नवरस ग़ज़ल
नया काम
नवरस ग़ज़ल
ग़ौर से सुनिये तो हर पल गुनगुनाती है हयात1।
हर घड़ी एक रूप धर कर गीत गाती है हयात॥
1ज़िन्दगी
*
शृंगार रस:-
दिल के दरिया में कनखियों की कँकरिया डाल कर।
इश्क़ के सोये हुये अरमाँ जगाती है हयात॥
*
हास्य रस:-
इश्क़ हो जाये रफ़ू-चक्कर झपकते ही पलक।
जब छरहरे जिस्म को गुम्बद बनाती है हयात॥
*
करुण रस:-
उन को भी भर पेट खाना मिल सके बस इसलिये।
बाल-मज़दूरों से मज़दूरी कराती है हयात॥
*
रौद्र रस:-
काम मिल जाये तो अच्छे दाम मिल पाते नहीं।
अक्सर इस पेचीदगी पर तमतमाती है हयात॥
*
वीर रस:-
पहले तो शाइस्तगी2 से माँगती है अपना हक़।
जब नहीं मिलता है हक़ - शमशीर3 उठाती है हयात॥
2 विनम्रता 3 तलवार
*
भयानक रस:-
क्या भयानक रूप दिखलाती है कोठों पर हहा!!
बेटियों की चीख पर ठुमके लगाती है हयात॥
*
वीभत्स रस:-
आदमी को भूनती है वक़्त के तन्दूर में।
हाय कैसा खाना, खाती है खिलाती है हयात॥
*
अद्भुत रस:-
एक बकरी दर्जनों शेरों पे हावी है जनाब।
देख लो सरकार! क्या क्या गुल खुलाती है हयात॥
*
शांत रस:-
बस्तियों की हस्तियों की मस्तियाँ ढो कर 'नवीन'।
आख़िर-आख़िर शान्त हो कर गीत गाती है हयात॥
हाथ में 'आटा' लिए, जो गुनगुनाये ज़िंदगी|
नवरस ग़ज़ल
ग़ौर से सुनिये तो हर पल गुनगुनाती है हयात1।
हर घड़ी एक रूप धर कर गीत गाती है हयात॥
1ज़िन्दगी
*
शृंगार रस:-
दिल के दरिया में कनखियों की कँकरिया डाल कर।
इश्क़ के सोये हुये अरमाँ जगाती है हयात॥
*
हास्य रस:-
इश्क़ हो जाये रफ़ू-चक्कर झपकते ही पलक।
जब छरहरे जिस्म को गुम्बद बनाती है हयात॥
*
करुण रस:-
उन को भी भर पेट खाना मिल सके बस इसलिये।
बाल-मज़दूरों से मज़दूरी कराती है हयात॥
*
रौद्र रस:-
काम मिल जाये तो अच्छे दाम मिल पाते नहीं।
अक्सर इस पेचीदगी पर तमतमाती है हयात॥
*
वीर रस:-
पहले तो शाइस्तगी2 से माँगती है अपना हक़।
जब नहीं मिलता है हक़ - शमशीर3 उठाती है हयात॥
2 विनम्रता 3 तलवार
*
भयानक रस:-
क्या भयानक रूप दिखलाती है कोठों पर हहा!!
बेटियों की चीख पर ठुमके लगाती है हयात॥
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वीभत्स रस:-
आदमी को भूनती है वक़्त के तन्दूर में।
हाय कैसा खाना, खाती है खिलाती है हयात॥
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अद्भुत रस:-
एक बकरी दर्जनों शेरों पे हावी है जनाब।
देख लो सरकार! क्या क्या गुल खुलाती है हयात॥
*
शांत रस:-
बस्तियों की हस्तियों की मस्तियाँ ढो कर 'नवीन'।
आख़िर-आख़िर शान्त हो कर गीत गाती है हयात॥
हाथ में 'आटा' लिए, जो गुनगुनाये ज़िंदगी|
देख कर यूँ दिलरुबा को मुस्कुराये ज़िंदगी|१|
क्षृंगार रस:-
कनखियों से देखना - पानी में पत्थर फेंकना|
काश फिर से वो ही मंज़र दोहराये ज़िंदगी|२|
हास्य रस:-
इश्क़ हो जाये रफू चक्कर झपकते ही पलक|
जब छरहरे जिस्म को गुम्बद बनाये ज़िंदगी|३|
करुण रस:-
दिन को मजदूरी, पढ़ाई रात में करते हैं जो|
देख कर उन लाड़लों को, बिलबिलाये ज़िंदगी|४|
रौद्र रस:-
भावनाओं के बहाने, दिल से जब खेले कोई|
देख कर ये खेल झूठा, तमतमाये ज़िंदगी |५|
वीर रस:-
जब हमारे हक़ हमें ता उम्र मिल पाते नहीं |
दिल ये कहता है, न क्यूँ खंज़र उठाये ज़िन्दगी |६|
भयानक रस:-
जिस जगह पर, चीख औरत की, खुशी का हो सबब|
बेटियों को उस जगह ले के न जाये ज़िंदगी |७|
वीभत्स रस:-
आदमी को आदमी खाते जहाँ पर भून कर |
उस जगह जाते हुए भी ख़ौफ़ खाये ज़िंदगी |८|
अद्भुत रस:-
एक बकरी दर्जनों शेरों पे हावी है 'नवीन'|
देखिए सरकार! क्या क्या गुल खिलाये ज़िंदगी|९|
शांत रस:-
बस्तियों की हस्तियों की मस्तियों को देख कर|
दिल कहे अब शांत हो कर गीत गाये ज़िंदगी|१०|
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
2122 2122 2122 212
बहरे रमल मुसमन महजूफ
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
2122 2122 2122 212
बहरे रमल मुसमन महजूफ
बेहतरीन ग़ज़ल छोटी बहर की .ज़िन्दगी के हर रंग की ग़ज़ल ,चक्की चूल्हे हल्दी के रंग आटा सने गुनगुनाते गाते चेहरों की ग़ज़ल ,देश के हालात की ग़ज़ल ,
ReplyDeleteएक बकरी दर्ज़नों शेरों को देती है हुकुम ,
देखिएसरकार क्या क्या गुल खिलाये ज़िन्दगी .याद आ गईं बरबस ये पंक्तियाँ -
एक गुडिया की कई कठपुतलियों में जान है ,
आज शायर ये तमाशा देख के हैरान है ।
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए ,
मैं ने पूछा नाम तो बोला के हिन्दुस्तान है .
चतुर्वेदी जी यहाँ अमरीका में हमारे नाती भी यही सब कर रहे हैं -बाहर घर के अमरीकी खाद्य (बीफ ,टर्की ,चिकिन ,नहीं ,यहाँ तो डबल रोटी में भी बीफ होता है )नहीं खाते घर में दाल रोटी नहीं खाते -लेदेकर एक आलू पराठा या प्लेन पराठा ,वाईट राईस या फिर नान औरदही , दबाके फीदर से दूध .बड़ी मुश्किल से डायपर से पिंड छुड्वाया है बेटी और दामाद ने .टी वी पर गेम तो यहाँ खुद माँ -बाप ही परोस देते हैं .खुद उन्हें दफ्तर के लिए तैयार जो होना है ।
दो तरह के बच्चे आ रहें हैं एक वो जिनका ध्यान खाने की चीज़ों पर पूरा होता है यहाँ सर्विस काउंटर पर तीनचार तरह का टेट्रा पेक में दूध ,ज्यूस ,इफरात से रखा रहता है ,मल्टी ग्रेन सिरीयल दुनिया भर कारंग बिरंगा ,बे -इन्तहा विविधता है खाने पीने की चीज़ों की लेकिन बच्चे बहुत चूजी हैं जोर ज़बस्ती डाट डपट मार पीट का बच्चों के साथ यहाँ सवाल ही नहीं गोरों की देखा देखी ये कभी पोलिस को ९११ पर डायल करके आपको हैरानी में डाल सकतें हैं ।
दूसरे ध्रुव पर हमारे यहाँ ऐसे भी बच्चे आते हैं जिनकी पहली नजर सर्विस काउंटर पर रखी चीज़ों पर पडती है घुसते ही कहेंगें -अंकल कैन आई टेक दिस .यहाँ नो का रिवाज़ नहीं है .तो समस्या "कुछ भी न खाने वाले" बच्चों की भी विकराल है यहाँ भी .शुक्रिया आपका .
डरना हँसना रीझना , करुण शांत रस वीर |
ReplyDeleteअद्भुत रौद्र भयानक, वीभत्सित -तस्वीर ||
सुन्दर रचना| अंतर स्पष्ट हुआ किन्तु दो में शंका है--
रौद्र रस:-
वीर रस:-
दिन को मजदूरी, पढ़ाई रात में करते हैं जो|
ReplyDeleteदेख कर उन लाड़लों को, बिलबिलाये ज़िंदगी|
Ye Sher bohot achha laga...
Shubhkamnayein!!
"रसात्मकं वाक्यं काव्यं" अर्थात रस युक्त वाक्य ही काव्य है| एक साथ सारे रसों की प्रस्तुति केवल मुक्तक काव्य में ही संभव है| सुन्दर गज़ल का रसस्वादन करने के लिए शुक्रिया|
ReplyDeleteजिस ज़िंदगी ने सारे रसों का रसास्वादन करा दिया ऐसी ज़िंदगी को सलाम ! बहुत ही भावभीनी एवं अर्थपूर्ण रचना है ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteनवीन भाई आपकी प्रतिभा विलक्षण है...दस अलग अलग रसों में ऐसे शेर कहना किसी उस्ताद के बस की ही बात है...हमने तो कभी सोचा ही नहीं के ग़ज़ल ऐसे भी कही जा सकती है...हर रस का ज़िन्दगी के माध्यम से बहुत खूबसूरत परिचय करवाया है आपने...हर मिसरा लाजवाब है...हमारे लिए ये एक नया अनुभव है जिसे प्राप्त कर मन ख़ुशी से भर उठा है...ढेरों बधाई स्वीकार कीजिये और लिखते रहिये.
ReplyDeleteनीरज
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनवीन भाई गज़ब करते हैं आप भी। हर बार कुछ नया सीखने को मिलता है। मगर लिखने का समय ही नही निकाल पा रही। बाकी नीरज जी का कमेन्ट ही मेरा समझ लें किसी शेर पर कुछ कहूँ अभी इतनी सक्षम नही हुयी। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteअनूठी गज़ल लिखी आपने नवीन भाई.
ReplyDeleteज़िंदगी के बहुत करीब रहने वाला ही लिख सकता है ऐसी गज़ल.
हाथ में 'आटा' लिए, जो गुनगुनाये ज़िंदगी|
देख कर यूं दिलरुबा को मुस्कुराये ज़िंदगी
अब समझ में आया कि ९ बजे के बात आप फोन क्यों नहीं लेते. चौके में दखल रखते हैं आप.
क्षृंगार रस:-
कनखियों से देखना - पानी में पत्थर फेंकना|
काश फिर से वो ही मंज़र दोहराये ज़िंदगी
भाई जी मुम्बई में तो हुआ नहीं होगा ये, मथुरा तो फिर मथुरा है. श्रृंगार नगरी.
अद्भुत रस:-
एक बकरी दर्जनों शेरों को देती है हुकुम|
देखिए सरकार क्या क्या गुल खिलाये ज़िंदगी
अरे भाई रे..... इस पर कुछ नहीं लिखूंगा... कहीं दिग्गी ने पढ़ लिया तो आपके साथ मैं भी आ जाऊँगा लपेटे में.
शांत रस:-
बस्तियों की हस्तियों की मस्तियों को देख कर|
दिल कहे अब शांत हो कर गीत गाये ज़िंदगी
ये है शब्द संकलन और उनका समुचित प्रयोग, शायद इसे अन्त्यानुप्रास कहते हैं न नवीन भाई ....
नवीन भाई आप तो रसराज हो गए इस ग़ज़ल के माध्यम से। बहुत ही अभिनव प्रयोग और तिस पर हर शे’र शानदार। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
ReplyDeleteनवीन जी गुनी हैं, प्रतिभाशाली हैं और बेहद संवेदनशील..इस काव्य कृति में, उनके तमाम अनुपम गुणों की व्याख्या खुद ब खुद हो जाती है..बहुत स्तरीय कलाम है..जिंदगी के सारे आयाम इस काव्य में मौजूद हैं..मुंबई जैसी जगह में जहां आदमी/इंसानियत का बचा रह पाना एक कठिन तप के बराबर है, वहीं अपनी काव्य प्रतिभा को परवान चढाना बहुत बडी बात है..बहुत बहुत साधुवाद.
ReplyDelete@रविकर
ReplyDeleteगुप्ता जी साधारण तौर पर देखें तो:-
- क्रोध / गुस्सा वाली स्थिति यानि रौद्र रस
- क्रोध आने के बाद प्रतिकृया [सामान्यत:] वाली स्थिति वीर रस|
- विस्तार से इन दोनों रसों की व्याख्या काफी बड़ी है|
नवीन जी ,
ReplyDeleteकमाल कर दिया आपने, एक ही छंद में नौ रसों का प्रदर्शन.. वह भी ग़ज़ल शैली में।
अद्भुत प्रतिभा है आपके पास।
इसे कहते हैं मौलिकता...।
बधाई हो, बधाई हो।
शुभकामनाएं।
@शेषधर तिवारी जी:-
ReplyDeleteउपलब्ध जानकारियों के अनुसार चरणांत से सम्बद्ध है अंत्यानुप्रास अलंकार| परंतु ये ज्यादा प्रासंगिक लगता है संस्कृत के उन श्लोकों के बारे में जहाँ तुकांत नहीं होते| यथा:-
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया|
चक्षुरुन्मीलितम येन तस्मै श्री गुरुवे नम:||
यह श्लोक बाकायदा छन्द बद्ध है, परंतु इस में तुकांत नहीं है| बाइ डिफ़ोल्ट संस्कृत के श्लोकों में तुकांत नहीं होते वरन यूं कहें कि संस्कृत श्लोकों में तुकांत अनिवार्य नहीं होते|
ऐसा ही एक श्लोक और लेते हैं:-
कस्तुरी तिलकम ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभम
नासाग्रे वरमौक्तुकम करतले वेणु: करे कंकणम
यहाँ इस श्लोक में तुकांत देखने को मिलता है| मुझे भी लगता है कि उस समय जब तुकांत आवश्यक नहीं होते थे, तब शायद अंत्यानुप्रास का अधिक महत्व इस तरह से रहता होगा| आज कल तो मुक्तक, छन्द या गज़लों का तुकांत होना आवश्यक है, तो ऐसे में अंत्यानुप्रास का औचित्य - चरणांत में न हो कर शब्दांत में होना चाहिए|
इस विषय पर मैंने आदरणीय आचार्य श्री संजीव वर्मा 'सलिल' जी से भी बात की थी, वो भी आंशिक रूप से इस से सहमत दिखे| आप का भी यही मानना है और आंशिक रूप से धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन' भी इसी तरह की बात कर रहे थे - तो हो सकता है वर्तमान में अंत्यानुप्रास की प्रासंगिकता चरणांत में न हो कर शायद शब्दांत में होती हो|
बाद बाकी हमारे अग्रज हमें इस बारे में अधिक विस्तार से समझा सकते हैं|
नवीन भाई
ReplyDeleteनमस्कारम् !
जवाब नहीं आपका …
ग़ज़ल में रसों का … और वो भी नौ रसों का प्रयोग ! किसी ने आज तक शायद ही किया होगा ।
…और आपसे प्रेरित हो'कर अब भी कोई नौ रस के लिए नौ शे'र कहने का प्रयास करे भी तो आसान नहीं होगा किसी के लिए ।
आगे और भी कमाल आपके माध्यम से ही होने की उम्मीद है :)
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अद्भुत! अद्भुत!! अद्भुत!!
ReplyDeleteइतना कमाल आप और सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं।
आप जैसी विभूति को क्या टिप्पणी दूं, बस आनंद ले रहे हैं और ज्ञान ग्रहण कर रहे हैं।
नवीन जी यह तो रस से सरावोर कर दिया. अद्भुत और सुंदर प्रयोग.
ReplyDeleteadbhut prayog...badhai!
ReplyDeleteबहुत स्तरीय कलाम है..जिंदगी के सारे आयाम इस काव्य में मौजूद हैं.
ReplyDeleteSahmat.
वाह जी, एक अनूठा प्रयोग...आनन्द आ गया.
