नब्बे से बतियाती उम्र, किसी नौजवान सी फुर्ती और अब तक के हासिल उजाले को दूर दूर तक बिखेर देने की ललक, शायद इस से अधिक और कुछ परिचय देना सही न होगा आदरणीय आर. पी. शर्मा महर्षि जी के बारे में। महर्षि जी और खासकर देवनागरी ग़ज़ल का उरूज़ एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।