मराठी गझल - करत आहेस तू अभ्यास कसला - जयदीप जोशी

 


करत आहेस तू अभ्यास कसला 

कुठे आहे तुला व्यवहार कळला

 

दिसत होती नदीडोंगरदऱ्याही

क्षणार्धातच किती अंधार पडला

 

कवडसे स्पर्श करणारे हरवले

कुणाचा आरसा कोणी बदलला?

 

दिव्याची ज्योत होती उंच त्याच्या

दिव्याखाली कमी अंधार दिसला

 

घरी दुसरे कुणी नव्हते म्हणूनच

पुन्हा टीशर्ट ला मी हात पुसला

 

पुन्हा मी एक पारंबी पकडली

पुन्हा झटक्यात माझा हात सुटला

 

कळत नाहीकशाला मिम करावे?

कधी जो दुखवला नसतादुखवला

 

असे आहेस तू बोलत स्वतःशी

जणू आहेस तू इतिहास रचला

ग़ज़ल - अब तजरबा भी कर लिया पढ़ ली किताब भी - तनोज दाधीचि

  


अब तजरबा भी कर लिया पढ़ ली किताब भी 

सब कुछ समझ गया हूँ हक़ीक़त भी ख़्वाब भी

 

मैंने बना के सबसे रखी काम के हैं सब

मुझको चराग़ जानता है आफ़ताब भी

 

मैंने कहा था तुझसे ज़रा इन्तिज़ार कर

अब देख हो गया हूँ ना मैं कामयाब भी

 

जब दूर तुम हुए तो क़लम को उठा लिया

वरना तो दोस्त लाए थे मेरे शराब भी

 

जो लोग मानते नहीं शाइर 'तनोजको 

अब इस ग़ज़ल से मिल गया उनको जवाब भी

गीत - राग हैं कुछ गुनगुनाने शेष अब तक - अशोक अग्रवाल 'नूर'

 

 राग हैं कुछ गुनगुनाने शेष अब तक

कुछ प्रणय के गीत गाने शेष अब तक

 

देहनिःसंदेह  अब अवसान  पर  है 

भावना अब भी मगर उत्थान  पर है

भाग्य ने सान्निध्य का अवसर दिया कब

दृष्टि  फिर  भी आपके  प्रतिमान  पर है

 

स्वप्न अनगिन  हैं सजाने  शेष अब तक

कुछ प्रणय के  गीत गाने  शेष अब तक

 

ग्रीष्मपतझरशीत  के भी आये मौसम

तुम बरसते  ही  रहे  मन में झमाझम

माहदिनसप्ताहबरसों में ढले, पर,

प्रेम-पावस प्रिय तुम्हारा कब हुआ कम

 

शुष्क हैं कुछ पल अजाने  शेष अब तक

कुछ  प्रणय के गीत गाने शेष अब तक

 

तुम प्रणय गीतों का  मेरे  व्याकरण हो

भावनाओं का  तुम्हीं अंतःकरण हो

तृप्त मुझको कर रहा जो  क्षण प्रतिक्षण

नेह  का  निर्बाध  बहता  निर्झरण  हो

 

क्यों नयन हैं  फिर लजाने  शेष अब तक

कुछ  प्रणय के  गीत गाने  शेष अब तक

कविता - मैं दुखी हूँ - सन्ध्या यादव

 

मैं  दुखी हूँ...

मैं बहुत दुखी हूँ...

पर उतनी नहीं ,

जितनी वो माँ है

जिसकी बेटी के अधमरे शरीर को

गुंडे घर में फेंक गये चार दिन बाद,

दस बरस की मुनिया को उठा ले जाने की

कनपटी पर बंदूक रख धमकी देते हुये...

 

मैं दुखी हूँ ...

मैं बहुत दुखी हूँ ...

पर उतनी नहीं ,

जितना वो मर्द है जिसने

अपने बच्चों के साथ खेत में अनाज उगाया

धूप , बारिश,सर्दी की परवाह किये बिना

पर फसल घर पर आने से पहले धरती की

हरियायी छाती पर आग लगा  दिया गया...

 

मैं दुखी हूँ ...

मैं बहुत दुखी हूँ ...

पर उतनी नहीं ,

जितनी कि एक अठारह साल का लड़का

अपनी माँ के शरीर को अस्पताल के गेट पर छोड़

डाक्टरों से मिन्नतें करता है एक बार देखने की ,

पर  माँ इंतजार करते -करते आँखें मूँद चुकी है ...

