Tufail Chaturvedi |
लफ़्ज़ का अगला अंक आ. तुफ़ैल चतुर्वेदी जी की ग़ज़लों पर आधारित है, ये मालूम पड़ने के बाद कुछ
मित्रों ने फरमाइश की थी कि अंक आने में तो अभी काफ़ी वक़्त है तो क्यूँ न
२-४ ग़ज़लें यहाँ ठाले-बैठे के माध्यम से पढ़ने को मिलें। मित्रों की इच्छा जब
मैंने गुरु जी तक पहुंचाई तो उन्होने सहर्ष २ ग़ज़लें ब्लॉग के प्रेमियों के
लिए भेज दीं। आइये पढ़ते हैं उन ग़ज़लों को:-
उरूज पर ही रहेगी ये रुत ज़वाल की नईं ।
ग़मों को थोड़ी ज़रुरत भी देखभाल की नईं।१।
बहुत सँवार के रखता हूँ दोस्ती को मैं।
कि कोई उम्र मुहब्बत के इंतक़ाल की नईं।२।
तुम्हारे एक इशारे पे हो गया हूँ तबाह।
ये मुस्कुराने की रुत है ये रुत मलाल की नईं।३।
सुकूते-शहरे-ख़मोशाँ भी कुछ नहीं साहब।
मेरी उदासी अनूठी है ये मिसाल की नईं।४।
उसे भी ध्यान नहीं है कि अब कहाँ हूँ मैं।
मुझे भी अब तो ख़बर अपने माहो-साल की नईं।५।
उरूज - ऊँचाई
ज़वाल - पतन
सुकूते-शहरे-ख़मोशाँ - क़ब्रिस्तान की शान्ति
माहो-साल - महीने-वर्ष
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
१२१२ ११२२ १२१२ २२
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चमक आभास पर होगी हमारी।
अँधेरों में बसर होगी हमारी ।१।
ख़ुदा क्या कुछ नहीं लगता हमारा।
दुआ क्यों बेअसर होगी हमारी।२।
फ़रिश्ते खुद को छोटा पा रहे हैं।
ज़मीं पर ही बसर होगी हमारी।३।
उजाले जब अँधेरा बाँटते हैं।
यहाँ कैसे सहर होगी हमारी।४।
उडानी ख़ुद पड़ेगी ख़ाक अपनी।
हवा तो साथ भर होगी हमारी।५।
बचा लेना हवा के रुख़ से दामन।
कि मिट्टी दर-ब-दर होगी हमारी।६।
तिरे बिन हम अकेले क्यों चलेंगे।
उदासी हमसफ़र होगी हमारी।७।
कभी थम जाएँगे आँसू हमारे।
कभी उनको ख़बर होगी हमारी।८।
कभी थमता नहीं सैलाब उस का ?
यक़ीनन चश्मे-तर होगी हमारी।९।
सहर - भोर
बहरे हजज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
१२२२ १२२२ १२२
Waah..!dono hi ghazal bahut badhiyan.
जवाब देंहटाएंAabhaar....!
एक से बढ़ कर एक हैं दोनों गजलें !
जवाब देंहटाएंसादर
दोनों गज़लें शानदार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़लें.
सादर.
प्रणाम !! आदरेय को !! उनके बयान लिये कुछ कहना मेरे लिये उचित नहीं है -मैने उनको जीवन भर प्रणाम और जी सर!! कहा है !! लेकिन मेरे सबसे आदरणीय का बयान पोस्ट हुआ है इसलिये मैं एक गिरह और एक शेर कहता हूँ -- सादर ==
जवाब देंहटाएंगिरह --
अरूज़ पर ही रहेगी ये रुत ज़वाल की नईं
अदब में और कोई फ़िक्र इस कमाल की नईं
और एक शेर --
जिधर पत्थर चलें ये जान लेना
वो शाखे -बासमर होगी हमारी
सादर --मयंक
बेमिसाल ... दोनों ग़ज़लें एक से बढ़ के एक ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नवीन भाई ...
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल ......
जवाब देंहटाएंदोनों ही गज़लें बेमिसाल.
जवाब देंहटाएंकल देर रात तक आपके ब्लॉग में छंदों का रसपान करते रहे हैं. लग रहा है कि अभी तो बस चखा है.
उरूज पर ही रहेगी ये रुत ज़वाल की नईं ।
जवाब देंहटाएंग़मों को थोड़ी ज़रुरत भी देखभाल की नईं।१।
बहुत सँवार के रखता हूँ दोस्ती को मैं।
कि कोई उम्र मुहब्बत के इंतक़ाल की नईं।२।
Nice .
http://www.facebook.com/#!/groups/265710970107410/
बढ़िया ग़ज़लें
जवाब देंहटाएंACHCHHEE GAZALON KE LIYE BADHAAEE
जवाब देंहटाएंAUR SHUBH KAMNA .
बहुत सँवार के रखता हूँ दोस्ती को मैं।
जवाब देंहटाएंकि कोई उम्र मुहब्बत के इंतक़ाल की नईं
ख़ुदा क्या कुछ नहीं लगता हमारा।
दुआ क्यों बेअसर होगी हमारी
दोनों गज़लें बेहतरीन
एक से बढ़कर एक बहुत सुंदर गजल,...बेहतरीन
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना के लिए "काव्यान्जलि" मे click करे
दोनों ग़ज़लें पसन्द आयीं, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सँवार के रखता हूँ दोस्ती को मैं।
जवाब देंहटाएंकि कोई उम्र मुहब्बत के इंतक़ाल की नईं।२।
बहुत ख़ूब !!
तुम्हारे एक इशारे पे हो गया हूँ तबाह।
जवाब देंहटाएंये मुस्कुराने की रुत है ये रुत मलाल की नईं।३।
बहुत खूब! दाद के साथ ....
waah saahab khoob gazalen kahi hain,,,,,,,,,,,,,,,,,
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