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ग़ज़ल की प्रचलित 32 बहरें

ग़ज़ल की प्रचलित 32 बहरें, उनके उदाहरण और तक़तीअ

ग़ज़ल के प्रेमियों के लिए एक पोस्ट


ग़ज़ल 
से मुहब्बत होना आम बात है। शेरो-शायरी पसन्द करनेवाले बहुत से लोगों की एक दिली तमन्ना होती है कि वह भी शेर कहें, ग़ज़ल कहें, नशिस्तों या मुशायरों में अपना कलाम पेश करें और सामईन यानि स्रोताओं की दाद हासिल करें । मगर बह्र ( बहर ) यानि छन्द का ज्ञान उनके आड़े आता है । अदब का तजरिबा रखने वालों से पता चलता है कि बहुत से स्वनाम धन्य उसताज़ लोग ऐसे सीखतर लोगों का लाभ भी उठाते रहे हैं । इस तरह के सीखने के इच्छुक लोगों की सहायता के लिए यह पोस्ट है ।

दरअसल ग़ज़ल की बहूर ( बहरों ) की संख्या शताधिक है । नई ईज़ादें होती रही हैं और होती रहेंगीं । ग़ज़ल व्याकरण के मूर्धन्य विद्वान दिवंगत आदरणीय आर पी शर्मा महर्षि जी की पुस्तकों से अर्जित ज्ञान के आधार पर लगभग 10 बरस पहले पहली बार बहु-प्रचलित 32 बहूर को एक टेबुलाइज़्ड फ़ॉर्मेट में प्रस्तुत किया था । तब से अबतक हज़ारों तालिबे-इल्म इससे लाभान्वित हो चुके हैं । आज भी देश-विदेश से फ़ोन कॉल्स आते रहते हैं । अनेक व्यक्तियों ने इन अशआर को लेकर आर्टिकल्स भी लिखे हैं । कुछ ने मुझे क्रेडिट दिया है कुछ इस काम की क्रेडिट ख़ुद ही हड़प कर गये और कुछ एक तो मेरे सामने भी उस्ताज़ी पेलने से बाज़ नहीं आते 😜 ख़ैर ज्ञान की गंगा का बहते रहना अधिक महत्वपूर्ण होता है सो मैं भी उलटे ऐसे लोगों की पीठ ही थपथपाता रहा हूँ ।

बहूर के नाम वही हैं जैसे आदरणीय महर्षि जी ने अपनी पुस्तकों में लिखे हैं ।

कृपया ध्यान रखें ग़ज़ल मात्रिक न होकर वर्णिक छन्द है । 1 का मतलब लघु वर्ण (अक्षर) और दो का मतलब गुरू यानि दीर्घ वर्ण ।

पिंगल छन्द शास्त्र के अनुसार 'हम' में दो लघु गिने जाते हैं जबकि उर्दू अरूज़ के मुताबिक़ 'हम' एक गुरू यानि दीर्घ वर्ण होता है । उर्दू अरूज़ उच्चारण पर अधिक ध्यान देने के लिए कहता है ।

इस पोस्ट में जो अरकान (फ़ाएलातुन, फ़ाएलुन, फ़एलुन आदि) दिये गये हैं उन में प्रयुक्त '' वर्ण यानि अक्षर को गिरा कर पढ़ा जाता है इस प्रकार हर्फ़ गिराने यानि मात्रा लोप का अभ्यास हमें आरम्भ ही से हो जाता है । बहुत से लोग '' की जगह '' या '' का प्रयोग भी करते हैं ।

अरूज़ में जितने रूल्स हैं उनसे कहीं अधिक डेविएशन भी मिल सकते हैं । इस पोस्ट को संज्ञान के लिए पढ़ेंगे तो ही लाभान्वित हो सकेंगे । कृपया वाद विवाद से परहेज़ करें ।

बड़े से बड़े शायर भी सारी की सारी बहूर पर ग़ज़लें नहीं कहते । पहले आप अपनी पसन्द की किसी एक बहर को पहचानें और उस पर लगातार अभ्यास करें । जब उस बहर पर आप ठीकठाक दो चार ग़ज़लें ( मात्र दो चार शेर नहीं ) कह लें उसके बाद ही दूसरी बहर का अभ्यास करने का विचार करें । एक जिज्ञासु के लिए यही श्रेयस्कर होता है ।

यदि आप को कोई शंका हो तो सीधे फ़ोन करने की बजाय एक बार मैसेज के द्वारा बात करने की कृपा करें । ध्यान रहे मैं शास्त्रार्थ के इच्छुकों को अपेक्षित समय नहीं दे पाता हूँ ।

 

क्र.

बह्र का नाम

बह्र के अरकान , वर्णिक संकेत 
[1= लघु अक्षर2 = गुरु अक्षर]

शेर बतौरे-नज़ीर
तक़तीअ

1

बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन
11212 11212 11212 11212

ये चमन ही अपना वुजूद है

इसे छोड़ने की भी सोच मत
नहीं तो बताएँगे कल को क्या

यहाँ गुल न थे कि महक न थी

य चमन हि अप / न वुजूद है
इस छोड़ने / कि भि सोच मत
नहिं तो बता / एँ ग कल कु क्या
यहँ गुल न थे / कि महक न थी

2

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाएलातुन मुफ़ाएलुन फ़ेलुन
2122 1212 22

प्यास को प्यार करना था केवल
एक अक्षर बदल न पाये हम

प्यास को प्या / र करन था / केवल
एक अक्षर / बदल न पा / ये हम

3

बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाएलातुन मफ़ऊल फ़ाएलातुन
221 2122 221 2122

जब जामवन्त गरजा, हनुमत में जोश जागा
हमको जगाने वाला, लोरी सुना रहा है

जब जाम / वन्त गरजा / हनुमत म / जोश जागा
हमको ज / गान वाला / लोरी सु / ना रहा है

4

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फ़ेलुन /फ़एलुन
1212 1122 1212 22 / 112

कभी तो इश्क़ नदी में उतर के भी देखो
नदी किनारे ही पानी को छपछपाना क्या

कभी त इश् / क़ नदी में / उतर क भी / देखो
नदी किना र हि पानी / कु छपछपा / ना क्या

5

बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाएलात मुफ़ाईलु फ़ाएलुन
221 2121 1221 212

तारे बेचारे ख़ुद भी सहर के हैं मुन्तज़िर
सूरज ने उगते-उगते ज़माने लगा दिये

तारे ब / चार ख़ुद भि / सहर के हँ / मुन्तज़िर
सूरज न / उगत उगत / ज़माने ल / गा दिये

6

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122

कहानी बड़ी मुख़्तसर है
कोई सीप कोई गुहर है

कहानी / बड़ी मुख़् / त सर है
कुई सी / प कोई / गुहर है

7

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

वो जिन की नज़र में है ख़्वाबे-तरक़्क़ी
अभी से ही बच्चों को पी. सी. दिला दें

वु जिन की / नज़र में / ह ख़्वाबे / तरक़्क़ी
अभी से / हि बच्चों / कु पी. सी. / दिला दें

8

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12

इबादत की किश्तें चुकाते रहो
किराये पे है रूह की रौशनी

इबादत / कि किश्तें / चुकाते / रहो
किराये / प है रू / ह की रौ / शनी

9

बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ाएलुन
212 212 212

चाहे जितने भी होठों पे हो
झूठ चलता नहीं उम्र भर

चाह जित / ने भि हो / ठों प हो
झूठ चल / ता नहीं / उम्र भर

10

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ा
212 212 212 2

अब उभर आयेगी उस की सूरत
बेकली रंग भरने लगी है

अब उभर / आयगी / उस कि सू / रत
बेकली / रंग भर / ने लगी / है

11

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ाएलुन
212 212 212 212

अब उजालों में भी सूझता कुछ नहीं
आप रुख़सत हुए छिन गयी रौशनी

अब उजा / लों म भी / सूझता / कुछ नहीं
आप रुख़ / सत हुए / छिन गयी / रौशनी

12

बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ऊलुन मुफ़ाएलुन फ़ाएलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 122

