18 मार्च 2011

कोई लेखक किसी भी क़ौम का चेहरा नहीं होता - नवीन

हमें एक दूसरे से गर गिला शिक़वा नहीं होता
तो अंग्रेजों ने हम को इस क़दर बाँटा नहीं होता



नयों को हौसला भी दो, न ढूँढो ख़ामियाँ केवल
बड़े शाइर का भी हर इक बयाँ आला नहीं होता



हज़ारों साल पहले CCTV आ गई होती
अगर शकुनी युधिष्ठिर से जुआ खेला नहीं होता



अदब से पेश आना चाहिए साहित्य में सबको
कोई लेखक किसी भी क़ौम का चेहरा नहीं होता



ज़रा समझो कि 'कॉरपोरेट' भी कहने लगा है अब
गृहस्थी से जुड़ा इन्सान लापरवा' नहीं होता

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें