विज्ञापन के देश में, आँखों पर प्रतिबन्ध
"गरमी से नुकसान" पर, सूरज लिखे निबन्ध
हारेगा अभिमन्यु ही, लाख सीख ले दाँव
क़दम-क़दम पर बस गये, चक्रव्यूह के गाँव
अम्मा की साड़ी घिसे, बाबूजी के पाँव
पेड़ पुराने हैं मगर, देते ठण्डी छाँव
बहुएँ - बेटे - बेटियाँ, बहन और दामाद
शब्द-कोश अम्मा हुई, रखती याद
जब से पण्डों को मिला, लहरों का अधिकार
एक-एक मछली हुई, मरने को लाचार
कौवों को शाबाशियाँ, गिद्धों को जागीर
उल्लू ज़िन्दाबाद हैं, जंगल की तक़दीर
मुकुट बिकें बाज़ार में, अलग-अलग हैं दाम
रावण के लाखों टके, बिना मोल श्री राम
शाख-शाख पर तान दीं, पहले तो बन्दूक
फिर कोयल से यूँ कहा, "चल मृदुबैनी कूक"
अन्तराल के बाद जब, लौटे मन का मीत
गर्मी लगे गुलाब सी, बेले जैसी शीत
मन में चौमासा घिरे, भर-भर आएँ नैन
दिन तोला-तोला कटे, माशा-माशा रैन
बादल आये दे गये, आश्वासन के थाल
सावन भी कंगाल था, भादौं भी कंगाल
सच आँखों में झाँक कर, करता है ऐलान
मैं भी ख़ुशबू की तरह, बेघर बिना मकान
:- रामबाबू रस्तोगी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार, 23/08/2013 को
जवाब देंहटाएंजनभाषा हिंदी बने.- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः4 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंअहा, मनोहारी अभिव्यक्ति।
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