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यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' 11.05.1931 - 14.03.2005 |
गुरुदेव श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी 'ठाले-बैठे' पर पहली बार।
श्री गणेश, 'गणेश पिता शिव जी' की स्तुति से कर रहे हैं। आने वाले
समय में एक एक कर के हम 'प्रीतम' जी विरचित 'दैव-स्तुति',
'ऋतु वर्णन', 'समस्या-पूर्ति', 'सामाजिक सरोकार', राष्ट्र हित
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विश्वम्भर शिव |
जय जयति जगदाधार जगपति जय महेश नमामिते
वाहन वृषभ वर सिद्धि दायक विश्वनाथ उमापते
सिर गङ्ग भव्य भुजङ्ग भूसन भस्म अङ्ग सुशोभिते
सुर जपति शिव, शशि धर कपाली, भूत पति शरणागते
वाहन वृषभ वर सिद्धि दायक विश्वनाथ उमापते
सिर गङ्ग भव्य भुजङ्ग भूसन भस्म अङ्ग सुशोभिते
सुर जपति शिव, शशि धर कपाली, भूत पति शरणागते
जय जयति गौरीनाथ जय काशीश जय कामेश्वरम्
कैलाशपति, जोगीश, जय भोगीश, वपु गोपेश्वरम्
जय नील लोहित गरल-गर-हर-हर विभो विश्वम्भरम्
रस रास रति रमणीय रञ्जित नवल नृत्यति नटवरम्
जय नील लोहित गरल-गर-हर-हर विभो विश्वम्भरम्
रस रास रति रमणीय रञ्जित नवल नृत्यति नटवरम्
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शिव ताण्डव स्वरूप |
तत्तत्त ताता ता तताता थे इ तत्ता ताण्डवम्
कर बजत डमरू डिमक-डिम-डिम गूञ्ज मृदु गुञ्जति भवम्
बम-बम बदत वेताल भूत पिशाच भूधर भैरवम्
जय जयति खेचर यक्ष किन्नर नित्य नव गुण गौरवम्
कर बजत डमरू डिमक-डिम-डिम गूञ्ज मृदु गुञ्जति भवम्
बम-बम बदत वेताल भूत पिशाच भूधर भैरवम्
जय जयति खेचर यक्ष किन्नर नित्य नव गुण गौरवम्
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शिव में समाया जगत |
जय प्रणति जन पूरण मनोरथ करत मन महि रञ्जने
अघ मूरि हारी धूरि जटि तुम त्रिपुर अरि-दल गञ्जने
जय शूल पाणि पिनाक धर कन्दर्प दर्प विमोचने
'प्रीतम' परसि पद होइ पावन हरहु कष्ट त्रिलोचने
अघ मूरि हारी धूरि जटि तुम त्रिपुर अरि-दल गञ्जने
जय शूल पाणि पिनाक धर कन्दर्प दर्प विमोचने
'प्रीतम' परसि पद होइ पावन हरहु कष्ट त्रिलोचने
:- कविरत्न श्री यमुना प्रसाद
चतुर्वेदी ‘प्रीतम’
काव्य का अद्भुत प्रवाह..
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ReplyDeleteॐ नमः शिवाय !
परम श्रद्धेय श्री यमुना प्रसाद जी चतुर्वेदी 'प्रीतम' द्वारा हरिगीतिका छंद में रचित शिव स्तुति पढ़ने का अवसर उपलब्ध कराने के लिए
परम प्रिय मित्र आदरणीय नवीन जी के प्रति हृदय से आभारी हूं ।
नमन !
चारों छंदों की ध्वन्यात्मकता और प्रवाह देखते ही बनता है… अद्भुत ! अलौकिक ! आत्मिक शांति प्रदायक !
चारों छंदों का जितनी बार सस्वर पाठ करें उतना ही आनन्द सागर में डूबते जाते हैं …
आज का दिन मंगलमय हो गया …
मां सरस्वती मुझे भी इतना श्रेष्ठ सृजन करने की सामर्थ्य और क्षमता का आशीर्वाद दे…
अब आप द्वारा रचित 'दैव-स्तुति', 'ऋतु वर्णन', 'समस्या-पूर्ति', 'सामाजिक सरोकार', 'राष्ट्र हित चिन्तन' आदि विषयों से जुड़े छंदों को पढ़ने की तीव्र उत्कंठा जाग्रत हो गई है… … …
पुनः दियात्मा को शत शत प्रणाम और आपका आभार !
अनंत शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
हर हर महादेव!!!!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.....
सादर.
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
ज्यों गूंगेहि मीठे फ़ल कौ रस अन्तरगत ही भावै..
