सनसनीखेज़
हुआ चाहती है
तिश्नगी
तेज़ हुआ चाहती है
तिश्नगी - प्यास
हैरत-अंगेज़
हुआ चाहती है
आह -
ज़रखेज़ हुआ चाहती है
ज़रखेज़ - उपजाऊ
[ज़मीन]
अपनी
थोड़ी सी धनक दे भी दे
रात
रँगरेज़ हुआ चाहती है
आबजू
देख तेरे होते हुये
आग -
आमेज़ हुआ चाहती है
आबजू - झरना-नदी-नहर
आदि, आमेज़ - मिलाने वाला
बस
पियाला ही तलबगार नहीं
मय भी
लबरेज़ हुआ चाहती है
लबरेज़ - लबालब भरा हुआ,
लबालब
भरना
रौशनी
तुझ से भला क्या परहेज़
तू ही
परहेज़ हुआ चाहती है
हम
फ़क़ीरी के 'इशक' में पागल
जीस्त
- पर्वेज़ हुआ चाहती है
जीस्त - ज़िन्दगी,
परवेज़
- प्रतिष्ठित, विजेता के सन्दर्भ में
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसद्दस मखबून
मुसक्कन
फ़ाएलातुन फ़एलातुन
फ़ालुन
2122
1122 22
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर.बहुत खूब.बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंउम्दा सोच की उत्तम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलाजबाब ग़ज़ल बन गई
ऐसी हिन्दी का क्या हासिल श्याम,
जवाब देंहटाएंउर्दू-लवरेज हुआ चाहती है |
कुछ अलग ही है यह रचना !
जवाब देंहटाएंबधाई !