात, जिसने कान तो खड़े नहीं किए, पर हाँ ध्यानाकर्षण अवश्य किया , वो ये कि सरकारी अनुदान जो कि पुस्तकों के प्रकाशन के लिए आबंटित किए जाते हैं, उन का भी पूरा पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता। इस विषय पर मैंने अंजन श्रीवास्तव जी से बात करने की कोशिश की, पर उनको पूना जाना था, और मुझे भी एक अन्य पारिवारिक कार्यक्रम अटेण्ड करना था - सो बात नहीं बन पायी। खैर, फिर से कोशिश करूँगा जानने की कि इस तिलिस्मी गुफा के दरवाज़े की चाबी है कहाँ पर?

संगीता जी को इस पहले-पहले कहानी संग्रह के लोकार्पण पर बहुत बहुत बधाईयाँ और उन के उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएँ।