6 नवंबर 2011

हुस्न वाले तो छा गये हर सू - नवीन

थे अँधेरे बहुत घने हर सू|
हमने दीपक जला दिए हर सू|१|

मोर से नाचने लगे हर सू|
ज़िक्र जब आप के हुए हर सू |२|

सारी दुनिया पे राज है इनका|
हुस्न वाले तो छा गए हर सू |३|

पर्व से पूर्व मिल गया बोनस |
दीप खुशियों के जल उठे हर सू |४|

इस ज़मीं पर ही एक युग पहले|
आदमी थे उसूल के हर सू|५|

हर तरफ नफरतों का डेरा है|
अब मुहब्बत ही चाहिए हर सू|६|

यार माली बदल गया है क्या|
तब चमन में  गुलाब थे हर सू|७|

उस को देखा तो यूं लगा मुझको|
तार वीणा के बज उठे हर सू।८।

लोग कितने उदास हैं या रब|
कुछ तो खुशियाँ बिखेर दे हर सू|९|

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कह रहे हैं मुशायरे हर सू|
अम्न की जोत जल उठे हर सू|१|

थे जो खारिज मुआमले कल तक|
रस्म-क़ानून बन गए हर सू|२|

आज इंसान, ख़्वाहिशें, पानी|
बेतहाशा उबल रहे हर सू|३|

कुछ नयी बात ही न मिल पायी|
काफ़िए तो तमाम थे हर सू|४|

है खबर, गाँव को मिलेगी नहर|
दीप खुशियों के जल उठे हर सू|५|

तख़्त - तहज़ीब - ताल और तक़दीर|
वो ही क़िस्से, वो ही धडे हर सू|६|

एक 'सू' मौत, दूसरी जीवन| *
काश पैगाम जा सके हर सू|७|

मुश्किलें हैं तो रास्ते भी हैं|
पर्व आया है, तो मने हर सू|८|

ज़ख्म-एहसास-दर्द-बेचैनी|
दिल के वो ही मुआमले हर सू|९|

* अरबी में 'सू' का एक अर्थ पानी भी होता है, और तुर्की में 'सू' का अर्थ 'शराब' होता है|

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बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फ़ाएलातुन मुफ़ाएलुन फ़ालुन
२१२२ १२१२ २२

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब सर!

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    कल 07/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. आपके ब्लॉग पे आनंद कविता या गज़ल पढ़ने का तो मिलता ही है साथ ही साथ इनके व्याकरण और तकनीकी बारीकियां भी जानने को मिलती हैं.

    बहुत धन्यवाद.

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  3. हर तरफ क्या हो रहा है , इसका खूबसूरत ब्यान

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. नवीनजी, आपकी कहन के चर्चे हर सू ! .. .
    इस शे’र पर दाद कुबूल फ़रमायएं.
    //कुछ नयी बात ही न मिल पायी|
    काफ़िए तो तमाम थे हर सू|// .. ... ऐसा कहनेवाला ही कह सकता है. बधाई

    इधर ग़ज़ल परा हाथ चला रहा हूँ. इसी क्रम में जाना है कि जो अनुप्रास आदि छंदों की खूबसूरती बढ़ा देते हैं, ग़ज़लों में उन्हींका इस्तमाल बहुत सही नहीं माना जाता. आपका क्या कहना है? उस्तादों का मशविरा बेहतर होगा. अनुप्रास का प्रयोग देखा सो पूछ रहा हूँ.
    मेरे एक शे’र का मिसरा-ए-उला है- ’ख़ैर ख़ूँ खाँसी खुशी, पर्दानशीं कब इश्क भी’.
    इस मिसरे पर ही उपरोक्त बातें कहीं गयी थीं कि इस तरह का आनुप्रासिक प्रयोग ग़ज़लों में उचित नहीं है.

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  6. पर्व से पूर्व मिल गया बोनस |
    दीप खुशियों के जल उठे हर सू |
    सरकारी दफ़्तरों में बिलकुल यही होता है।
    बेहतरीन ग़ज़लें।

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  7. शानदार गज़लें नवीन भईया....
    सादर बधाई.....

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  8. प्रिय बंधुवर नवीन भाई
    सस्नेहाभिवादन !

    क्या बात है ! एक ही मिसरे पर दो दो ग़ज़लें !
    पूरा मुशायरा मुन्अक़िद करने का ज़िम्मा एक ही शख़्स ने ओढ़ लिया हो जैसे … :)
    इस ज़मीं पर ही एक युग पहले|
    आदमी थे उसूल के हर सू

    ख़ूबसूरत शे'र है … मेरे ही ख़यालत की तरजुमानी हुई हो जैसे ।

    मुश्किलें हैं तो रास्ते भी हैं|
    पर्व आया है, तो मने हर सू

    मुश्किलात का हल भी तो है …
    क्या सादाबयानी से बात दिल तक पहुंचा दी

    मुबारकबाद दोनों ग़ज़लों के लिए !

    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  9. इस ज़मीं पर ही एक युग पहले|
    आदमी थे उसूल के हर सू|५|
    वाह!

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  10. लोग कितने उदास हैं या रब,
    कुछ तो खुशियाँ बिखेर दे हर सू।

    ग़ज़ल लिखना कितना आसान है आपके लिए, दोनों हमरदीफ ग़ज़लें बेहतरीन अंदाज में कही है आपने।
    बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

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  11. सुन्दर रचनाएं,भावपूर्ण !

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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  12. ये क्या क्या होरहा है हरसू ।
    एक अच्छा बयां है हरसू ॥

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  13. DONON GAZALEN APNA - APNA AALOK BIKHER RAHEE
    HAIN .

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  14. लोग कितने उदास हैं या रब|
    कुछ तो खुशियाँ बिखेर दे हर सू

    आमीन!
    ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  15. ज़ख्म-एहसास-दर्द-बेचैनी|
    दिल के वो ही मुआमले हर सू
    शानदार गज़लें । बधाई

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  16. पहले आपकी रचनाओं को किताबी चेहरे पर पढता रहा था... अब यहाँ पे पढ़ रहा हूँ,,,, आप तो बस छा गए हर सू

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