ग़ज़ल-1
उन्ही का इब्तिदा से जहिरो –बातिन रहा हूँ मैं
जो कहते हैं कि गुजरे वक़्त का पल –छिन रहा हूँ मैं
मेरे किरदार को यूँ तो ज़माना श्याम कहता है
वही अर्जुन मेरे बहुरूप से दहशतज़दा सा है
कि जिसकी हसरते-दीदार का साकिन रहा हूँ मै
मेरे भक़्तों को क्या मालूम इक बगुला भगत हूँ मै
कि जमुना में नहाती मछलियाँ भी गिन रहा हूँ मैं
ये मेरी रुक्मिणी हरदम मुझे बूढा बताती है
किसी राधा की आँखों मे सदा कमसिन रहा हूँ मै
सुदर्शन चक्र रखता हूँ बज़ाहिर मुस्कुराता हूँ
मगर शिशुपाल तेरी गालियाँ भी गिन रहा हूँ मैं
छुपी हो बाँसुरी की धुन में मेरी देवकी माँ तुम
कि अपने जन्म से अब तक तुम्हारे बिन रहा हूँ मै
ज़ाहिरो-बातिन --प्रकट और अंतर्मन में
हसरते दीदार --दर्शन की अभिलाषा
साकिन -स्थाई -निवासी
गज़ल – 2
मियाँ मजबूरियों का रब्त अक्सर टूट जाता है
वफ़ायें ग़र न हों बुनियाद मे , घर टूट जाता है
शिनावर को कोई दलदल नहीं दरिया दिया जाये
जहाँ कमज़र्फ बैठे हों सुखनवर टूट जाता है
अना खुद्दार की रखती है उसका सर बुलन्दी पर
किसी पोरस के आगे हर सिकन्दर टूट जाता है
भले हम दोस्तो के तंज़ सुनकर मुस्कुराते हों
मगर उस वक्त कुछ अन्दर ही अन्दर टूट जाता है
मेरे दुश्मन के जो हालात हैं उनसे ये ज़ाहिर है
कि अब शीशे से टकराने पे पत्थर टूट जाता है
संजो रक्खी हैं दिल में कीमती यादें मगर फिर भी
बस इक नाज़ुक सी ठोकर से ये लॉकर टूट जाता है
मियाँ मजबूरियों का रब्त अक्सर टूट जाता है
वफ़ायें ग़र न हों बुनियाद मे , घर टूट जाता है
शिनावर को कोई दलदल नहीं दरिया दिया जाये
जहाँ कमज़र्फ बैठे हों सुखनवर टूट जाता है
अना खुद्दार की रखती है उसका सर बुलन्दी पर
किसी पोरस के आगे हर सिकन्दर टूट जाता है
भले हम दोस्तो के तंज़ सुनकर मुस्कुराते हों
मगर उस वक्त कुछ अन्दर ही अन्दर टूट जाता है
मेरे दुश्मन के जो हालात हैं उनसे ये ज़ाहिर है
कि अब शीशे से टकराने पे पत्थर टूट जाता है
संजो रक्खी हैं दिल में कीमती यादें मगर फिर भी
बस इक नाज़ुक सी ठोकर से ये लॉकर टूट जाता है
किनारे पर नहीं ऐ दोस्त मैं खुद ही किनारा हूँ
मुझे छूने की कोशिश में समन्दर टूट जाता है
मयंक अवस्थी
रब्त -सम्बन्ध
शिनावर --तैराक
कमज़र्फ --क्षुद्र, ओछे लोग
सुखनवर -- शेर कहने वाला , शायर
दोनों ही ग़ज़लें बहुत खूबसूरत हैं, मयंक जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंWaah sunder ghazal !
जवाब देंहटाएंमेरे भक़्तों को क्या मालूम इक बगुला भगत हूँ मै
कि जमुना में नहाती मछलियाँ भी गिन रहा हूँ मैं
Shaandaar sher..
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र कुमार सिंह "सज्जन " --आप ग़ज़ल के की खुश्बू और रंग दोनो को पहचानने और ईजाद करने में सिद्धहस्त हैं -- आपको गज़ल पसन्द आने का अर्थ यह है कि ये ग़ज़ल कामयाब है !! हार्दिक आभार !!