 

मैं दुखी हूँ ...

मैं बहुत दुखी हूँ ...

पर उतनी नहीं ,

जब एक बूढ़ा आदमी

रेल के सामने कूद कर आत्महत्या कर लेता है

सालों अपनी ही जमीन पर हक पाने के लिये

अदालत के चक्कर लगाता रहा

और केस हार गया क्योंकि पैसे नहीं थे...

 

मैं दुखी हूँ ...

मैं बहुत दुखी हूँ ...

पर उतनी नहीं

जितना छोटा सा रवि  है

बैग में किताबें नहीं कांच के कारखाने का पता है

बारह घंटे काम करेगा भूखे प्यासे

और आंत की बीमारी से मर जायेगा कम उम्र में...

 

मैं दुखी हूँ ...

मैं बहुत दुखी हूँ ...

पर उतनी नहीं ,

जितना बसेसर सिंह वल्द रमेसर  सिंह है

कल ही उसने इक्कीस साल के मृत बेटे की

अरथी को कंधा दिया है राष्ट्रीय सम्मान के साथ

आतंकवादी की गोली का शिकार हो गया था  वो...

 

मैं दुखी हूँ ...

मैं बहुत दुखी हूँ ...

मेरे पास इनकी तरह

दुखी होने की कोई वजह नहीं ...

 

मेरे आसपास के लोग सिर्फ

इसलिए ही दुखी हैं क्योंकि

घरों में बैठे

खाना खाते ,टी.वी देखते ,फोन पर गपियाते

समाज ,सरकार ,राजनीति ,फिल्म ,मीडिया ,

पाकिस्तान ,चीन ,करोना ,बारिश ,भूकंप

को कोसकर

खिड़की पर बैठ हाथ में चाय का प्याला पकड़ ,

बारिश का आनंद लेते हैं

अचानक दुखी हो जाते हैं ...

 

सुख को अचार की गुठली की तरह

चबा-चबाकर थक चुके हैं

हम तलाशते हैं भोगे हुये सुख में नया एक और  सुख

पर च्यूइंगम कब तक और कितना आनंद देगा ?

 

और फिर हम अचानक दुखी हो जाते हैं

क्योंकि हमारे पास दुखी होने जैसा दुख ही नहीं ...

 

दुख ...सुख से ऊबे हुये

अधिकांशत: सुखी लोगों द्वारा

किया गया झूठा  विधवा विलाप है

संसार को सुखी बनाने का धंधा

पतितों  द्वारा की गयी  वेश्याओं की प्रेम प्रतिज्ञा है

संवेदनाओं का भाषायी बलात्कार है

 

हम दुखी हैं ...

हम बहुत दुखी हैं ...

क्योंकि हमने आजतक जाना ही नहीं

वास्तव में दुख होता क्या है...

ग़ज़ल - सानेहा जिस्म बेबसी हासिल - नवीन जोशी नवा

 


सानेहा जिस्म बेबसी हासिल

ज़िंदगी शोर ख़ामुशी हासिल

  

एक सहरा से एक दरिया तक

हर मसाफ़त का तिश्नगी हासिल

 

गुफ़्तुगू वो तवील थी जिस का

बात इक अन-कही बनी हासिल

 

बंदगी हो कि इश्क़ दोनों का

इक ख़ुदा और बे-ख़ुदी हासिल

 

अक्स हासिल नहीं है शीशे का

न ही चेहरे का चेहरगी हासिल

 

वक़्त से जीतने की कोशिश में

इक कलाई को बस घड़ी हासिल

 

कभी आग़ाज़ कोई बनता है

कभी अंजाम तो कभी हासिल

 

दश्त-ए-बीनाई में इन आँखों का

आख़िरश बस रही नमी हासिल

नवगीत - गीतों में दुनिया को गाना - सीमा अग्रवाल

 

गीतों में दुनिया को गाना

मानो इकतारा हो जाना

 

ख़ुद को परे बिठा कर

सब हो जाना सहल नहीं

अब से तब या तब से अब

हो जाना सहल नहीं

 

रहना विरत और रह कर भी

ड्योढ़ी- ड्योढ़ी धोक लगाना

 

पथरीले रास्तों से रोज़

गुज़रना होता है

बारिश में बादल को छतरी

करना होता है

 

हर दिन चोटिल होना हर दिन

गिरना फिर गिरकर उठ जाना

 

कुआँ इस तरफ़ और

उस तरफ़ खाई जैसे पल

और मज़े की बात साथ ही

काई जैसे पल

 

