मुश्किलें मत पूछ, आसानी न पूछ।
है बड़ा, तो बात बचकानी न पूछ ।१।
याद कर अपने लड़कपन के भी दिन।
क्यूँ हुई बच्चों से नादानी न पूछ।२।
भेड़िया क्या जाने इंसानी रिवाज़|
धूर्त से तहज़ीब के मानी न पूछ।३।
जो मुक़द्दर ने दिया कर ले कुबूल।
कर्ण! कुंती की परेशानी न पूछ ।४।
था फ़िदा जिस पर गुलाबों का मुरीद।
कौन थी वो श़क्ल नूरानी न पूछ।५।
बोलना आता तो क्यूँ होता हलाल।
बेज़ुबाँ से वज़्हेक़ुरबानी न पूछ।६।
रोशनी से गर तुझे परहेज़ है|
फिर सरंजामेनिगहबानी न पूछ।७।
मछलियों के हक़ में बगुलों की जमात।
किस कदर है सबको हैरानी न पूछ।८।
हाथ कंगन आरसी मौज़ूद है।
अब तो कोई बात बेमानी न पूछ।९।
है बड़ा, तो बात बचकानी न पूछ ।१।
याद कर अपने लड़कपन के भी दिन।
क्यूँ हुई बच्चों से नादानी न पूछ।२।
भेड़िया क्या जाने इंसानी रिवाज़|
धूर्त से तहज़ीब के मानी न पूछ।३।
जो मुक़द्दर ने दिया कर ले कुबूल।
कर्ण! कुंती की परेशानी न पूछ ।४।
था फ़िदा जिस पर गुलाबों का मुरीद।
कौन थी वो श़क्ल नूरानी न पूछ।५।
बोलना आता तो क्यूँ होता हलाल।
बेज़ुबाँ से वज़्हेक़ुरबानी न पूछ।६।
रोशनी से गर तुझे परहेज़ है|
फिर सरंजामेनिगहबानी न पूछ।७।
मछलियों के हक़ में बगुलों की जमात।
किस कदर है सबको हैरानी न पूछ।८।
हाथ कंगन आरसी मौज़ूद है।
अब तो कोई बात बेमानी न पूछ।९।
बहरे रमल मुसद्दस महजूफ
फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
२१२२ २१२२ २१२
फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
२१२२ २१२२ २१२
याद कर अपने लड़कपन के भी दिन।
ReplyDeleteक्यूँ हुई बच्चों से नादानी न पूछ।२।
बहुत खूब सर!
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कल 27/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह......क्या कहने ...एक-एक शे’र
ReplyDeleteतग़ज़्ज़ुल से लबरेज़....पढ़ कर बहुत लुत्फ़
आया ...
ज्यादातर लोग बेमानी पश्न ही तो पूछते हैं |
ReplyDeleteअच्छी और भाव पूरण रचना |
बधाई |
आशा
मछलियों के हक़ में बगुलों की जमात।
ReplyDeleteकिस कदर है सबको हैरानी न पूछ।८।
वाह! क्या बात है!! बहुत अच्छी ग़ज़ल!!!
सभी शेर बहुत अच्छे कहे हैं और यह मुकम्मल गज़ल है --दुष्यंत कुमार जी की मुहिम आगे बढ रही है --
ReplyDeleteयाद कर अपने लड़कपन के भी दिन।
क्यूँ हुई बच्चों से नादानी न पूछ
बोलना आता तो क्यूँ होता हलाल।
बेज़ुबाँ से वज़्हेक़ुरबानी न पूछ
मछलियों के हक़ में बगुलों की जमात।
किस कदर है सबको हैरानी न पूछ
यह शेर आसान ज़ुबान और कई स्थितियों में quotable शेर हुये हैं -- यह विसंगतियाँ स्थान स्थान पर समाज में दिखाई देती है-बधाई !!
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteमुश्किलें मत पूछ, आसानी न पूछ।
ReplyDeleteहै बड़ा, तो बात बचकानी न पूछ ।१।
....बहुत खूब! हरेक शेर अपने आप में एक गहन जीवन दर्शन समेटे हुए...लाज़वाब
बहुत खूब ... सुन्दर गज़ल
ReplyDeleteबहुत खूब ||
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं में से एक ||
आभार ||
bahut hi sundar...
