बच्चे - बड़े - बूढ़े जहाँ पर, प्यार से बातें करें|
अपनत्व के तरु* से अहर्निश*, फूल खुशियों के झरें|
मृदुहास मय परिहास एवम आपसी विश्वास हो|
कहते उसी को 'घर', जहाँ, सुख - शांति का आभास हो||
*
तरु - पेड़, वृक्ष
अहर्निश - रात-दिन, हमेशा
===============================================मात्रिक छन्द - हरिगीतिका
- १६+१२=२८मात्रा
- प्रत्येक चरण में १६ मात्रा के बाद यति / ध्वनी विराम [बोलते हुए रुकना]
- चार चरण वाला छंद
- पहले-दूसरे तथा तीसरे-चौथे चरणों का तुकांत समान होना चाहिए
- चारों चरणों का तुकांत भी समान हो सकता है
- हर चरण के अंत में लघु-गुरु [१२] अनिवार्य
[छंद संदर्भ - श्री राम चंद्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणं]
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उपरोक्त हरिगीतिका छन्द की मात्रा गणना:-
पहला चरण:-
बच्चे-बड़े-बूढ़े जहाँ पर,२२ १२ २२ १२ ११ = १६ मात्रा तथा यति
प्यार से बातें करें|
२१ २ २२ १२ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु
दूसरा चरण:-
अपनत्व के तरु से अहर्निश, ११२१ २ ११ २ १२११ = १६ मात्रा तथा यतिफूल खुशियों के झरें|२१ ११२ २ १२ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु
तीसरा चरण:-
मृदुहास मय परिहास एवम
११२१ ११ ११२१ २११ = १६ मात्रा तथा यतिआपसी विश्वास हो|
२१२ २२१ २ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु
चौथा चरण:-
कहते उसी को घर जहाँ, सुख-
११२ १२ २ ११ १२ ११ = १६ मात्रा तथा यति
शांति का आभास हो||
२१ २ २२१ २ = 12 मात्रा, अंत में लघु गुरु
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बहुत ही सुन्दर स्तुत्स कार्य
ReplyDeleteसुन्दर संदेश युक्त, छंद शिक्षा!!
ReplyDeleteबिल्कुल सही व्याख्या की है घर की।
ReplyDeletesach to yahi hai....
ReplyDeleteकाव्य शास्त्र का विज्ञान आपके चरणों में बैठ कर सीखना होगा... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसमझने का प्रयत्न कर रहा हूं।
ReplyDelete"कहते उसी को 'घर' जहाँ सुख-शांति का आभास हो"
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति........ बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteकविताओं की मात्रा तो नहीं समझा पर अर्थ में आनन्द की मात्रा कहीं अधिक थी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवीन जी
ReplyDeletesachmuch aapka 'ghar' utkrisht hai !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहर गीतिका को स्पष्ट करती पंक्तियाँ |
ReplyDeleteआशा