जवाब देंहटाएंसंतोष कुमार जी !! आभारी हूँ !! ग़ज़ल का धागा वासुदेव हैं --प्रतीक में वह हैं !! ग़ज़ल जनमाष्टमी के मौके पर कही थी !! बहुत बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंचन्द्र भूषण मिश्र "गाफिल " जी !! ग़ज़लें आपको पसन्द आयीं !! मेरा हार्दिक आभारस्वीकार करें !!
जवाब देंहटाएंछुपी हो बाँसुरी की धुन में मेरी देवकी माँ तुम
जवाब देंहटाएंकि अपने जन्म से अब तक तुम्हारे बिन रहा हूँ मै
....दोनों ही गज़ल बहुत ख़ूबसूरत..
वही अर्जुन मेरे बहुरूप से दहशतज़दा सा है
जवाब देंहटाएंकि जिसकी हसरते-दीदार का साकिन रहा हूँ मै
बहुत बढि़या।
Kailash c Sharma --आदरेय !! हार्दिक आभार !!आपका दिया प्रोत्साहन बहुत सम्बल देता है और भविष्य मे बेहतर लिखने की प्रेरणा भी !!
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति इक सुन्दर दिखी, ले आया इस मंच |
जवाब देंहटाएंबाँच टिप्पणी कीजिये, प्यारे पाठक पञ्च ||
cahrchamanch.blogspot.com
सदा !!! अतिशय अनुग्रहीत हूँ !! आपने सदैव मुझे प्रोत्साहन दिया है !! बहुत बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंरविकर -- आदरेय !! आप मेरी रचनाओं को वृहत्तर क्षितिज प्रदान करते हैं !! कृतज्ञ हूँ !! मेरा प्रणाम स्वीकार करें !!
जवाब देंहटाएंशेर दर शेर वाह वाह...
जवाब देंहटाएंदोनों ही गज़लें बहुत उम्दा...
सादर बधाई/आभार
Sanjay Mishra "Habib" हबीब साहब !!बहुत बहुत आभार !! इस दाद के लिये और आपके स्नेह के लिये !! पोस्ट सफल हो गयी !!
जवाब देंहटाएंसंजो रक्खी हैं दिल में कीमती यादें मगर फिर भी
जवाब देंहटाएंबस इक नाज़ुक सी ठोकर से ये लॉकर टूट जाता है
किनारे पर नहीं ऐ दोस्त मैं खुद ही किनारा हूँ
मुझे छूने की कोशिश में समन्दर टूट जाता है
Wah!!!
Adbhut...Behtareen...
www.poeticprakash.com
सुदर्शन चक्र रखता हूँ बज़ाहिर मुस्कुराता हूँ
जवाब देंहटाएंमगर शिशुपाल तेरी गालियाँ भी गिन रहा हूँ मैं
वाह!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति!!!
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंसुदर्शन चक्र रखता हूँ बज़ाहिर मुस्कुराता हूँ
जवाब देंहटाएंमगर शिशुपाल तेरी गालियाँ भी गिन रहा हूँ मैं
बहुत खूब!!
बेहतरीन ग़जलें...
Prakash Jain ---भाई !! तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ हौसला -अफज़ई के लिये !! शेर आपको पसन्द आये !! बहुत खुशी मिली !! बहुत बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंअनुपमा पाठक --अनुपमा जी !! बहुत आभारी हूँ कि गज़लें आपको पसन्द आयीं !! आपके शब्दों से बहुत उत्साह बढा है !!
जवाब देंहटाएंप्रवीण पाण्डेय !! बहुत आभार प्रवीण साहब !!
जवाब देंहटाएंऋता शेख़र " मधु "-- ग़ज़लें पसन्द करने के लिये मैं अतिशय आभारी हूँ !! आपकी सकारात्म टिप्पणी ने विश्वास दिया और आगे और बेहतर लिखने का हौसला दिया !!
जवाब देंहटाएंगज़ब ... दोनों ग़ज़लें कमाल कर रही हैं .. बिलकुल नए अंदाज़ की ... नया विषय ले के ... मज़ा आ गया ...
जवाब देंहटाएंदिगम्बर नासवा साहब !! ह्रदय से आभारी हूँ हौसला अफज़ई के लिये !!
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी !! इस सम्मान और सहयोग के लिये अतिशय आभारी हूँ !!
जवाब देंहटाएंसादर --मयंक