यानी जान हथेली पर रख

तुनक तुनक तुन धुन हो जाना 

व्यंग्य - आ बैल मुझे मार - अर्चना चतुर्वेदी

 


यदि आप आ बैल मुझे मार टाइप कहावत का वास्तविक अनुभव लेना चाहते हैं और गलती से या खुशनसीबी से आप साहित्य की दुनिया में भी हैं तो आप चाचा मामा पिता पत्नी जिससे भी आपको प्रेम हो तुरंत उनके नाम से एक पुरस्कार शुरू कर दें , यदि आपको सिर्फ खुद से प्रेम हो और खुद को महान भी समझते हैं तो अपने मरने का इंतजार करने की जरूरत नही आप अपने नाम से ही पुरस्कार शुरू कर दें आपकी महानता में चार चाँद लगाने का कार्य दूसरे कर ही देंगे । एक बार आपने पुरस्कार शुरू कर दिया तो बस हर तरफ आपको चमचमाते सींगों वाले हट्टे कट्टे बैल ही नजर आयेंगे | जिनको पुरुस्कार नही मिला उनके सींग तो ज्यादा नुकीले और धारदार होकर चुभेंगे ही पर जिन्हें आपने शाल श्रीफल और नगद नारायण देकर सम्मानित किया था वे दुगुनी ताकत से आप पर ऐसे ऐसे हमले बोलेंगे कि आप भी भागते फिरेंगे पर उनके सींगों से बच नहीं पायेंगे ऐसी ऐसी जगह सींग मारे जायेंगे कि आप खुद समझ नाही पाएंगे किधर लगा .

 

इस तरह आप सम्मान देकर अपने लिए एक एहसान फरामोश टाइप दुश्मन खरीदने में सफल हो जायेंगे । अब उसके लिए आप मायने नही रखते काम खत्म इज्जत खत्म अब वो ही आपके हर सम्मान के आड़े आने को तैयार रहेंगे और बिल्ली की तरह रास्ता काटता रहेंगे । आपने भले ही सम्मान देकर उनकी इज्जत बढाई हो पर वे आपका धन्यवाद आपकी इज्जत तार तार के चुकाने का पूरा प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे । आपकी आत्मा आपको धिक्कारेगी आपके गलत चयन पर ,मन से आवाज आयेगी बंद कर ये सम्मान देना ,अपमान का इतना डोज हो काफी है पर ....उम्मीद पर टिके और यादों से बंधे हुए सम्मानित करते रहेंगे और बदले में आपको हर कदम पर एकदम नए नए अहसास होंगे आत्मा से आवाज आएगी बच्चू तुमने तो पड़ी लकड़ी उठाई है और लो मजे ..आपको अहसास होगा कि आपने पैर में कुल्हाड़ी नहीं कुल्हाड़ी में पैर दे मारा है ..अब सिवाय दर्द सहने के आपके पास कोई उपाय नहीं ..क्योंकि बैल को तो खुद आपने सींग मारने बुलाया था ..सम्मान के बदले अपमान के घूंट जब तक पी सकते हैं पीते रहिये और उस घडी को कोसते रहिये जब आपके मन में ऐसा उच्च विचार आया था |

 

आप अपनी वर्षों कि बनी बनी छवि के टूटे टुकड़े समेटिये ..इज्जत के फलूदे में मिलाईये और तब तक गटकिये जब तक आप गले तक ना भर जाएँ ...

ગુજરાતી ગઝલ - યંત્ર છે કે માનવી, બસ એ જ સમજાતું નથી - ભારતી ગડા

  


યંત્ર છે કે માનવીબસ   સમજાતું નથી

બેઉમાંથી એકનું પણ ચિત્ર દોરાતું નથી.

 

દોડવાનુંભાગવાનુંહાંફવાનું છે સતત;

કોઈને પણ ‘કેમ છો’ એવુંય પૂછાતું નથી.

 

કેટલો ઘોંઘાટ ,કોલાહલ ભરેલું શહેર છે

ચોતરફ બસ ભીડ છે ,સામુ  જોવાતું નથી.

 

રાત દીત્યાં લાલ ,લીલી લાઈટો ઝબક્યા કરે,

જલકમલવત્ સૌ હ્દય  જેવું  દેખાતું નથી.

 

બસ  ખરીદી લો હવા ,પાણીને સાથે પ્રેમ પણ

આંખમાં આંસુ ઠરે છે  બહાર ઉભરાતું નથી.