बड़ी सयानी है यार क़िस्मत,

सभी की बज़्में सजा रही है
किसी को जलवे दिखा रही है

कहीं जुनूँ आजमा रही है

बड़ी सया / नी ह या / र क़िस्मत,
सभी कि बज़ / में सजा / रही है
किसी कु जल / वे दिखा / रही है
कहीं जुनूँ / आजमा / रही है

13

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ़एलुन मुस्तफ़एलुन
2212 2212

ये नस्ले-नौ है साहिबो
अम्बर से लायेगी नदी

ये नस ल नौ / है साहिबो
अम्बर स ला / येगी नदी

14

बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून
मुस्तफ़एलुन मुफ़ाएलुन
2212 1212

क्या आप भी ज़हीन थे
आ जाइए – क़तार में

क्या आप भी / ज़हीन थे
आ जाइए / क़तार में

15

बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़एलुन मुस्तफ़एलुन मुस्तफ़एलुन
2212 2212 2212

मैं वह नदी हूँ थम गया जिस का सफ़र
अब क्या करूँ क़िस्मत में कंकर भी नहीं

मैं वह नदी / हूँ थम गया / जिसका सफ़र
अब क्या करूँ / क़िस्मत म कं / कर भी नहीं

16

बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़एलुन मुस्तफ़एलुन मुस्तफ़एलुन मुस्तफ़एलुन
2212 2212 2212 2212

उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नयी इक तरजुमानी चाहिए

उस पीर को / परबत हुए / काफ़ी ज़मा / ना हो गया
उस पीर को / फिर से नयी / इक तरजुमा / नी चाहिए

17

बहरे रमल मुरब्बा सालिम
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन
2122 2122

मौत से मिल लो, नहीं तो
उम्र भर पीछा करेगी

मौत से मिल / लो नहीं तो
उम्र भर पी / छा करेगी

18

बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन
फ़ाएलातुन फ़एलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22

सनसनीखेज़ हुआ चाहे है
तिश्नगी तेज़ हुआ चाहे है

सनसनीखे / ज़ हुआ चा / हे है
तिश्नगी ते / ज़ हुआ चा / हे है

19

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 212

फ़िक्र का नामो-निशाँ तक था नहीं
क्या मज़े थे माँ तुम्हारी गोद में

फ़िक्र का ना / मो निशाँ तक / था नहीं
क्या मज़े थे / माँ तुम्हारी / गोद में

20

बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन
2122 2122 2122

ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं मुझ को
इन की आँखों में ग़ज़ब की रौशनी है

ये अँधेरे / ढूँढ ही ले / ते हँ मुझ को
इन कि आँखों / में ग़ज़ब की / रौशनी है

21

बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 2122 212

वह्म चुक जाते हैं तब जा कर उभरते हैं यक़ीं
इब्तिदाएँ चाहिए तो इन्तिहाएँ ढूँढिए

वह्म चुक जा / ते हँ तब जा / कर उभरते / हैं यक़ीं
इब्तिदाएँ / चाहिए तो / इन्तिहाएँ / ढूँढिए

22

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22

जैसे चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी

जैस चूमा / ह तसल्ली / न हरिक चह / रे को
उस क दरबा / र म साका / र मुहब्बत / देखी

23

बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]
फ़एलात फ़ाएलातुन फ़एलात फ़ाएलातुन
1121 2122 1121 2122

वो जो शब जवाँ थी हमसे उसे माँग ला दुबारा
उसी रात की क़सम है वही गीत गा दुबारा

वु जु शब ज / वाँ थि हमसे / उस माँग / ला दुबारा
उसि रात / की क़सम है / वहि गीत / गा दुबारा

24

बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन
2122 2122 2122 2122

कल अचानक नींद जो टूटी तो मैं क्या देखता हूँ
रात की शह पर कई तारे शरारत कर रहे हैं

कल अचानक / नींद जो टू / टी त मैं क्या / देखता हूँ
रात की शह / पर कई ता / रे शरारत / कर रहे हैं