ReplyDeleteनवीन जी, मेरा तो सुप्रभात कर दिया आपने जिंदगी के सारे रसों को एक ही गज़ल में समाहित कर बेवाक कर दिया है...तुकांत अतुकांत
ReplyDeleteमुख्य विषय नहीं मुख्य विषय है विषय पर पकड़ और गेयता... महाकवि हरिऔध जी की अनेक रचनाओं का अध्यन करने के बाद मैं तो यही समझा हूँ की आपकी रचना यदि आपकी रचना बरबस ह्रदय और होंठों का स्पर्श करती है तो वह सफल रचना है और यदि कोई रचना ह्रदय में आनंद का स्फुरण करने में सफल है तो उसके रचना कार को बधाई देना चाहिए .....आपको बहुत बहुत बधाई नवीन जी
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच
बहुत ही अच्छा प्रयोग नवरस पर |अति सुन्दर |बधाई |
ReplyDeleteआशा
नौ रसों में ज़िंदगी को खूब बांधा आपने.
ReplyDeleteयूँ नया करना चमत्कारिक बनाए ज़िन्दगी.
आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteबटुए में , सपनों की रानी ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
____________________________________
सौरभ पाण्डेय:-
ReplyDeleteनवीनभाई, आपकी लेखिनी को मेरा प्रणाम.
ग़ज़ल विधा पर कुछ कहने से मैं वैसे भी बचता हूँ कि वह मेरा डोमेन कभी रहा नहीं. किन्तु आपके इस नवरस-ग़ज़ल के प्रवाह और आपकी उर्वरता से चकित हुआ मैं अपना लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ. आपको मेरी स्नेहपूरित हार्दिक शुभकामनाएँ.
रचनाधर्मिता कठिन तपस्या है. जिस स्तर की संलग्नता और जैसे मनोयोग की आवश्यकता होती है, आपके प्रयास से स्वयं परिलक्षित होता है.
नवीनभाईजी, आपकी समस्त प्रविष्टियों को पढ़ता हूँ और मन ही मन मुग्ध होता रहता हूँ. किन्तु अपनी प्रेषित टिप्पणियाँ देख नहीं पाता. संभवतः कनेक्शन में कोई बाधा या ऐसी कुछ समस्या हो.
(आप इस निवेदन को नवरस के प्रति मेरी टिप्पणी की तरह पोस्ट कर दें.)
-सौरभ पाण्डेय
नवरस से सजी अद्भुत गज़ल ... हर शेर रस को बताता हुआ ..
ReplyDeleteसच कहा जाए, तो नाम के अनुरूप ही हर बार आपकी रचना एक नवीन-रस लिए हुए होती है. वर्ना नव-रसों को समेटना किसी और के दिमाग में क्यों नहीं आया.. एक-एक शे'र बेमिसाल है. दाद कबूल करें.
ReplyDeleteवाह रे वाह जिन्दगी।
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति..... बहुत रोचक और जानकारीपरक प्रयोग....
ReplyDeleteगज़ब............गज़ब........गज़ब.......!!!
ReplyDeleteनव रसों के नव शेरों वाली प्यारी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी
gazal me navras ka prayog adbhut laga....ek se badh kar ek umda sher....
ReplyDeleteनवरस ग़ज़ल
ReplyDeleteहाथ में 'आटा' लिए, जो गुनगुनाये ज़िंदगी|
देख कर यूं दिलरुबा को मुस्कुराये ज़िंदगी|१|
क्षृंगार रस:-
कनखियों से देखना - पानी में पत्थर फेंकना|
काश फिर से वो ही मंज़र दोहराये ज़िंदगी|२|
हास्य रस:-
इश्क़ हो जाये रफू चक्कर झपकते ही पलक|
जब छरहरे जिस्म को गुम्बद बनाये ज़िंदगी|३|
करुण रस:-
दिन को मजदूरी, पढ़ाई रात में करते हैं जो|
देख कर उन लाड़लों को, बिलबिलाये ज़िंदगी|४|
रौद्र रस:-
भावनाओं के बहाने, दिल से जब खेले कोई|
देख कर ये खेल झूठा, तमतमाये ज़िंदगी |५|
वीर रस:-
जब हमारे हक़ हमें ता उम्र मिल पाते नहीं |
दिल ये कहता है, न क्यूँ खंज़र उठाये ज़िन्दगी |६|
भयानक रस:-
जिस जगह पर, चीख औरत की, खुशी का हो सबब|
बेटियों को उस जगह ले के न जाये ज़िंदगी |७|
वीभत्स रस:-
आदमी को आदमी खाते जहाँ पर भून कर |
उस जगह जाते हुए भी ख़ौफ़ खाये ज़िंदगी |८|
अद्भुत रस:-
एक बकरी दर्जनों शेरों को देती है हुकुम|
देखिए सरकार क्या क्या गुल खिलाये ज़िंदगी|९|
शांत रस:-
बस्तियों की हस्तियों की मस्तियों को देख कर|
दिल कहे अब शांत हो कर गीत गाये ज़िंदगी|१०|
नवीन जी!
