महीना पच्चीस दिन दूध-घी उड़ामें और
जाय कें अखाडें दण्ड-बैठक लगामें हैं|
मूछन पे ताव दै कें जङ्घन पे ताल दै कें
नुक्कड़-अथाँइन पे गाल हू बजामें हैं|
पिछले बरस बारौ बदलौ चुकामनौ है,
पूछ मत कैसी-कैसी योजना बनामें हैं|
लेकिन बिचारे बीर बरसाने पौंचते ही,
लट्ठ खाय गोपिन सों घर लौट आमें हैं||
होली की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपने तो अभी से होली की उमंग ला दिया।
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जवाब देंहटाएंबरसाने की होली का जीवंत चित्रण !
जवाब देंहटाएंआद. नवीन जी, इस सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
आभार !
बहुत सुन्दर रचना..मेरा भी सम्बन्ध मथुरा से होने के कारण, ब्रजभाषा में रचना पढ़ कर बहुत अपनापन लगा..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चित्रण बरसाने कि होली का ...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबड़ी ही रोचक लगती है वह होली, सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi aapki ye rachna , bahut sundar
जवाब देंहटाएंहोली का रोचक चित्रण किया है शब्दों से। बधाई आपकोा।
जवाब देंहटाएंअतुल श्रीवास्तव जी आप को भी होली की अग्रिम शुभ कामनाएँ| हमारे ब्रज में तो फागुन लगते ही होली वाला माहौल हो जाता है|
जवाब देंहटाएंभाई ज्ञान चंद्र मर्मज्ञ जी आभार
जवाब देंहटाएंभाई कैलाश शर्मा जी आप भी मथुरा से हैं ये जान कर अत्यधिक प्रसन्नता हुई| आप तो फिर बरसाने की होली का प्रत्यक्ष आनंद ले चुके होंगे| सराहना के लिए सहृदय आभार|
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता स्वरूप जी सराहना के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंभाई प्रवीण पाण्डेय जी घांकाक्षरी कवित्तों की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभाई रजनीश तिवारी जी सराहना के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीया निर्मला कपिला जी आपका आशीष पाना सदैव ही आनंद दायक होता है मेरे लिए
जवाब देंहटाएंअरे वाह होली की मजेदार कविता..... सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार चैतन्यशर्मा जी
जवाब देंहटाएंआदरणीया सांगीता स्वरूप जी मेरे प्रयास को चर्चा का हिस्सा बनाने के लिए आभार
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