25

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन ,
1222 1222 122

हवा के साथ उड़ कर भी मिला क्या
किसी तिनके से आलम सर हुआ क्या

हवा के सा / थ उड़ कर भी / मिला क्या
किसी तिनके / स आलम सर / हुआ क्या

26

बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222

ग़मों का भी मुक़द्दर होता है साहब
हरिक तकलीफ़ को आँसू नहीं मिलते

ग़मों का भी / मुक़द्दर हो / त है साहब
हरिक तकली / फ़ को आँसू / नहीं मिलते

27

बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़
मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन
221 1221 1221 122

आवारा कहा जाएगा दुनिया में हरिक सू
सँभला जो सफ़ीना किसी लंगर से नहीं था

आवार / कहा जाय / ग दुनिया म / हरिक सू
सँभला जु / सफ़ीना कि / सि लंगर स / नहीं था

28

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222

हम दोनों मुसाफ़िर हैं इस रेत के दरिया के
उनवाने-ख़ुदा दे कर तनहा न करो मुझ को

हम दोन / मुसाफ़िर हैं / इस रेत / क दरिया के
उनवान / ख़ुदा दे कर / तनहा न / करो मुझ को

29

बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम
फ़ाएलुन मुफ़ाईलुन फ़ाएलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222

ख़ूब थी वो मक़्क़ारी ख़ूब ये छलावा है
वो भी क्या तमाशा था ये भी क्या तमाशा है

ख़ूब थी / वु मक़्क़ारी / ख़ूब ये / छलावा है
वो भि क्या / तमाशा था / ये भि क्या / तमाशा है

30

बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़
फ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन
212 1212 1212 1212

क्या अजीब खेल है ग़रीब के नसीब का
काम आ रहा न कोई दूर या क़रीब का

क्या अजी / ब खेल है / ग़रीब के / नसीब का
काम आ / रहा न को / इ दूर या / क़रीब का

31

बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़
मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन
1212 1212 1212 1212

हमारी ओर देखकर यों मुस्कुराया मत करो
तुम्हें तो लुत्फ़ आ गया हमारे ग़म बहक गये

हमारि ओ / र देखकर / युँ मुस्कुरा / य मत करो
तुम्हें त लुत / फ़ आ गया / हमार ग़म / बहक गये

32

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

मुझे पहले यों लगता था करिश्मा चाहिए मुझको
मगर अब जा के समझा हूँ क़रीना चाहिए मुझको

मुझे पहले / युँ लगता था / 

करिश्मा चा / हिए मुझको
मगर अब जा / क समझा हूँ / 

क़रीना चा / हिए मुझको

 

बहरों के उद्धरणों की तक़तीअ करते समय जहाँ हर्फ़ गिराये गये हैं उन हरूफ़ यानि अक्षरों को उच्चारण के अनुसार टाइप करने का यथासम्भव प्रयास किया है ।

जिन लोगों को उपरोक्त सभी बहरों पर अभ्यास करना हो वे इस पोस्ट में ऊपर उदाहरण के बतौर दिये गये हर शेर के सानी मिसरे यानि दूसरे मिसरे को ज़मीन मानकर उस पर ग़ज़ल कहने का प्रयास कर सकते हैं ।


आशा करता हूँ मेरा यह शैशव प्रयास आप की अपेक्षाओं के अनुरूप सिध्द होगा । यदि आप इस आलेख से लाभान्वित हो सकें तो हमारे आपके सभी के पूर्ववर्ती आचार्यों की परम्परा को श्रद्धा सहित प्रणाम करें क्योंकि यह ज्ञान की गंगा उन सभी के भागीरथी प्रयासों के कारण ही हम लोगों तक आ सकी है और यदि इस आलेख में कहीं कोई कमतरी का एहसास हो तो उसे मेरी चूक समझ कर मुझे क्षमा कर कृतार्थ करें ।



सादर सप्रेम जय श्री कृष्ण

नवीन सी. चतुर्वेदी

ब्रजगजल प्रवर्तक एवं बहुभाषी शायर

मथुरा - मुम्बई

9967024493

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