11 नवंबर 2010

दिवाली गीत - दीपावली दीपावली दीपावली - नवीन

हर साल मेरी रूह को,
कर डालती है बावली। 
दीपावली दीपावली दीपावली॥ 

इक वजह है ये मुस्कुराने की। 
फलक से,
आँख उट्ठा कर मिलाने की। 
घरों को, 
रोशनी से जगमगाने की। 
गले मिलने मिलाने की। 
वो हो मोहन,
कि मेथ्यू,
या कि हो ग़ुरबत अली। 
दीपावली दीपावली दीपावली॥ 

हृदय-मिरदंग बजती है,
तिनक धिन धिन। 
छनकती है ख़ुशी-पायल,
छनक छन छन। 
गली में फूटते हैं बम-पटाखे भी,
धना धन धन। 
अजब सैलाब उमड़ता है घरों से ,
हो मगन, बन ठन। 
लगे है स्वर्ग के जैसी,
शहर की हर गली। 

दीपावली दीपावली दीपावली॥ 

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

8 टिप्‍पणियां:

  1. एक समसामयिक विषय पर सुन्दर कविता। मुझे ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि शायद मैं ऐसी विषय प्रधान कविता लिखने में ख़ुद को असमर्थ पाता हूं।

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  2. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर. दीवाली के दीपों सी सजी आपकी प्रस्तुति प्रशंसनीय है
    रचना दिक्षित

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  3. संगीता स्वरूप जी, संजय दानी जी, रश्मि प्रभा जी एवम् रचना दीक्षित जी, आप सभी की बहुमूल्य टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत आभार|

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  4. बहुत बढ़िया ढंग से आपने दीपावली मनवा दी... तिनक धिन धिन , छनक छन छन .. सुन्दर रचना नवीन जी...

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  5. डा. नूतन नीति जी बहुत बहुत आभार आपकी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए|

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