25 अप्रैल 2011

कुण्डलिया छन्द - मेरी भूल और उस का सुधार

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

दोहा के बाद रोला छोड़ कर सीधे कुण्डलिया छन्द पर आने का फायदा तो ये हुआ कि कई सारे कवियों ने अपनी रचनाएं ताबडतोब भेज दीं, और हानि ये हुई कि हम रोला छन्द से साक्षात्कार नहीं कर पाए| खैर, उसे अब दुरुस्त कर लेते हैं| मैं इस पोस्ट में अपनी भूल और उस के सुधार के बारे में चर्चा कर रहा हूँ| हालांकि मैं भी कई वर्षों तक काका हाथरसी टाइप छन्द को ही लिख रहा था, पर जब अग्रजों ने स्नेह और अधिकार के साथ कहा कि जब तुम लिख सकते हो गिरिधर कविराय वाले प्रारूप में तो फिर लिखो| अपने बड़ों की आज्ञा मानते हुए इस आयोजन की घोषणा के वक्त भी इसीलिए उदहारण भी दिए थे|

आगे पढ़ने से पहले हम एक छोटी सी चर्चा कर लेते हैं यति, प्रवाह वगैरह के बारे में| जब किसी वाक्य या छन्द के चरण विशेष में - शब्द / वर्ड; [अक्षर / लेटर] नहीं; विशेष के बाद हमारी ध्वनि विश्राम पाती है, यानि हम बोलते बोलते क्षण भर रुक कर आगे बढ़ते है, तो वाक्य में शब्द के उस अंत को 'यति' कहा जाता है| उदाहरण के लिए ये देखिये:-


कबिरा खड़ा बजार में, माँगे सबकी खैर||
ना काहू से दोसती, ना काहू से बैर||

आप इसे सिर्फ पढ़ें नहीं, बोलते हुए पढ़ें| आप पाएंगे कि पहले चरण में 'में' के बाद, दूसरे चरण में 'खैर' के 'र' पर, तीसरे चरण में 'दोसती' के 'ती' पर और चौथे चरण में 'बैर' के 'र' पर यति है|

और अब बात करते हैं कि दोहा के पहले और तीसरे चरण के अंत में लघु और गुरु क्यूँ जरुरी है:-

ऊपर के दोहे के पहले / तीसरे चरण को यूँ बोलते हुए पढ़ के देखो

बजार में खडा कबिरा
दोसती काहू से ना
दोसती ना काहू से

इन तीनों चरणों में मात्राओं की संख्या १३ होने के बावजूद ये अशुद्ध हैं, आप अब तक इस बात को पकड़ चुके होंगे| दोहे के पहले और तीसरे चरण के अंत में यदि एक लघु और एक गुरु के स्थान पर तीन लघु भी लिए जाएँ तो भी काम चलता है, पर याद रहे कि उन तीन लघुर में से अंत के दो लघु एक दीर्घ का आभास कराएँ| कुछ उदाहरण:-

कृपया बोलते हुए पढ़ें :-

मैं तेरा करता मनन
['म' के बाद 'नन' दीर्घ का आभास करा रहे हैं]

पा जाऊँ तुझको अगर
[अ' के बाद 'गर' दीर्घ का आभास करा रहे हैं]

कहता हूँ तुझ से कि चल
['कि' के बाद 'चल' दीर्घ का आभास करा रहे हैं]

आगे बढ़ के फिर न हट
['न' के बाद 'हट' दीर्घ का आभास करा रहे हैं]

तू है मेरा हमसफ़र
['हम' के बाद 'स' लघु का और इस के बाद 'फर' दीर्घ का आभास करा रहे हैं]


और अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर|

आज हिन्दुस्तान की किरकेट दुनिया जहान में अपना परचम फहरा चुकी है| पर एक दौर वो भी था जब हमारा सर शर्म से झुका हुआ था, और तमाम क्रिकेट प्रेमी किंकर्त्तव्यविमूढ वाली अवस्था को प्राप्त होने लगे थे| इस दौर के कुछ नाम याद होंगे आप लोगों को भी - मसलन - मोंगिया, जडेजा, मनोज प्रभाकर, अज़हरुद्दीन और लेले आदि| उसी दौरान मैंने ये छन्द लिखा था:-

सच्ची बात बता रहा, मान सके तो मान|
सौ करोड़ की भीड़ में, मिले न ग्यारह ज्वान||
मिले न ग्यारह ज्वान, दुर्दशा देखो प्यारे|
अक्सर ही, हम जीत चुके, मैचों को हारे|
कैसे भला खिलाड़ी कोई खुल कर खेले|
'लेले' जब कहता फिरता हो, 'ले-ले'.... 'ले-ले'......||

अब लेते हैं इस छन्द का विन्यास कुण्डलिया छन्द के अनुसार :-

सच्ची बात बता रहा,
२२ २१ १२ १२ = १३ मात्रा - परफेक्ट
मान सके तो मान|
२१ १२ २ २१ = ११ मात्रा - परफेक्ट
सौ करोड़ की भीड़ में,
२ १२१ २ २१ २ = १३ मात्रा - परफेक्ट
मिले न ग्यारह ज्वान||
१२ १ २११ २१ = ११ मात्रा - परफेक्ट
मिले न ग्यारह ज्वान,
१२ १ २११ २१ = ११ मात्रा - परफेक्ट
दुर्दशा देखो प्यारे|
२१२ २२ २२ = १३ मात्रा - परफेक्ट
अक्सर ही, हम जीत
२११ २ ११ २१ = ११ मात्रा - परफेक्ट , ११ वीं मात्र पर लघु के साथ यति भी है
चुके, मैचों को हारे|
१२ २२ २ २२ = १३ मात्रा - परफेक्ट
कैसे भला खिलाड़ी
२२ १२ १२२ = १२ मात्रा ग़लत
कोई खुल कर खेले|
२२ ११ ११ २२ = १२ मात्रा ग़लत
'लेले' जब कहता
२२ ११ ११२ = १० मात्रा ग़लत
फिरता हो, 'ले-ले'.... 'ले-ले'......||
११२ २ २ २ २ २ = १४ मात्रा ग़लत