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
याद कर अपने लड़कपन के भी दिन।
ReplyDeleteक्यूँ हुई बच्चों से नादानी न पूछ
बहुत खूब..
यब बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार!
ReplyDeleteमछलियों के हक़ में बगुलों की जमात।
ReplyDeleteकिस कदर है सबको हैरानी न पूछ।८।
वाह! वाह! दुष्यंत कुमार जी याद आगये इस गज़ल को पढ़ कर...
सचमुच आनंद आ गया...
सादर बधाई...
ये तो कालजयी ग़ज़ल हो गई है नवीन भाई, हर शे’र पर अरखों खरबों बार दिली दाद कुबूल कीजिए।
ReplyDeleteयाद कर अपने लड़कपन के भी दिन।
ReplyDeleteक्यूँ हुई बच्चों से नादानी न पूछ।२।
वाह!
वाह क्या बात है, बहुत ही सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteढेरों सुभकामनाएँ !
बोलना आता तो क्यूँ होता हलाल।
ReplyDeleteबेज़ुबाँ से वज़्हेक़ुरबानी न पूछ।
वाह, कमाल की प्रस्तुति है जी.
दिल चीर कर सीधे दिल में ही बैठ गई.
अब जब जुबां ही नही रही कुछ कहने के लिए
तो दिल तो कुर्बान होना ही है जी.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,नवीनजी.
बोलना आता तो क्यूँ होता हलाल।
ReplyDeleteबेज़ुबाँ से वज़्हेक़ुरबानी न पूछ।
sabhi sher laazwaab..
बेहतरीन लिखा है,
ReplyDeleteमछलियों के हक़ में बगुलों की जमात।
ReplyDeleteकिस कदर है सबको हैरानी न पूछ।८।
.....सभी बेहद उम्दा.........
ati sundar rachana hai..
ReplyDeletesundar prastuti...
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचनाएँ...बधाई|
ReplyDeleteजो मुक़द्दर ने दिया कर ले कुबूल।
ReplyDeleteकर्ण! कुंती की परेशानी न पूछ ।४।बहुत खूब.
मतले (मतला )से मकते (मक्ता )तक हर शैर काबिले दाद बा -अर्थ ,एक भी शैर खैराती या भर्ती का नहीं .मुबारक नवीन भाई लेखनी में निखार है .अर्थों में अभिनव परवाज़ है .
ReplyDeleteBahut Sunder. Hamari Badhai Swikar Kare.
ReplyDeleteACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR
ReplyDeleteSHUBH KAAMNAA..
har sher khoobsurat!
ReplyDeleteजो मुकद्दर ने दिया कर ले कुबूल,
ReplyDeleteकर्ण! कुंती की परेशानी न पूछ ।
क्या बात कही है !!
शेर में कर्ण को पहली बार पढ़ रहा हूं।
लाजवाब !
मुश्किलें मत पूछ, आसानी न पूछ।
ReplyDeleteहै बड़ा, तो बात बचकानी न पूछ ।१।
याद कर अपने लड़कपन के भी दिन।
क्यूँ हुई बच्चों से नादानी न पूछ।२।
Kamaal ki Panktiyan.... Bahut Badhiya
कमाल और बेमिसाल ग़ज़ल गोई शायद यही है
ReplyDeleteकि मैं थोडा ठहर कर दो - तीन बार पढ़ रहा हूँ.
ReplyDelete♥
प्रियवर नवीन जी
सस्नेहाभिवादन !
कलेजा निकाल के रख दिया आपने !
हर शे'र कोट किए जाने लायक है …
भेड़िया क्या जाने इंसानी रिवाज़
धूर्त से तहज़ीब के मानी न पूछ
मछलियों के हक़ में बगुलों की जमात
किस कदर है सबको हैरानी न पूछ
लाजवाब !
हाथ कंगन आरसी मौज़ूद है
अब तो कोई बात बेमानी न पूछ
नवीन भाई तबीयत ख़ुश हो गई …
वीरू भाई के शब्द काम में लूं ,तो - "लेखनी में निखार है" :)
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
@ मयंक भाई
ReplyDeleteआप जानते हैं ये ग़ज़ल ऐसी कैसे बनी है| बड़े भाइयों का सहयोग मिला तो निखार तो आना ही था| छोटी छोटी बातें, जो गुरुजन बताते हैं, बहुत काम की होती हैं| सादर प्रणाम|
sundar rachana.... abhar.
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