ReplyDeleteशिवमय हो गए आज तो ...बहुत सुंदर छंद
ReplyDeleteअद्भुद आनंद मिला इस स्तुति को पढ़ कर... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteई मेल द्वारा प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeletesn Sharma
11:50 AM (1 hour ago)
to me
आ० नवींन जी ,
आ० स्व० श्री यमुना पसाद चतुर्वेदी द्वारा रचित शिव स्तुति पढ़ कर
आनंद आ गया | कृपया इसे मेरी मेल पर भेजने का कष्ट करे |
आभारी रहूँगा |
सादर
कमल
श्रद्धेय यमुना प्रसाद चतुर्वेदी ki यह रचना काव्य-प्रवाह ka उत्कृष्ट नमूना है साथ ही हरिगीतिका छंद ka संग्रहनीय उदाहरण ...प्रिय मित्र नवीन जी अपने गुरूजी के कृतित्व से परिचय कराने हेतु आपका आभार .......डॉ.ब्रिजेश
ReplyDeleteइस अद्भुत एवं अनुपम शिव स्तुति को पढ़वाने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद नवीन जी ! इस अप्रतिम रचना का काव्य सौष्ठव देखते ही बनता है ! कमाल का सृजन है ! आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी स्तुति है सर!
ReplyDeleteसादर
वाह, अद्भुत रचना।
ReplyDeleteअलंकारों और ध्वनि सूचक शब्दों ने छंदों की शोभा बढ़ा दी है।
सुंदर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteवाह नवीन जी क्या ध्वन्यात्मक छंद है पाठ करते हुए बदन में सिहरन उतर जाना स्वाभाविक है शब्द जैसे सितार सा झंकृत कर मुग्ध कर लेते हैं
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteइस अद्भुत एवं अनुपम शिव स्तुति को पढ़वाने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद नवीन जी !
ReplyDeleteआपकी साहित्य साधना को मेरा नमन
प्रातःस्मरणीय यमुना प्रसाद चतुर्वेदी ’प्रीतम’ की छांदसिक वरिष्ठता अभिभूत कर गयी. आपके प्रयुक्त शब्द वस्तुतः अक्षर सदृश कालजयी तथा सार्वभौमिक हैं.
ReplyDeleteछंद की पंक्तियों में अलंकृत शब्दावलियाँ छंद-गायन के क्रम में स्वतः ही रोम-रोम में शिवत्त्व-भाव की स्थापना करती हुई झंकृत होती जाती हैं. रचना में गेयता का स्तर इतना ऊँचा है कि स्वराघात के क्रम में आहत का अनुनाद और फिर पंक्तियों की पूर्णता पर भान होता तरंगित अनहद, वाह ! काव्य और संगीत इतना सुन्दर सुखद संयोग आज की रचना प्रक्रिया में एक सिरे से समाप्तप्राय है.
विशेष रूप से तीसरे छंद की चर्चा करूँ, जहाँ ताण्डव का तड़ित् प्रारूप अभिव्यक्त है, रचनाकार की शाब्दिक ऊर्जा पर मन-मस्तिष्क स्वयं नत हो जाता है.
तत्तत्त ताता ता तताता थे इ तत्ता ताण्डवम
कर बजत डमरू डिमक-डिम-डिम गूंज मृदु गुंजित भवम
भाई नवनजी, इस कालजयी रचना को इस मंच के माध्यम से साझा करने के लिये आपका सादर अभिनन्दन करता हूँ.
-सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
मैं तो मंत्रमुग्ध सी इसे पढ़ती चली गई|
ReplyDeleteगुरूदेव को हार्दिक नमन!!
इतनी सुंदर कृति को शेयर करने के लिए आभार!!!
अनुपम स्तुति.
ReplyDeleteसादर नमन.
काव्य का अप्रतिम प्रवाह लिये आनंदमय प्रस्तुति।
ReplyDeleteआलोकिक आनंद की अनुभूति ... काव्य जैसे रस गंगा सा बह रहा है ... बहुत कहू इस प्रस्तुति के लिए आभार नवीन जी ...
ReplyDeleteअद्भुत ! आलौकिक ! दिव्य !!!
ReplyDeleteअद्भुत रचना से अवगत करने के लिए धन्यवाद. अब ऐसे लेखक मिलते नहीं. जो हैं, उन्हें कोई पूछता नहीं.
ReplyDeleteशिव शंकर महादेव तेरी जय हो - कविराज श्री प्रीतम जी आज भी अपनी रचनाओं के साथ पाठकों के ह्रदय में विराजमान है | नविन भाईसाहब आपको पोस्ट करने हेतु सादर आभार
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...
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