आपने देखा रोला में बड़ी ग़लतियाँ हैं, पंक्ति के पहले भाग में ११ वीं मात्रा पर लघु के साथ यति भी नहीं है| इस के अलावा छन्द के पहले और अंतिम शब्द में समानता भी नहीं है|

और अब बोलते हुए पढियेगा इसी छन्द को सुधारे हुए रूप में और स्वयँ इस की मात्रा गिनती, यति विराम वगैरह भी चेक कीजिएगा, आप ही खुद-ब-खुद| और यदि इस में ग़लती हो तो मुझे जरुर बताइएगा|

ले दे कर ये बात है, मान सके तो मान|
सौ करोड़ की भीड़ में, मिले न ग्यारह ज्वान||
मिले न ग्यारह ज्वान, दुर्दशा देखो प्यारे|
अक्सर ही, हम जीत चुके, मैचों को हारे|
कौन भला फिर यार देश की खातिर खेले|
'लेले' जब चिल्लाय कि भइये 'ले-ले'.... 'ले-ले'......||


मेरे सभी अग्रज, अनुज और हमउम्र साथियो, मैंने अपनी एक भूल और उस का सुधार आप सभी के साथ साझा किया है और उन सभी रचनाकारों, जिनके छन्द सुधार माँग रहे हैं, से फिर से विनम्र निवेदन करता हूँ कि कृपया सुधार कर के भेजने की कृपा करें|

मेरी ई बुक जिन लोगों ने नहीं पढ़ी हो, वो यहाँ क्लिक कर के वहां पहुँच सकते हैं

वैसे कुछ दिनों में इसका पीडीऍफ़ फोर्मेट भी उपलब्ध हो जाएगा

पुस्तक पर आप के अनमोल सुझावों, आप के आशीर्वाद के साथ साथ .................. पेंडिंग छन्दों में सुधार की भी अपेक्षा है ............

नमस्कार

10 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार जानकारी मिली !! आभार

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  2. आपका समर्पण सराहनीय है चतुर्वेदी जी !

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  3. अच्छी जानकारी।
    आपका ई.बुक भी देखा, शानदार है।
    इस उपलब्धि के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. ले दे कर ये बात है, मान सके तो मान|
    सौ करोड़ की भीड़ में, मिले न ग्यारह ज्वान||
    मिले न ग्यारह ज्वान, दुर्दशा देखो प्यारे|
    अक्सर ही, हम जीत चुके, मैचों को हारे|
    कौन भला फिर यार देश की खातिर खेले|
    'लेले' जब चिल्लाय कि भइये 'ले-ले'.... 'ले-ले'......||

    नवीन जी बहुत अच्छी सुरुआत है यह छंद परिमार्जन की. छंद सुधार में गति-यति के साथ शब्द चयन भी महत्व पूर्ण है. सामान्यतः 'यह' एकवचन और 'ये' बहुवचन में प्रयोग होता है. बोलियों में अपभ्रंश में 'यह' के स्थान पर भी 'ये' का प्रयोग हो जाता है. आपकी यह कुण्डलिनी खड़ी बोली हिंदी में है अतः 'यह' का प्रयोग हो तो बेहतर.
    देखें:
    यह- सर्वनाम, निअकतास्थ वस्तु का निर्देशक सर्वनाम () वक्ता और श्रोता को छोड़कर शेष सभी जीवों और पद्दर्थों के लिये व्यवहृत होता है. विभक्ति लगाते समय इसका रूप खड़ी बोली में 'इस' और बृज भाषा में 'या' हो जाता है.) वि. जब 'यह' के साथ कोई संज्ञा होती है एब वह विशेषण का काम करता है- जैसे यह आदमी.
    यहि- सर्व., यह का विभक्ति लगने के पहले का पुराना हिंदी रूप. वि. संज्ञा के साथ प्रयुक्त होने पर विशेषण हो जाता है.
    यही- अव्यय, (यह+ही) एक देश, यह ही.
    ये- सर्व. यह सब, सर्वनाम 'यह' का बहुवचन.
    येई- सर्व. यही.
    येऊ- सर्व यह भी, ये भी.
    सन्दर्भ- बृहत् हिंदी कोष.
    'जवान' हिंदी शब्दकोष में कहीं नहीं हैं. ऐसे प्रयोग कवि प्रारंभ में करता है किन्तु आप जिस स्तर पर हैं वहाँ यह अशुद्धि ही कही जायेगी.

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  5. आदरणीय आचार्य जी आप की यह सलाह हमारे भण्डार में शामिल हो गई

    हम तो फिलहाल 'यति - प्रवाह - सहजता' जैसी मूलभूत बातों से ऊपर उठने की कोशिश कर रहे हैं...........वो भी डरते डरते|

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