कविता गुप्ता |
शब्द की सामर्थ्य का विलक्षण उदाहरण बक़ौल कविता गुप्ता :-
चार-छह साल की दो नन्ही-नन्ही बेटियों को अपने से उस वक़्त दूर करना जब उन्हें माँ की सख़्त ज़ुरूरत होती है; किसी भी माँ के लिये बहुत मुश्किल समय होता है। परन्तु जीवन है ही ऐसा जो कि मज़बूरियों के बग़ैर चल ही नहीं सकता। उसी वक़्त की यह ख़तनुमा कविता है। तब मैंने इसे अपनी बच्चियों को यह सोच कर नहीं भेजा कि उन का बाल-सुलभ कोमल हृदय टूट
जायेगा। कुछ बरसों बाद जब उन्हें पढ़ाया तो दौनों बेटियाँ रो पड़ीं .......
मुझे ख़ुशी है
कि तुम मेरी बेटियाँ हो
तुम्हें ले कर मैंने बहुत से सपने देखे हैं
चूँकि तुम मेरी बेटियाँ हो
मत सोचना
कि मैं तुम से दूर हूँ
तुम देखो अपने नन्हे-नन्हे हाथों को
मैं उन्हें चूम रही हूँ
आईने में देखो अपनी आँखें
मैं उन में भी झाँक रही हूँ
वो देखो
तुम्हारी पीठ पर खाज आई है
और मैं बस बस कहते हुये सहला रही हूँ
मैं डपट कर तुम्हें सुला रही हूँ
तुम उखड़ी-उखड़ी सी हो
अपने बालों को जैसे ही छूती हो
वैसे ही मैंने प्रश्न दाग दिया
"क्लास में किस के पास बैठी थीं?
फिर लीखें ले आईं?"
मैं लीखें निकाल रही हूँ
चाहे निकलें नहीं
फिर भी तुम्हें चैन आता है
तुम्हें नींद आती है
तुम सोना चाहती हो
मैं तुम्हारी पलकों को
अपनी उँगलियों के पोरों से सहला रही हूँ
तुम मेरे गले में
अपनी नन्ही-नन्ही बाँहों को डाले
अपनी सारी दुनिया
मेरे इर्द-गिर्द समेटे
कितनी प्यारी नींद सो रही हो
कितनी सुंदर दिखती हो तुम
तुम्हारा भोलापन.......
ओह्हो.....
मैं तुम्हारा मस्तक चूम कर उठती हूँ
मुझे ख़ुशी है
कि तुम बेटियाँ हो
तुम उदास मत होना
मुझे याद कर के
क्योंकि
तुम मेरी बेटियाँ हो
एक माँ के उद्गार हैं,वह भी बेटियों के लिए...भावपूर्ण होंना स्वभाविक है
जवाब देंहटाएंसहज संप्रेषण !!
भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंसहज भावना है माँ की अपनी बेटियों के प्रति !
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
मन को छू लेने वाली रचना....
जवाब देंहटाएंऋता दी, शरद दी, वाणी जी और वंदना जी आपने एक माँ के मन को बेहतर ढंग से समझा....... दिलबाग विर्क जी ने चर्चा और यशोदा जी ने हलचल में इस पोस्ट को शामिल किया ...... इस के लिए आप सभी का का बहुत-बहुत आभार ...... :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना...
सादर
अनु