साधुवाद.
ऐसे प्रयोग बहुत कम होते हैं. अपने रचना कर्म में कभी-कभी मुझे भी इस तरह के पड़ावों से गुजरने का अवसर मिला है.
कथ्य के स्तर पर रस वैविध्य और शिल्प के स्तर पर छंद वैविध्य हिंदी पिंगल का वैशिष्ट्य है. विश्व की अन्य भाषाओँ में यह सम्पन्नता नहीं है.
मुक्तिका शीर्षक से लीक से हटकर प्रयोग मैं भी करता रहा हूँ.
आपका अभिनन्दन.
संस्कृत छंदों में गजब का लचीलापन है. अनुष्टुप को तो रबर छंद नाम ही दे दिया गया है. संस्कृत श्लोकों में असमान पदभार की पंक्तियों का होना सामान्य बात है किन्तु हिंदी में ऐसा नहीं है.
सविन्दु सिन्धु सुस्खलत्तरंगभंगरंजितं
द्विषत्सुपाप जात जात कारि वारि संयुतं .
कृतान्तदूत कालभूत भीति हारि वर्मदे.
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे..
शब्द चमत्कार की विरासत हिंदी ने संस्कृत से ही ग्रहण की है.
अनुप्रास जैसे शब्दालंकारों का महत्त्व काव्य की श्रवणीयता और माधुर्य से है.अर्थ की दृष्टि से यमक, शेष आदि महत्वपूर्ण हैं.
चरणान्त, शब्दांत और पदांत में समान ध्वन्यात्मक आवृत्तियाँ शब्द-सौंदर्य में अभिवृद्धि करती हैं. अन्त्यानुप्रास का पंक्ति के अंत में होना गेयता की दृष्टि से आवश्यक है.
'अंत्यानुप्रास का औचित्य - चरणांत में न हो कर शब्दांत में होना चाहिए' की धरना बनाने के पूर्व विषद और व्यापक अध्ययन और चर्चा आवश्यक है.
नव रसों को लेकर भी मतभेद हैं.कुछ विद्वान १० या ११ रस मानते हैं. यह सब चर्चा के तौर पर ठीक है.
आपके अभूतपूर्व साहित्यिक अवदान को पुनः नमन.
वाह .. हर तरह का रंग लिए अनूठी गज़ल ... मज़ा आ गया नवीन भाई ... प्रयोगात्मक गज़ल की शुरुआत है ये तो ...
ReplyDeleteनवरसों को शेरों में बहुत सुंदरता से ढाला है..अद्भुत प्रस्तुति..
ReplyDeletebehtrin behtrin kya kahun ayesi nayab gazal pahli bar padhi jinme sare rason ka itni sunderta se prayog huaa ho .
ReplyDeletebahut bahut bahut badhai
rachana
हाथ में 'आटा' लिए, जो गुनगुनाये ज़िंदगी|
ReplyDeleteदेख कर यूं दिलरुबा को मुस्कुराये ज़िंदगी|१|
भाई वाह ... नवीन जी मज़ा आ गया ... गज़ल को रसोई तक पहुंचा दिया आपने ... लजवाब ...
नवरस के साथ साथ इस प्रयोग धर्मिता के चलते हम जैसों के लिए नरवस गज़ल......बस, अक्षर का क्रम बदलने से हर बात बदल जाती है!! :)
ReplyDeleteजिन्दगी के जितने रंग है उनसे भी ज्यादा रंग भर दिए आपने अपनी ग़ज़ल में ..तारीफ़ करने को लफ्ज कम पड़ गए ..जैसे साँसे कम पड़ जाती है ...
ReplyDeleteसिर्फ़ एक शब्द है बेहतरीन!!
ReplyDeleteबहुत मज़ा आया पढ़कर
सच पूछिये नवीन जी तो मैं ये तो जानती थी कि ९ रस होते हैं लेकिन नाम केवल ७ रसों का ही जानती थी बाक़ी २ रसों (अद्भुत रस और शाँत रस ) का नाम अभी मालूम हुआ बहुत बहुत धन्यवाद !