जगमग जगमग
जग सारा
और रोशन है
हर द्वार
गली बाजार सजे सँवरे दिखते
चहुँ ओर
दैदीप्यमान
मानव संस्कृति ने रचे
अनेकों पर्व
दिवाली है उन में से एक
युगों युगों से
दीवाली के दिन सब
पूजा करते हैं
धन की देवी
पद्मासन पे आसीन
विष्णु की प्रिया
यशस्वी लक्ष्मी की
कहीं रोशनी
कहीं अंधेरा
ये भी है सच
अंधी दौड़ लगाती
विनिर्दिष्ट
आज की
आदमख़ोर
व्यवस्था का
फिर भी
ग्लास भरा आधा
कहना ही
ये
होगा हितकर
हम सबके लिए
सकारात्मक
परिणामों
की अभिलाषा में
आओ यार
चलो कुछ नया गढ़ें
कुछ नया करें
कुछ अभिनव हो
उत्साह भरें
उन सब के मन में
जो हैं पड़े हुए
कब से ही
छिटके हुए
निराश्रय
दूर
हाशिए पर
तन्हा
गर ऐसा हो पाये
तो ये कोशिस
होगी सफल
हमारा सपना होगा पूर्ण
हमें आनंद आयगा बहुत
एक नव युग का होगा सूत्रपात
धरती को भी होगा गुमान
अपनी जननी का कर्ज़
बहुत जो नहीं
तो थोड़ा तो
उतार पाएँगे हम
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
जग सारा
और रोशन है
हर द्वार
गली बाजार सजे सँवरे दिखते
चहुँ ओर
दैदीप्यमान
मानव संस्कृति ने रचे
अनेकों पर्व
दिवाली है उन में से एक
युगों युगों से
दीवाली के दिन सब
पूजा करते हैं
धन की देवी
पद्मासन पे आसीन
विष्णु की प्रिया
यशस्वी लक्ष्मी की
कहीं रोशनी
कहीं अंधेरा
ये भी है सच
अंधी दौड़ लगाती
विनिर्दिष्ट
आज की
आदमख़ोर
व्यवस्था का
फिर भी
ग्लास भरा आधा
कहना ही
ये
होगा हितकर
हम सबके लिए
सकारात्मक
परिणामों
की अभिलाषा में
आओ यार
चलो कुछ नया गढ़ें
कुछ नया करें
कुछ अभिनव हो
उत्साह भरें
उन सब के मन में
जो हैं पड़े हुए
कब से ही
छिटके हुए
निराश्रय
दूर
हाशिए पर
तन्हा
गर ऐसा हो पाये
तो ये कोशिस
होगी सफल
हमारा सपना होगा पूर्ण
हमें आनंद आयगा बहुत
एक नव युग का होगा सूत्रपात
धरती को भी होगा गुमान
अपनी जननी का कर्ज़
बहुत जो नहीं
तो थोड़ा तो
उतार पाएँगे हम
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
सुंदर अतुकांत कविता..
ReplyDeleteजी धन्यवाद नूतन नीति जी| एक्च्युली मुझे आप सभी से जानना ये है कि इस अतुकान्त कविता को आप लय के साथ पढ़ पाते हैं या नहीं|
ReplyDeleteअच्छी लगी अतुकांत कविता पर ये समझ नहीं आ रहा की इस पोस्ट पर ५ तारीख क्यों दिख रही है
ReplyDeleteक्योंकि इसे ५ नव. को पोस्ट किया गया था| मित्रों की नज़र में दोबारा लाने के लिए आज फिर से कोट किया है|
ReplyDeleteअतुकांत कविता में लय तभी आती है जब आप काव्य का व्याकरण जानते हों..छंदो की सीमाओं का अतिक्रमण करने के बाद भी एक सुंदर लयात्मक कविता परोसने के लिए आभार।
ReplyDeleteहरी भाई जब हमारे काम की आप जैसे साहित्य के प्रेमी सराहना करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है|
ReplyDeleteउनके मन मेम जो पडे हुवे हैम कब से निराश्रय और तन्हा। सुन्दर सुन्दर पंक्ति , ख़ूबसूरत कविता ।
ReplyDeleteबहुत ही लाजबाव कविता है।
ReplyDeleteकविता मेँ लय लाना पढ़ने वाले पर भी निर्भर करता हैँ। जिसे कविता की समझ होती है तथा कविताओँ मेँ रूचि होती हैँ वह लय के साथ पढ़ लेते हैँ। मैँने बाकायदा रिदम के साथ आपकी कविता पढ़ी हैँ। आभार जी।
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संजय जी और डाक्टर साब आप दौनों की बहुमूल्य टिप्पणियों का दिल से स्वागत| कविता में रिदम न हो तो मज़ा नहीं आता| संजय जी आप की नई ग़ज़लों के पोस्ट होने पर मुझे इत्तला अपने आप मिल जाए इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए? कृपया बताने की कृपा करें|
ReplyDeleteshabdon mein chhupe bhaav yadi dil ko chhoo jayen to vo apne aap kavita kaa roop le lete hain...aur aapki rachna is kasouti par khari utarti hai..bahut bahut badhaai...
ReplyDeleteindian tamasha
ReplyDeletei think u r gopi bhai
aapki bahumuly tippani ke lisye bahut bahut shukriya