आज सपने में ललिता ने ये दिया हुकुम,
ढूँढ के छली को पेश कीजे दरबार में|
दिलों को दुखाने की मिलेगी सज़ा उसे आज,
जुर्म इकबाल होगा अदालतेप्यार में|
प्रेम का कनून तोड़ा, राधा जी से मुँह मोड़ा,
बख्शा न जाएगा वो, छपा दो अख़बार में|
सभी जगा ढूँढा, पर, मिला नहीं श्याम, चूँकि-
बैठा था वो तो छुप के दिलेसरकार में||
[घनाक्षरी कवित्त]
ढूँढ के छली को पेश कीजे दरबार में|
दिलों को दुखाने की मिलेगी सज़ा उसे आज,
जुर्म इकबाल होगा अदालतेप्यार में|
प्रेम का कनून तोड़ा, राधा जी से मुँह मोड़ा,
बख्शा न जाएगा वो, छपा दो अख़बार में|
सभी जगा ढूँढा, पर, मिला नहीं श्याम, चूँकि-
बैठा था वो तो छुप के दिलेसरकार में||
[घनाक्षरी कवित्त]
वाह!....खूब!
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र भाई साब उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत आभार
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