11 मार्च 2011

बरसाने की लठामार होली

महीना पच्चीस दिन दूध-घी उड़ामें और  
जाय कें अखाडें दण्ड-बैठक लगामें हैं|
 
मूछन पे ताव दै कें जङ्घन पे ताल दै कें
नुक्कड़-अथाँइन पे गाल हू बजामें हैं|
 
पिछले बरस बारौ बदलौ चुकामनौ है,
पूछ मत कैसी-कैसी योजना बनामें हैं|
 
लेकिन बिचारे बीर बरसाने पौंचते ही,
लट्ठ खाय गोपिन सों घर लौट आमें हैं||

18 टिप्‍पणियां:

  1. होली की शुभकामनाएं।
    आपने तो अभी से होली की उमंग ला दिया।

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  3. बरसाने की होली का जीवंत चित्रण !
    आद. नवीन जी, इस सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
    आभार !

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  4. बहुत सुन्दर रचना..मेरा भी सम्बन्ध मथुरा से होने के कारण, ब्रजभाषा में रचना पढ़ कर बहुत अपनापन लगा..बहुत सुन्दर

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  5. बहुत बढ़िया चित्रण बरसाने कि होली का ...सुन्दर रचना

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  6. बड़ी ही रोचक लगती है वह होली, सुन्दर कविता।

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  7. होली का रोचक चित्रण किया है शब्दों से। बधाई आपकोा।

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  8. अतुल श्रीवास्तव जी आप को भी होली की अग्रिम शुभ कामनाएँ| हमारे ब्रज में तो फागुन लगते ही होली वाला माहौल हो जाता है|

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  9. भाई ज्ञान चंद्र मर्मज्ञ जी आभार

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  10. भाई कैलाश शर्मा जी आप भी मथुरा से हैं ये जान कर अत्यधिक प्रसन्नता हुई| आप तो फिर बरसाने की होली का प्रत्यक्ष आनंद ले चुके होंगे| सराहना के लिए सहृदय आभार|

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  11. आदरणीया संगीता स्वरूप जी सराहना के लिए बहुत बहुत आभार

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  12. भाई प्रवीण पाण्‍डेय जी घांकाक्षरी कवित्तों की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  13. भाई रजनीश तिवारी जी सराहना के लिए आभार

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  14. आदरणीया निर्मला कपिला जी आपका आशीष पाना सदैव ही आनंद दायक होता है मेरे लिए

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  15. अरे वाह होली की मजेदार कविता..... सुंदर

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  16. आदरणीया सांगीता स्वरूप जी मेरे प्रयास को चर्चा का हिस्सा बनाने के लिए आभार

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