25 सितंबर 2013

चन्द अशआर - रश्मि सबा

अश्क आँखों में उतरता तो उतरता कैसे
झील सूखी थी ,कोई अक्स उभरता कैसे

उम्र लगती है सबा दर्द को पानी देते
रात के रात कोई रूप निखरता कैसे

तसव्वुर में कभी सोचा था जिसको
वही चेहरा हमारा हो रहा है

मैं जबसे रतजगे करने लगी हूँ
उजाले में इजाफ़ा हो रहा है
                              
इन परिंदों को भटकते हुए देखा ही नहीं
कौन है रोज़ इन्हें राह दिखाने वाला

अक्स मेरा था सबा और चमक भी मेरी
अब परेशान है आईना दिखाने वाला
                                         
उतारी जा चुकी हूँ चाक से मैं
किसी का फ़र्ज़ पूरा हो गया क्या

उतर आए हैं पलकों पर सितारे
फ़लक पर चाँद तनहा रह गया क्या

जबसे वो दूर हो गया मुझसे
यूँ  लगा दूर है खुदा मुझसे

मेरा नुक़सान हर तरह से है
माँगता है वो मशवरा मुझसे

और कुछ रुख़ निकालने के लिए
सुनना चाहेगा वाक़या मुझसे

हाय किस फूल की ये ख़ुशबू है
पूछती रह गयी सबा मुझसे
    
फ़रिश्ते ध्यान लगाए उतरने लगते हैं .
जो साथ तुम हो तो लम्हे सँवरने लगते हैं

ये आईने के अलावा सिफ़त किसी में नहीं
सँवरने वाले सरापा बिखरने लगते हैं

सजानी होती है जिस शब भी चाँद को महफ़िल
सितारे शाम से छत पर उतरने लगते हैं

दिखाई दे तो लिपट जाऊँ उस सदा से मैं 
कि जिसको सुन के 'सबा' फूल झरने लगते हैं
                                                        
चाँद को साथी बना ले ,रात को आबाद कर
रोशनी के ख़्वाब बुन और नींद से फ़रियाद कर

एक मद्धम सी सदा आती है मुझ तक रात दिन
कोई ये कहता है शायद, अब मुझे आज़ाद कर

क्या अजब दस्तूर है उसकी अदालत का सबा
मुद्दआ कोई नहीं है फिर भी तू फ़रियाद कर

कहीं से आती सदा है कोई
सदा नहीं है दुआ है कोई

कहाँ पता थी ये बात मुझको
कि मुझमे कब से छुपा है कोई

समझ रहे थे जिसे जज़ीरा
समन्दरों में घिरा है कोई

चमक रहा है जो चाँद बन के
यहीं से उठ कर गया है कोई

वफ़ा भी दे दी अना भी दे दी
सबा से फिर क्यूँ ख़फ़ा है कोई
                                   
फ़र्क पड़ता है क्या समंदर को
एक कश्ती के डूब जाने से

हर बहाना बरत चुका है सबा
अब वो आएगा किस बहाने से

ख़ामोशी थक के सो गई आख़िर
वो सदा रात भर नहीं आई

आहटें दिन की सुन रही थी मगर
रात ढलती नज़र नहीं आई

:- रश्मि सबा

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना की
    चन्द अशआर - रश्मि सबा
    अश्क आँखों में उतरता तो उतरता कैसे
    झील सूखी थी ,कोई अक्स उभरता कैसे
    ये पंक्तियाँ लिंक सहित
    शनिवार 28/09/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. अश्क आँखों में उतरता तो उतरता कैसे
    झील सूखी थी ,कोई अक्स उभरता कैसे

    उम्र लगती है सबा दर्द को पानी देते
    रात के रात कोई रूप निखरता कैसे

    बहुत खुबसूरत रचना
    नई पोस्ट साधू या शैतान
    latest post कानून और दंड

    जवाब देंहटाएं