आईने से सवाल क्या करना
दर्द का हस्बेहाल क्या करना
किरचों किरचों बिखर गया है जो
बंद कर के घरों के दरवाज़े
ताज़गी का ख़याल क्या करना
अपनी ऊँचाइयों से वो ख़ुश है
अपना ज़िक्रेज़वाल क्या करना
उम्र भर था थकन से वाबस्ता
उस को माज़ी या हाल क्या करना
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22
हस्बेहाल- समयानुसार
ज़िक्रेज़वाल - अपनी अवनति / पतन की चर्चा
माज़ी - भूतकाल
हाल - वर्तमान
हस्बेहाल- समयानुसार
ज़िक्रेज़वाल - अपनी अवनति / पतन की चर्चा
माज़ी - भूतकाल
हाल - वर्तमान
रौशनी मिलती नहीं है कोहसारों के क़रीब
राज़ अक्सर खुल गए हैं राज़दारों के क़रीब
अपना ग़म, अपनी खुशी, अपनी इबादत है वज़ा
ज़िन्दगी तारीक़ लगती है सितारों के क़रीब
है तशद्दुद ख़ानकाहों में सियासत हर जगह
अपना ग़म ले कर न जाना अपने यारों के क़रीब
चंद लमहों की उदासी, आँसुओं की ये जलन
डूबने देंगे सफ़ीना हम किनारों के क़रीब
कौन है जो भीड़ में पहिचान कर रफ़्तार दे
हमने अपने को समेटा कितने सारों के क़रीब
बहरे रमल मुसमन महजूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
2122 2122 2122 212
कोहसार - पर्वत
वज़ा - उचित
तारीक़ - अंधेरा / अंधेरी
तशद्दुद - जिद्दी / कठोर
ख़ानक़ाह - मठ
कोहसार - पर्वत
वज़ा - उचित
तारीक़ - अंधेरा / अंधेरी
तशद्दुद - जिद्दी / कठोर
ख़ानक़ाह - मठ
मुस्तक़बिल में और घनेरे साये हैं
हम अब चाँद की बस्ती से लौट आये हैं
अब तो जुनूँ का चर्चा ही बेमानी है
अपने ही लोगों ने घर जलवाये हैं
है जो हक़ीक़त अब तस्वीर बदल देगी
काले चश्मे लोग पहन कर आये हैं
भेष बदल कर ज़ुर्म का चेहरा बदलेगा
ख़ूनी हाथों को दस्ताने भाये हैं
अब न दिनों की क़िस्मत में सूरज होगा
लोग उजालों में कितने घबराये हैं
फालुन फालुन फालुन फालुन फालुन फा
22 22 22 22 22 2
मुस्तकबिल - भविष्य
जुनून - उन्माद
मुस्तकबिल - भविष्य
जुनून - उन्माद
:- शैलजा नरहरि
H-803, Orchid
Valley of Flowers
Thakur Village, Knadivali - East
Mumbai - 400101
cell: +91 9322125416
वाह!!!!क्या बात है शैलजा नरहरि जी की गजलों का ..सुंदर प्रस्तुति,...
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
तीनों गजल बहुत सुंदर .... आभार
ReplyDeleteअंतर्वस्तु और तकनीकी दृष्टि से ये ग़ज़लें क़ाबिले-तारीफ़ हैं-
ReplyDeleteबंद कर के घरों के दरवाज़े
ताज़गी का ख़याल क्या करना
सुन्दर गजलें |
ReplyDeleteशुक्रवार की चर्चा की
शोभा होंगी ये गजलें ||
वाह..................
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक गज़लें..........
सुंदर शेर.....
सादर.
अनु
वाह..................
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक गज़लें..........
सुंदर शेर.....
सादर.
अनु
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबंद कर के घरों के दरवाज़े
ReplyDeleteताज़गी का ख़याल क्या करना
बहुत सुन्दर क्या बात है
बड़ी ही सुन्दर रचनायें।
ReplyDeleteशैलजा जी की ग़ज़लें बहुत अच्छी लगीं। कमाल का लिखा है इन्होंने।
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़लें...सभी शे'र सारगर्भित...
ReplyDeleteशैलजा जी को बहुत बहुत बधाई!!
लाजवाब! सारी ग़ज़लें बेहतरीन। इन्हें पढ़कर मन को सुकून मिला।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....आईने से सवाल क्या करना .
एक से एक गजल और एक से एक अशआर हैं!
ReplyDeleteपढ कर मजा आ गया
क्या बात है!! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइसे भी देखें-
फेरकर चल दिये मुँह, था वो बेख़ता यारों!
आईना अब भी देखता है रास्ता यारों!!
वाह! क्या बात है ..सुंदर प्रस्तुति,...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत शेर पढ़ें हैं शैलजा जी .....सभी बेहतरीन !
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteशुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||
सादर
charchamanch.blogspot.com
आपकी पोस्ट कल 26/4/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा - 861:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
किरचों किरचों बिखर गया है जो
ReplyDeleteआज उस का मलाल क्या कर
क्या गज़ब ..वाह..
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
behad khubsurat gazlen...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति..
ReplyDeleteतीनो की तीनो गजले बेहतरीन हैं.
ReplyDeleteतीनो रचनायें बहुत खूबसूरत हैं ... आभार ...
ReplyDeleteतीनों ही गज़लें लाज़वाब....
ReplyDeleteअच्छी और अलग लबो-लहजे की ग़ज़लें...बहुत खूब!
ReplyDeleteशैलजा नरहरि की ग़ज़लों से आपने तार्रुख़ क्या कराया, नवीन भाईजी, हम माज़ी के मुहाने का सफ़र कर आये. संवेदना को स्वर देने की बात करना और उन्हें जीना दोनों दो बातें हैं.
ReplyDeleteइन अश’आर पर मन बार-बार नम हुआ जात है -
बंद कर के घरों के दरवाज़े
ताज़गी का ख़याल क्या करना
रौशनी मिलती नहीं है कोहसारों के क़रीब
राज़ अक्सर खुल गए हैं राज़दारों के क़रीब
अपना ग़म, अपनी खुशी, अपनी इबादत है वज़ा
ज़िन्दगी तारीक़ लगती है सितारों के क़रीब
भेष बदल कर ज़ुर्म का चेहरा बदलेगा
ख़ूनी हाथों को दस्ताने भाये हैं
शैलजाजी को मेरी सादर शुभकामनाएँ
-सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
वाह वाह वाह बेहद खूबसूरत गज़लें |
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