
सादगी पहचान जिसकी ख़ामुशी आवाज़ है
सोचिये उस आइने से क्यों कोई नाराज़ है
बेसबब सायों को अपने लम्बे क़द पे नाज़ है
ख़ाक में मिल जायेंगे ये शाम का आग़ाज़ है
यूँ हवा लहरों पे कुछ तह्रीर करती है मगर
झूम कर बहता है, दरिया का यही अन्दाज़ है
देख कर शाहीं को पिंजरे में पतिंगा कुछ कहे
जानता वो भी है किसमे कुव्वते-परवाज़ है
क्यों मुगन्नी के लिये बैचैन है तू इस क़दर
ऐ दिले नादाँ कि तू तो इक शिकस्ता साज़ है
:- मयंक अवस्थी +91 9096852865
सहायक प्रबन्धक
रिजर्व बेंक ऑफ इंडिया – नागपुर
बेसबब=अकारण
आग़ाज़=आगमन
शाहीं ==बाज पक्षी
मुगन्नी==गायक
शिकस्ता साज़= टूटा हुआ वाद्य
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
2122 2122 2122 212
बहरे रमल मुसमन महजूफ
सहायक प्रबन्धक
रिजर्व बेंक ऑफ इंडिया – नागपुर
बेसबब=अकारण
आग़ाज़=आगमन
शाहीं ==बाज पक्षी
मुगन्नी==गायक
शिकस्ता साज़= टूटा हुआ वाद्य
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
2122 2122 2122 212
बहरे रमल मुसमन महजूफ
देख कर शाहीं को पिंजरे में पतिंगा कुछ कहे
ReplyDeleteजानता वो भी है किसमे कुव्वते-परवाज़ है
वाह! हर शेअर लाजवाब... उम्दा ग़ज़ल...
सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय मयंक अवस्थी जी.
Gazal zafar qaleem sahab ke yahan shayar se suni hai -salim nagpur
ReplyDeleteMayank ji ko main niji tur par janata hun -wo isase achhi gazal kahate hain -ye gazal bhi achhi hai unko mushayron me sun bhi chuka hun -ooncha meyar hai inki shayri ka -salim
ReplyDeleteS.M HABIB(Sanjay Mishra "Habib")-हबीब साहब !! मैं तहे -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ हौसल -अफ्ज़ई केलिये !!
ReplyDeleteसालिम ज़िया साहब !! मेरा सौभाग्य कि आपने मेरी ग़ज़ल के लिये लिखा और आपकी याददाश्त कमाल की है -आप जैसे कद आवर शायर के ये शब्द मेरे लिये बहुत बहुत प्रेरणादायी हैं -निवेदन है कि इस ब्लाग पर आप और भी पोस्टस् पर कुछ लिखिये हमारा सौभाग्य होगा !!
ReplyDeleteग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
ReplyDeleteउम्दा गज़ल का बेहतरीन शेर :
ReplyDeleteबेसबब सायों को अपने लम्बे क़द पे नाज़ है
ख़ाक में मिल जायेंगे ये शाम का आग़ाज़ है
बहोत अच्छी रचना
ReplyDeleteनया हिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
यूँ हवा लहरों पे कुछ तह्रीर करती है मगर
ReplyDeleteझूम कर बहता है, दरिया का यही अन्दाज़ है
शानदार शेर, शानदार ग़ज़ल।
अवस्थी जी, बहुत अच्छा लिखा है आपने।
laajabaab sher.
ReplyDeleteबेहतर कैनवास की सुन्दर ग़ज़ल ! मतले की सादगी बस मुग्ध कर गयी.
ReplyDeleteप्रस्तुत शे’र के लिये विशेष बधाइयाँ -
बेसबब सायों को अपने लम्बे क़द पे नाज़ है
ख़ाक में मिल जायेंगे ये शाम का आग़ाज़ है
ग़ज़ब ! बहुत सुन्दर !!
देख कर शाहीं को पिंजरे में पतिंगा कुछ कहे
जानता वो भी है किसमे कुव्वते-परवाज़ है
इस शे’र पर ढेर सारी दाद..
- सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
bahut khoob...bahut achche sher :)
ReplyDeletewelcome to my blog
बेसबब सायों को अपने लम्बे क़द पे नाज़ है
ReplyDeleteख़ाक में मिल जायेंगे ये शाम का आग़ाज़ है
...बहुत खूब! बेहरतीन गज़ल...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... जल कर ढहना कहाँ रुका है ?
मनोज साहब !! गज़ल पसन्द करने के लिये बहुत बहुत आभार !!
ReplyDeleteअरुण कुमार निगम साहब !! ह्रदय से आभारी हूँ !!
ReplyDeleteKhilesh !! आपका बहुत बहुत आभार !!
ReplyDeleteमहेन्द्र वर्मा साहब !! आप हमेशा मेरा बहुत उत्साह वर्धन करते हैं मैं बहुत अनुग्रहीत हूँ !!
ReplyDeleteRajesh Kumari!! मेरा आभार स्वीकार कीजिये !!
ReplyDeleteसौरभ पाण्डेय साहब !! मैं नि:शब्द हूँ आपके शब्दों के लिये !! आपके शब्दों ने आंतरिक विश्वास दिया कि कि इस ग़ज़ल में कुछ पढनीय भी है -- बहुत बहुत आभार !!! आप जिस प्रकार से उत्साहवर्धन करते हैं वह रचनाधर्मी के लिये महौषधि के समान है --ह्रदय से आभार !!
ReplyDeleteमोनिका जैन मिष्ठी -- आभारी हूँ !! आपका ब्लाग प्रशंसनीय है -रचनायें बहुत सुन्दर हैं सभी और प्रस्तुतीकरण भी --आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना है
ReplyDeleteKailash Sharma -आदरेय आपके कमेण्ट के बाद आश्वस्ति मिलती है --मैं आपकी टिप्पणी का इंतज़ार करता हूँ !!
ReplyDeleteसंगीता स्वरूप (गीत ) !! आभारी हूँ !! रचना को विकास और विस्तार मिलेगा !!
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteऋता जी !! आपको और ब्लाग के सभी सदस्यों को नववर्ष मंगलमय हो !!
ReplyDeleteमयंक जी के निम्नांकित शे’र मुझे बहुत पसंद आये...हार्दिक बधाई!
ReplyDelete-१-
सादगी पहचान जिसकी ख़ामुशी आवाज़ है
सोचिये उस आइने से क्यों कोई नाराज़ है
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देख कर शाहीं को पिंजरे में पतिंगा कुछ कहे
जानता वो भी है किसमे कुव्वते-परवाज़ है
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बेसबब सायों को अपने लम्बे क़द प’ नाज़ है
ख़ाक में मिल जायेंगे ये शाम का आग़ाज़ है