एक भारतीय अफ़सर की पत्नी अपनी पड़ोसन से:
"मेरे हस्बेंड का ना रियो
का टूर लग गया है... सच्ची! दो साल पहले से ही हमने जुगाड़ लगाना शुरु कर दिया था।
तब बात बनी। ये तो बड़े ख़ुश हैं --कह रहे हैं कि ओलम्पिक में हो गया है तो
पैराल्म्पिक का टूर भी पक्का ही समझो... बच्चों को भी सैर कराने ले जाएँगे। हमनें
पिछली बार अर्जेन्टाइना और पेरु निपटा लिया था। इस बार ब्राज़ील देखेगें। मैंने तो
इन्हें कह दिया है कि रियो में सब जगह अच्छे से देख आना ताकि पैरालम्प्लिक में
हमें सब पहले से ही पता रहे कि कौन-कौन-सी जगह
निपटानी है। इन्हें जो अलाउंस मिलते हैं न मिसिज वर्मा... उससे शॉपिंग, रेस्टोरेंट वैगरा सब आराम से हो जाता है। होटल और घूमने-फिरने के लिए तो
फ़लां-फ़लां इनके पीछे पड़े रहते हैं कि सेवा का मौका तो दीजिए..."
रियो में जब मैराथन रनर ओ पी जैशा देश के लिए मीलों दौड़ते हुए पानी की बोतल
ढूँढ रही थीं... तब मिस्टर हस्बेंड रियो के एक अप-मार्केट मॉल में अपनी मिसिज के
लिए रिस्ट-वॉच ढूँढ रहे थे...
ओ पी जैशा के करीब से तीर की तरह निकली दूसरे देश की धाविका
ने देखा कि भारतीय स्टॉल खाली पड़ा था और जैशा को पानी नहीं मिला... तो उस धाविका
के होंठो पर मुस्कान दौड़ गई... वह समझ गई कि जो देश जैशा को पानी की बोतल तक नहीं
दे सकता उ(स)से जीतना कोई मुश्किल नहीं...
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इस कटाक्ष से मेरा इरादा किसी ईमानदार और अपने काम के प्रति
निष्ठावान अफ़सर को दु:ख पहुँचाना नहीं है... लेकिन ओ पी जैशा का खुलासा पढ़ने के
बाद मन में इस टिपिकल अफ़सरी माइंडसेट को लेकर बहुत ज़्यादा गुस्सा है... शर्म आनी
चाहिए कि साक्षी/सिंधु को लेकर इतना हो-हल्ला करने वाला देश जैशा को पानी की बोतल
तक नहीं दे सका। जिन लोगों को भारतीय स्टालों पर होना चाहिए था... वे लोग उसी पानी
में डूब मरें जो उन्होनें हांफ़ती जैशा को नहीं दिया... हम इसी लायक हैं कि ओलम्पिक
में एक कांसा और एक चांदी लाएँ (और वो भी खिलाड़ियों की ख़ुद की मेहनत की वजह से)...
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